22 मार्च, 2020

सामंजस्य







किससे कहें किसको सुने
सभी खुद को समझते
बहुत सिद्धहस्त  विद्वान
 उनसा कोई नहीं है
खुद को सर्वोपरी जान
कुछ अलग विचार रखते हैं
 वे  हर बार अपनी
 बात पर सही होते हैं
किसी का तर्क भी
 उन्हें रास नहीं आता
उसे कुतर्क में बदलते
देर नहीं लगती उनको
पूरे जोश से बहस करते हैं
 खुद ही ठहाके लगाते हैं
यह तक नहीं सोच पाते कि 
तर्क कुतर्क में कब बदला
मेरी स्थिति बहुत विचित्र
 हो जाती है तब  
मौन की शरण में जाना होता है
 या नकली मुस्कान से बातों को
 वहीं विराम देना पड़ता  
नहीं तो क्या लाभ 
बातों को बतंगड़ में बदलने का
कहीं भी शान्ति स्थापित करने के लिए
इससे अच्छा विकाल्प कोई नहीं होता
 बहस वहीं रह जाती है
 शान्ति चारो और फैल कर
 असीम आनंद से भर देती है
है न यह  कितना सरल उपाय
 सब से सामंजस्य स्थापित करने का |
आशा

18 मार्च, 2020

कोरोना

कोरोना फैला
आई बिपदा घोर
डरना कैसा

थामें दामन
स्वच्छता अपनाएं
भय है कैसा

कोई तो होता
सही मार्ग दर्शक
बीमारी फैली

कैसी बीमारी 
क्यूँ पसार रही है 
 अपने पैर 

निगल गई 
बड़ा भाग बीमारी 
मास्क न मिला 

है वायरस 
बहुत  जानलेवा 
प्रभु बचाए

है महामारी
सावधानी जरूरी
 ना कि बीमारी


आशा

17 मार्च, 2020

मिलावट








 मिलावट -आज के युग में जहां देखा  वहीं है मिलावट
कोई नहीं बचा इसकी मार से
जहां जहां पड़े पैर शुद्धता के  
 मिलावट ने गर्दन पकड़ी पीछे से |
जब गेहूं लाए आटा पिसवाया
जल्दी में बीना नहीं  ठीक से
इतनी किसकिसाहट  आटे में थी
कि वह कूड़ेदान के हुआ हवाले |
खाने की सामग्री हो या  कीमती धातु हों
दवाइयां हों या अन्य उपयोग की  वस्तुएं
कोई नहीं बचा इससे
सारा बाजार भरा हुआ  है मिलावटी सामग्री से |
यहां  तक कि भाषा भी नहीं बची मिलावट से
 दो भाषाएँ मिलाकर बात जब तक न हो
कहना सुनना  पूर्ण नहीं होता 
लगता है कहीं कुछ कमी रह गई है|
 विचार स्पष्ट नहीं हो पाया
फिर से कोशिश होती है
 टूटे फूटे आंग्ल शब्दों में
 अर्थ समझाने की |
अब तो अलग अलग  विचारधारायें भी
  हैं  प्रभावित   एक दूसरे के सत्संग  से
 चार दिन का साथ बदल देता है
 सोच का ढंग आम आदमी का |
प्राकृतिक संपदा भी नहीं अछूती इससे
 नदियों  में गंदे नालों के जल की मिलावट  
वायु में प्रदूषण रसायनों का
 सांस लेना हुआ दूभर मनुष्य का |
सारी दुनिया हुई त्रस्त आधुनिकता के जाल से
कोई तो स्थान हो जहां मिलावट ने न डाला हो डेरा  
भगवान के मंदिर को भी नहीं छोड़ा उसने 
प्रसाद में भी  मिलावट की बहुत सरलता से  |
आशा    

16 मार्च, 2020

साँसें


                     साँसों से जुड़ा है
 जीवन का एक एक पल
दिन रात क्षय होती साँसें
 चंद लम्हे भी जुड़े हैं जिनसे |
जो यादों में समाए हुए है
वे खट्टी मीठी यादें 
गहराई तक पैठ गईं मन में  
तभी तक स्मरण रहती हैं
जब तक साँसें रहती हैं
फिर एक ऐसा पल आता है
साँसे हो जाती है विलुप्त  
जो कि है चिर अपेक्षित
तभी कहा जाता है साँस है तो आस है|
हर साँस में एक आशा समाई है
हैं वे बहुत भाग्यशाली
जिन्होंने जिन्दगी का  
 हर पल जिया है |
हर साँस का आनंद लिया है
साँसों को गिन गिन कर
जीवन से  पूरा हिसाब लिया है
जिन्दगी को  भरपूर जिया है |
आशा     

14 मार्च, 2020

कहने को अब रहा क्या








कहने को अब रहा क्या है
किसे है फुरसत मेरे पास बैठने की
 इस कठिन दौर से गुजरने में
मुझ पर क्या बीत रही है
किसी ने कोशिश ही नहीं की है जानने की
मुझे अकेलापन क्यूँ खलता है
कभी सोचना गहराई से
 तभी जान सकोगे मुझे पहचान सकोगे
मैं क्या से क्या हो गई हूँ  
मैंने किसी को कष्ट न  दिया
पर हुई अब  पराधीन इतनी कि
 अब बैसाखी भी साथ नहीं देती 
जीवन से मोह अब टूट चला है 
अब चलाचली का डेरा है
खाट से  बड़ा ही  लगाव हुआ  है
बिस्तर ने मुझे अपनाया है
मैं स्वतंत्र प्राणी थी 
अब उधार के पल जी रही हूँ 
ठहरे हुए जल की तरह 
 एक ही स्थान पर  ठहर कर रह  गई हूँ
 यह सजा नहीं तो और  क्या है ?
आशा


12 मार्च, 2020

भाईचारा

                                       
                                         जब से जन्में साथ रहे
 एक ही कक्ष में
खाया बाँट कर 
कभी न अकेले बचपन  में
खेले सड़क पर एक साथ
 की शरारतें धर बाहर  
गहरे सम्बन्ध रहे सदा
 दौनों के परिवारों में
कहाँ तो एक दूसरे को 
भाई कहते नहीं थकते थे
 दरार कब कहाँ  कैसे पड़ी
 दोनो  जान न पाए
खाई गहरी होती गई
 कम  नहीं  हो  पाई
अब तो एक दूसरे को
निगाह भर नहीं देखते
सामने पड़ते ही 
मुहं फेर कर चल देते हैं
कहाँ गया सद्भभाव और
 आपस में  भाईचारा
 अजब सा सन्नाटा 
पसरा है गली में
 कोई त्यौहार मने कैसे 
रक्षाबंधन दिवाली ईद और होली
मिठाई में मिठास पहले सी नहीं है
 मन में उत्साह नहीं है
रंग सभी बेरंग हो गए 
जब मन ना मिले
न जाने किस की नजर लगी है
 आपस के  प्रेम में
 तिरोहित हुआ है 
माँ बहन मौसी भाभी  का स्नेह
जबतक  भाईचारा  फिर से न होगा
 जीवन में कोई रंग न होगा  
अनेकता में एकता का
 मूल मंत्र सार्थक  न होगा |
आशा