05 अक्तूबर, 2019

चिंगारी दबी रहने दो









आपस की बातों को 
बातों तक ही रहने दो
जो भी छिपा है दिल में
उजागर ना करो
नाकाम मोहब्बत को
परदे में ही रहने दो |
वक्त के साथ बहुत
आगे निकल गये हें
याद ना करें पिछली बातें
सब भूल जाएं हम |
कोशिश भुलाने की
दिल में छिपी आग को
ओर हवा देती है
यादें बीते कल को
भूलने भी नहीं देतीं |
हें रास्ते अलग अपने
जो कभी न मिल पाएंगे
हमारे बीच जो भी था
अब जग जाहिर न हों |
बढ़ती बेचैनी को
और न भड़कने दो
हर बात को तूल न दो
चिंगारियां दबी रहने दो |
आशा



02 अक्तूबर, 2019

हजारों यूं ही मर जाते हैं


    रूप तुम्हारा महका महका 
जिस्म बना संदल सा 
क्या समा बंधता है 
जब तुम गुजरती हो उधर से |
हजारों यूँ ही मर जाते हैं
 तुम्हारे मुस्कुराने से
जब भी निगाहों के वार चलाती हो
 परदे की ओट से|
और देती हो जुम्बिश हलकी सी जब
 अपनी काकुल को
उसका कम्पन  और
 लव पर आती सहज  मुस्कान
  निगाहों के वार देने लगे 
सन्देश जो रहा अनकहा   |
कहने की शक्ति मन में 
छिपे शब्दों की हुई खोखली
फिर भी हजारों  मर जाते हैं 
तुम्हारे मुस्कुराने से |
इन अदाओं पर 
लाख पहरा लगा हो 
कठिन परीक्षा से गुजर जाते हैं 
बहुत सरलता से |

 आशा




28 सितंबर, 2019

कुछ और नहीं चाहिए




                                 हे प्रभू मेरे  ऊपर  बस
 नज़रे  इनायत कर दे
 खाली है  झोली मेरी
 खुशहाली से भर दे |
नहीं चाहिए कृपा  किसी की  
नहीं चाहिए धन  दौलत
 मिल गया है जितना मुझे
है  पर्याप्त वही मेरे लिए |
 और अधिक की चाह नहीं  
ना हो  भेद भाव किसी से
 ना ही किसी बात का संताप
बस अमन चैन से जीवन बीते
एक  रहा अरमान यही |
इसी कामना पूर्ति के लिए
दिन देखा न रात
सारा समय बिताया मैंने
तेरे सजदे कर के |
सब मिलजुल कर रहें  
प्यार बांटे  एक दूसरे से  
है यही  तमन्ना दिल से
जिसकी पूर्ती कर दे |
 आशा

27 सितंबर, 2019

सुर संगम



गीत में स्वरों का संगम
वीणा के तारों की झंकार
तबले की थाप पा
मधुर ध्वनि उत्पन्न होती
कर्ण प्रिय सुर साधना होती|
मन मोहक बंदिश सुन कर
जो प्रसन्नता होती
 ले जाती अतीत की गलियों में !
 घंटों स्वर साधना करते थे
 नई धुनें बनाते थे
कविता को गीत में ढालते थे
 जब तक पूरा काम न होता था
उसी में मन उलझा रहता था
जब पूर्णरूप से कृति
 उभर कर आती थी 
हर बार उसे ही गुनगुनाते थे
वे लम्हे भी कितने सुहाने थे
अपनी बनाई धुनों में खो जाते थे
चाहते थे कोई श्रोता मिले
 दाद दे  उत्साहवर्धन करे
सुर संसार है ही ऐसा
दिन रात व्यस्त रखता है
 कोई बंधन नहीं उम्र का उसके लिए
ज्यों ज्यों वय बढ़ती है
 स्वरलहरी और निखरती है |
                                           
 आशा

26 सितंबर, 2019

आज की प्राथमिकता








है आज पैसा प्रधान 
वर्तमान जीवन शैली में 
सुबह  से ही भागमभाग
 पहिये लग जाते  पैरों में |
  ज़रा भी नहीं ठहराव
 पर कभी न सोच पाए
यह दौड़ भाग किस लिए
केवल धन की प्राप्ति  के लिए |
या किसी और कारण से
है चमक दमक की दुनिया
स्पर्धा में  आगे निकलने की
 जो खुद को पाता दूसरे से आगे |
फूला नहीं समाता अपने कौशल पर
 यत्नों की कोशिश  से सफल होने पर
उसकी  टिकी हैं निगाहें
 नोटों की वर्षा पर |
उनके पीछे दौड़ रहा
 बिना कुछ सोचे समझे
ठोकरें कितनी भी खाए
 वह दर्द सहन कर लेता
पर कदम रोक नहीं पाता |
 उन्हें प्राप्त करने में
येन केन प्रकारेण
 उसे  अमीर बनना है
है यही चाहत मन में
 किसी से नहीं पिछड़ना है |
आशा