06 अगस्त, 2019

शर्त




                                          एक दिन दो मित्र
खड़े चौराहे पर
बातें करते करते
न जाने क्यों जोश में आ
बहस पर उतारू हुए
शर्त तक लगा बैठे
दोनो और से शब्द वाण चले 
 थी वर्षा तीरों  की ऐसी
  तमाशबीन आस पास के
जम कर मजा लेने लगे
कुछ थे अति उत्साही
कि बीच में कूदे 
फिर क्या था
 तर्क कुतर्क ने सीमा लांघी
शर्त भी घायल हुई
विवाद इस हद तक बढ़ा 
जोर से पैरों की ठोकर लगी
शर्त दबी  जमीन में 
लोग यह तक भूले  
किस बात को ले कर
शर्त लगाई गई कि
स्थिति ऐसी  बेकाबू हुई |
                                               आशा

04 अगस्त, 2019

मेरा वजूद


                                   मेरा वजूद नहीं खोया कहीं

 मेरा वजूद ही मेरी गजल है
है  अलग सी  पहचान मेरी
 जितना भी बड़ा गुलशन हो
खुशबू मुझ में गुलाब जैसी है
वहां तरह तरह के पुष्प हैं
पर मेरे  जैसा कोई नहीं है
अलग व्यक्तित्व रखती हूँ
पहचान मेरी खुद से है
झूठा गरूर नहीं मुझको
खुशबू मुझमें गुलाब जैसी है
पर मैं गुलाब नहीं |
आशा



02 अगस्त, 2019

मेहनतकश




  क्या देखते हो घूर कर मुझे
   हूँ श्रमिक 
कर्म करना है प्राथमिकता मेरी
कभी आलस नहीं आता
किसी काम में मुझे
पूरी निष्ठा से निभाता हूँ
कभी किसी पर हंसता नहीं
काम काम सब एक से
कोई छोटा बड़ा नहीं
मुझे शर्म नहीं आती
 बोझा ढोने में
सोचता हूँ शायद प्रभू ने
मेरे लिए ही
 नियत किया है इसे
पूरा कार्य सम्पन्न करके
जितनी प्रसन्नता होती है
बहुत सुख की नींद आती है
कार्य सम्पूर्ण करने पर |
आशा  

01 अगस्त, 2019

मेंहदी



सोलह सिंगारों में प्रमुख 
मेंहदी के रूप अनूप 
हाथों की शोभा होती दुगुनी 
जब पूर्ण कुशलता से रचाई जाती 
कलात्मक हरी हरी मेंहदी 
सावन में मेंहदी से करतीं 
महिलायें अपना श्रृंगार 
हरियाली तीज मनातीं धूमधाम से 
रक्षाबंधन पर बहनों के हाथ 
भरे रहते लाल लाल मेंहदी से 
हल्दी लगाने के बाद 
मेंहदी से सजाये जाते 
हाथ दुल्हन के 
मेंहदी का रंग जितना गहरा होता 
गहन प्यार की गवाही देता 
रचाई गयी कलात्मक मेंहदी से 
लिखा जाता हथेली पर 
प्रियतम का नाम 
बहुत समय लगता उसे खोजने में 
बहुत प्रसन्नता होती दूल्हे को 
देख कर प्रियतमा की हथेली पर 
अपना छिपा हुआ नाम 
दोनों के हाथों में रहता विश्वास 
रहे हाथों में हाथ इसी तरह 
कभी न छूटे साथ ! 


आशा सक्सेना 

24 जुलाई, 2019

सिगरेट



अधरों के बीच दबा सिगरेट 
खूब धुएँ के छल्ले निकाले 
पर कभी न सोचा कितना धुआँ
घुसेगा शरीर के रोम रोम में !
श्वास लेना भी दूभर होगा 
खाने में भयानक कष्ट 
मुँह न खुलता ! हुए बेआवाज़ !
जिसने जो उपाय बताये सब किये 
पर सिगरेट न छोड़ पाए ! 
रोग बढ़ता गया तब आये 
डॉक्टर की शरण में 
उसने पहला प्रश्न यही पूछा 
"क्या धूम्रपान किया निरंतर ? 
यह तो कैंसर हो गया है
जो फ़ैल रहा है निरंतर 
जीवन की अंतिम घड़ी तक 
इससे छुटकारा न मिल पायेगा !"
बच्चों को बुलाया पास बैठाया 
काग़ज़ कलम ले आये वे 
ये रहा आख़िरी सन्देश 
कोई भी शौक पालना पर
सिगरेट को हाथ न लगाना 
यही है नसीहत मेरी 
और कुछ विरासत में नहीं ! 






