16 जून, 2020

प्रतीक्षा



रातें काटी तारे गिन गिन
थके  हारे नैन  ताकते रहे  बंद दरवाजे को
हलकी सी आहाट भी
ले जाती सारा ध्यान उस उस ओर
विरहन जोह रही राह तुम्हारी
कब तक उससे प्रतीक्षा करवाओगे
क्या ठान लिया है तुमने
उसे जी भर के तरसाओगे |
क्या किया ऐसा  उसने
 जो तुम  समय पर ना आए
या जानना चाहते हो
कितना लगाव है उसको तुमसे
अब और कितनी प्रतीक्षा करवाओगे |
प्रतीक्षा का भी है  अपना अंदाज नया
पर भारी पडा है  यह इन्तजार  उसे
तुम्हारे अलावा सब जानते हैं
जब देखोगे उसका हाल बुरा
बहुत पछताओगे |
अगर जाना ही था तो बता कर जाते
वह इस हद तक परेशान तो न होती
इंतज़ार तो होता अवश्य पर
बुरे ख्यालों की भरमार न होती
रोते रोते उसका यह हाल तो न होता
दिल में  बुरे विचारों की भरमार न होती |
प्रतीक्षा की आदत है उसको  
 क्या होता यदि बता कर जाते
इन्तजार की घड़ी कैसे कट जाती
वह जान ही नहीं पाती
बहुत उत्साह से दरवाजा खोल
मुस्कुरा कर  तुम्हारा स्वागत करती |
आशा


15 जून, 2020

किसने कहा तुमसे





किसने कहा तुमसे
 प्यार नसीब में नहीं मेरे
 है वह बेशुमार तुम्हारे लिए
 पर तुम्हें उसकी कद्र ही नहीं है |
 खिची दीवार थी दोनों दिलों के बीच
अलगाव पैदा हुआ अनजाने कारण से
 इसे मिटाएं कैसे किस लिए
 जितने भी यत्न किये 
 सफलता से दूरी होती गई
 वह पास आकर भी दूर होती गई |
 अपनी भूल पर पश्च्याताप 
क्या ठीक से कर नहीं पाते
 या तुम ही नहीं समझ पाते
 अपने प्यार की ऊष्मा को
 नन्हें सितारा ही काफी हैं
 आसमान में चमकने के लिए
 कोई आवश्यकता नहीं है
 किसी बड़े से चंद्रमा की
 जिसे इतना महत्व् मिलता है
 उसके मुखमंडल पर भी दाग है
 दुनिया के  प्रपंचों से रहे हो दूर
 अब तक फिर हुआ बदलाव अचानक कैसा
 क्या प्रेम की डोर है इतनी कच्ची
 कि मेरी तुम्हें कोई कद्र ही नहीं है |
आशा 

13 जून, 2020

बढ़ती उम्र

सुबह काम शाम काम
ज़रा भी नहीं आराम
  अब होने लगी है थकान
जर्जर  हुआ शरीर |
पीछे छूटे खट्टे मीठे
 अनुभवों के निशान
मस्तिष्क  की स्लेट पर  
पुरानी यादों के रूप में |
समय लौट नहीं पाया
 बहुत साथ दिया उसने  
पहले भी साथ  निभाया  
अब भी निभाता है |
वक्त कब पीछे छूटा याद नहीं रहा
जब तक ताकत थी शरीर में
बढ़ती उम्र के तकाजे से
कब तक बचे रहेंगे |
है यही सत्य जीवन का
कैसे भूल गए 
एक दिन ऐसा भी होगा
 पलग पर पड़े रहेंगे |
 बीते कल की  बातें
 तस्वीरों  की तरह
 एक के बाद एक
आँखों के केनवास पर से गुजरेंगी |
यादें ताजी हो जाएंगी
बापिस बचपन में जाने का
खेल खेलने का मन होगा 
पर केवल कल्पना में|

आशा

 

12 जून, 2020

रणभेरी


                  बीते कल की बात है
कुछ लोग एकत्र हुए
 उस  खेल परिसर में
पहले बातें सामान्य रहीं 
 फिर तंज कसे गए  
एक दूसरे पर आक्षेप लगाए  
वार पर पलटवार होने लगे
 लोगों में टूटा संयम का बाँध
  भांजी लाठियाँ लांघी सारी सीमाएं
ना बड़ों का सम्मान रहा 
 ना  छोटों की फिक्र किसी को
ताल ठोक रणभेरी बजा
 किया युद्ध का एलान
  परिसर परिवर्तित हुआ  रणक्षेत्र में
पहले पत्थरबाजी आगजनी
 फिर  हाथापाई आपस में
देशी कट्टों से भी
 कोई परहेज नहीं  
खून खराबा तोड़ फोड़ से
 हुए जब त्रस्त कुरूक्षेत्र में 
 मारपीट हुई सामान्य सी बात
जब सारी  सीमा पार हो गई  
कुछ लोग मध्यस्तता करने पहुंचे
जब बीच बचाव से काम न चला
 अश्रु गेस के गोले दागे
 भीड़ तंत्र ने सर उठाया
बल प्रयोग अंतिम स्रोत बना
 उसे नियंत्रित करने का 
शान्ति तो स्थापित हुई
 पर बहुत समय के बाद
किसी ने न सोचा
 नुक्सान हुआ  किस का  
हाथ  कुछ आया नहीं
 ना ही कोई लाभ हुआ
 बरबादी का आलम पसरा
जाने कितनों की जान गई
जान माल की हुई तवाही
रण से हुई   क्षति भारी |
आशा





11 जून, 2020

स्वतंत्रता


हुई स्वतंत्र अब  आत्मा
जन्म मरण से हुई  मुक्त
अब बंधक नहीं शरीर की
असीम  प्रसन्नता हुई आज  |
वह बंधन नहीं चाहती
उन्मुक्त विचरण  की है चाह
स्वतंत्र रहना चाहती है
किसी तरह की रोक टोक
ना आई उसे रास  |
जब भी जन्म लिया धरती पर
खुद को पाया ऐसी कैद में
ना ही  खुल कर हंसी कभी
ना हुआ कभी  खुशी का एहसास उसे |
भवसागर में ऐसी उलझी
सुख दुःख के चक्कर में
जिन्दगी जीना भूली
म्रत्यु का बंधन रहा सदा |
अब तोड़ आई है सब बंधन
स्वतंत्र जीवन जीने के लिए
 किसी बंधन का दंश
अब नहीं सालता उसे  |
यूं ही नहीं लिए फिरती थी
इस  पञ्च तत्व  का बोझा उठाए
था कर्ज पिछले  जन्म का
जिसे चुकाना था उसे  |
अब कोई अहसान नहीं है किसी का  
नहीं है कोई बोझ दिल पर
निश्चिन्त हो कर रह सकती है
स्वतंत्र विचरण कर सकती है |
है  स्वतंत्र किसी बंधन में बंधी नहीं है
भव सागर के चक्र से दूर 
पर फिर भी अकेली नहीं है
 ईश्वर  है  उसके   साथ |
आशा |