26 मई, 2019

जुगनू






 मन न माना बेचैन हुआ
कदम न रुके बढ़ चले 
जंगल में जा कर चांदनी रात में 
घूमने का आनंद लेने |
चमक दमक कायनात की
चन्द्र रश्मियाँ  पर्णों में
दीखती थीं  समाई
गजब की चमक थी उनमें |
धरती के कण कण में
 चांदनी की छटा  देती  थी दिखाई
किसी अन्य साधन की 
न थी आवश्यकता
 रौशनी के लिए|
रात्रिचर यहाँ वहां 
नजर आते थे
मानो वे भी  चाहते हों
स्नान  करना चांदनी में |
ज्यूँ ज्यूँ चांदनी बढी
अनोखी चमक छाई कायनात में
जुगनुओं का उत्साह बढ़ा
चमक इतनी बढ़ी
जैसे स्नान  कर के आए हों अभी 
चांदनी  में तरबतर हो|
मैं बनी गवाह उनके 
हर क्रिया कलाप की
मैंने पूरा  आनंद उठाया
चांदनी रात का नजारा देखा |
 यहाँ वहां उनके  उड़ने का 
चमकना फिर गायब होने का 
जंगल में विचरण का
 पूर्ण  आनंद उठाया |

आशा



22 मई, 2019

गलीचा



अर्श से फर्श तक
निगाहें नहीं ठहर पातीं
 प्रकृति नटी   ने गलीचा बिछाया
मन मोहक रंगों से  भरा|
निगाहें  नहीं ठहरती  जिस पर |
बहुत महनत लगी होगी
 उसे बनाने में
चुन चुन कर धागे रंगवाए थे
मन पसंद रंगों से सजाए थे |
प्यारा सा नमूना चुना था
इतना विशाल  गलीचा बनाने को
नीले ,हरे रंग के ऊपर उठते चटक रंग
देखते ही मन उसे पाना चाहता |
पर सब की ऐसी किस्मत कहाँ
 भाग्यशाली ही भोग पाते हैं
ऐसे गलीचे पर सुबह सबेरे
 घूमने  का   आनंद
कम को ही नसीब हो पाता है |
यह सुख वही पाते हैं
जो प्रकृति के बहुत करीब होते हैं
उसे सहेज कर रख पाते हैं |
आशा



11 मई, 2019

- क्यूँ ना हो मगरूर





    होना ना मगरूर
देख कर चहरे पर नूर
तुम्हें दी है नियामत ईश्वर ने
यह न जाना भूल |
मोती की आव चेहरे का नूर
सब के नसीब में कहाँ
होते हैं दो चार ही
नवाजे गए पुरनूर इससे |
करो अभिमान अवश्य
इस अनमोल तोहफे पर 
हिफाजत करो जी जान से इसकी
हैं वेश कीमती सब को नसीब कहाँ |
जन्नत की हूर का दर्जा
मिलता है नसीब से
सर ऊंचा हो जाता है
खुद का गरूर से |
आशा

09 मई, 2019

उधारी




लेनदेन हो बराबर
कोई गड़बड़ हिसाब में नहो
ना किसी का लेना
नाही किसी को देना
हिसाब किताब बराबर रखना
मन को सुकून देता |
है यह मन्त्र सुख से जीने का
कोई दरवाजे पर आए और
अपना पैसा बापिस चाहे
शर्म से सर नत हो जाता |
जितनी बड़ी चादर हो
उतने ही पैर पसारे जाएं
यही सही तरीका
है जीने का |
उधारी सर पर यदि हो
नींद  रातों की उड़ जाती
राह पर यदि सेठ का मकान हो
वह राह ही भुला दी जाती |
उधार में जीने वाले
ना तो खुद सोते हैं
ना चैन से रहने देते
परिवार के सदस्यों को |
आशा


08 मई, 2019

गुलमोहर


कच्ची सड़क के दोनो ओर गुलमोहर के वृक्ष लगे
देते छाँव दोपहर में करते बचाव धूप से
 धरा से  हो कर  परावर्तित आदित्य की  किरणे
मिल कर आतीं हरे भरे पत्तों से
खिले फूल लाल लाल देख
ज्यों ही गर्मीं बढ़ती जाती
चिचिलाती धुप में नव पल्लव मखमली अहसास देते
चमकते ऐसे जैसे हों  तेल में तरबतर  
फूलों से लदी डालियाँ  झूल कर अटखेलियाँ करतीं
मंद मंद चलती पवन से
वृक्ष की छाया में लिया है आश्रय बहुत से जीवों ने
एक पथिक क्या चाहे थोड़ी सी छाँव थकान दूर करने के लिए
वह आता सिमट जाता छाँव के  एक कौने में
तभी  दो बच्चे आए
 लाए  डाल पर से छुपी तलवारें
  कहा आओ चलो शक्ति का प्रदर्शन करो
पेड़ से तोडी गई कत्थई तलवारें चलने लगी पूरे  जोश  से
दाव पर दाव लगाए सफल होने के लिए
पर दोनो बराबरी पर रहे हार उन्हें स्वीकार नहीं
तभी फूलों की वर्षा हुई  वायु  के बढ़ते  बेग से
बहुत हुई प्रसन्नता देख पुष्पों की वर्षा  
कहा यह है तुम्हारा पुरस्कार ईश्वर की और से |
                                                आशा 

07 मई, 2019

खंजर

                                    खंजर है रक्षा के लिए
    पीठ पर वार के लिए नहीं
जो भी करता वार पीठ पर
वह है दरिंदा इंसान नहीं |
प्यार है बहुत दूर उससे
कभी उसे जान पाया नहीं
ममता क्या होती है ?
उसे खोज पाया नहीं  |
बचपन से ही परहेज रखा
ये शब्द हैं निरर्थक जीवन में
इनका कोई स्थान नहीं
तभी कोई ऐसे भाव् मन में आते नहीं
 ऐसे शब्दों के जाल में उलझाते नहीं|
पर उसकी निगाहें
 है खंजर की धार सी  पैनी
तुरंत भांप लेती हैं
क्या है मन में किसी के  |
मंशा पहचान लेती हैं
पलटवार के लिए सदा रहती तत्पर
उसके लिए नया नहीं है वार पर वार करना
खंजर की पैनी धार है
अपने को कैसे बचाना
 हमलावर कातिल से |
आशा