06 जुलाई, 2019

भूमिका 'पलाश '










भूमिका -
मेरी दीदी आशा सक्सेना जी के नये काव्य संकलन पलाश को लेकर मैं आज आपके सम्मुख उपस्थित हुई हूँ ! दीदी की सृजनशीलता के सन्दर्भ में कुछ भी कहना सूरज को दीपक दिखाने के समान है ! २००९ से वे अपने ब्लॉग आकांक्षापर सक्रिय हैं और उनकी श्रेष्ठ रचनाओं का रसास्वादन आप सभी सुधि पाठक इस ब्लॉग पर इतने वर्षों से कर ही रहे हैं ! दीदी के अन्दर समाहित संवेदनशील कवियत्री अपने आस पास बिखरी हुई हर छोटी से छोटी बात से प्रभावित होती है और हर वह बात उनकी रचना की विषयवस्तु बन जाती है जो उनके अंतर्मन को कहीं गहराई तक छू जाती है ! उनकी रचनाओं में जीवन के विविध रंगों का भरपूर समायोजन हुआ है !
 आज अवसर मिला है मुझे कि मैं आपके समक्ष उनकी कुछ ऐसी रचनाओं की चर्चा करूँ जो न केवल अनुपम अद्वितीय हैं वरन हर मायने में हमारी सोच को प्रभावित करती हैं, प्रेरित करती हैं, हमारे सौन्दर्य बोध को जागृत करती हैं और कई सुन्दर सार्थक सन्देश हमारे मन मस्तिष्क में उकेर जाती हैं ! ये सारी रचनायें उनके इस नवीन काव्य संग्रह पलाश में संकलित है !
आशा दीदी के ब्लॉग की रचनाएं किसी सुन्दर उपवन का अहसास कराती हैं जिनसे जीवन के विविध रंगों की भीनी भीनी खुशबू आती है !रूप तेरा,आँखे.गुलाब ,नजर अपनी अपनी जैसी  उनकी हर रचना हमारे सम्मुख सजीव चित्र सा प्रस्तुत कर देती है सामयिक समस्याओं पर भी उनकी लेखनी खूब चली है ! विसंगतियों और ढंग से जीने और हर हाल में खुश रहने का सार्थक सन्देश भी दिया है !
आशा दीदी की रचनाएं अन्धकार में जलती मशाल की तरह हैं और सच मानिए तो ये उनके विलक्षण व्यक्तित्व की परिचायक भी हैं ! स्वास्थ्य संबंधी अनेकों समस्याओं से निरंतर जूझते हुए भी उनके लेखन की गति तनिक भी धीमी नहीं हुई ! उनकी जिजीविषा और रचनात्मकता को हमारा कोटिश: नमन ! वे इसी प्रकार अनवरत लिखती रहें और हम सबकी काव्य पिपासा को इसी प्रकार संतुष्ट करती रहें यही मंगलकामना है ! इसके पूर्व उनके नों  कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं ! उनका यह नवीन काव्यसंग्रह पलाश भी उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन है और मुझे पूरा विश्वास है कि यह आप सभी की अपेक्षाओं पर पूरी तरह से खरा उतरेगा ! अनंत अशेष शुभकामनाओं के साथ आशा दीदी को इस नए कीर्तिमान को स्थापित करने के लिए मेरी हार्दिक बधाई ! उनके अगले संकलन की उत्सुकता के साथ प्रतीक्षा रहेगी ! सादर !
श्रीमती साधना वैद