25 जून, 2020

पलट कर जब देखा उसने

                               पलट कर जब उसने  देखा विगत में
यादों का पिटारा  खुलने लगा
पहुच गया उसका मन मस्तिष्क
बीते  दिनों की यादों में |
पहले कल्पनाओं  में खोई रहती थी
सुख निंदिया सोई रहती थी   
रही  वास्तविकता से दूर बहुत
जीवन कितना है कठिन कभी सोचा नहीं  था |
एक दिन चिलचिलाती धुप में
पैर पड़े जब कठोर  धरा  पर
वास्तविकता से हुआ सामना
झुलसा तन मन ऊष्मा की तीव्रता से |
पहले  वह सहन न कर पाई
उलटे पैर पलायन का हुआ मन
 सोचा जाने क्यूँ 
मुसीबत गले लगाई|
 फिर विचारों ने करवट बदली
और लोग भी तो जीते है
उसी घुटन भरे माहोल में
फिर वह क्यूँ पीछे हटने की सोचे |
तब दृढता से कदम उठाए आगे बढी
 बापसी का ख्याल न आया मन में
यही दृढ़ता आत्मसंयम तो जरूरी है
 किसी  कार्य को प्रारम्भ  करने में   |
आशा





24 जून, 2020

जब भी कोरा कागज़ देखा





जब भी कोरा कागज़ देखा
पत्र तुम्हें लिखना चाहा
लिखने के लिए स्याही न चुनी
आँसुओं में घुले काजल को चुना
जब वे भी जान न डाल पाये
मुझे पसंद नहीं आये
अजीब सा जुनून चढ़ा
अपने खून से पत्र लिखा
यह केवल पत्र नहीं है
मेरा दिल है
जब तक जवाब नहीं आयेगा
उसको चैन नहीं आयेगा
चाहे जितने भी व्यस्त रहो
कुछ तो समय निकाल लेना
उत्तर ज़रूर उसका देना
निराश मुझे नहीं करना
जितनी बार उसे पढूँगी
तुम्हें निकट महसूस करूँगी
फिर एक नये उत्साह से
और अधिक विश्वास से  
तुम्हें कई पत्र लिखूँगी
जब भी उनको पढूँगी
मैं तुम में खोती जाऊँगी
आत्म विभोर हो जाऊँगी |
आशा

23 जून, 2020

हाईकू

 १-हो बेमिसाल
कोई नहीं तुमसा
तेरे प्यार सा

२- माँ की ममता
कोई उससा नहीं
 उसके सिवाय

३- आँचल तेरा
इतना हैविस्तृत
नापा न जाए

४ -प्यार ही प्यार
फैला है यहाँ वहां
नफरत  ना

५--नयन मूँद
 हो योग की मुद्रा में
करो ध्यान


६ -सावधान हो
कोरोना से  बचाव
है आवश्यक

आशा




22 जून, 2020

जिन्दगी है कितने दिनों की






जिन्दगी के होंगे कितने दिन
कोई भी  बता नहीं पाता
जन्म की तारीख तो याद रह जाती है
पर मृत्यु अथिति सी आता है
 आहट तक नहीं होती उसके आने की
परिजनों को रुला कर चली जाती है
खुद को तो यह  अहसास भी नहीं होता
कब कहाँ कैसे आई
आँखें बंद होते ही प्राण छूटते ही
 मनुज खो जाता है
गहन अन्धकार के आगोश में
वह तब क्या सोचता है
आज तक कोई नहीं जान पाया
यह अनजानी गुत्थी है
कोई भी  हल नहीं कर पाया
 इस अवस्था से बाहर निकल
किसी ने बयान नहीं किया
आखिर वह कहाँ रहा कैसे रहा
 अनुभव इन पलों का  
                  अपने  साथ ही ले गया |
                      आशा  

आशियाना






आशियाना

की थी कल्पना 
 एक छोटे से आशियाने की 
हुई  साकार 
 पर पापड़ बहुत  बेलने पड़े
आखिर सफलता मिल ही गई 
उस की खोज में
 जितना सुकून मिला वहां आकर
 शब्द कम पड़ जाते हैं
 उसकी प्रशस्ति में
सोचा न था
 कभी वह अपना होगा
अपने ऊपर भी
 खुद की छत होगी
सुख शान्ति और प्रगति होगी
कल्पना थी एक छोटे से घर  की
घिरा  हुआ चारो ओर 
 हरियाली से फूलों भरी क्यारियों से 
 हों सारे क्रिया कलाप वहीं
 सुबह से शाम तक
दोपहर में  चारपाई पर 
बैठ बुनाई करू
सारे सपने साकार  करूँ 
 जब गृहप्रवेश किया
पाकर आशीष प्रभू का
 शीश नवाया पूरी शिद्दत से |
आशा

21 जून, 2020

आस्था





आस्था है मन की  मर्जी
किसी पर थोपी नहीं जाती
जिसकी जैसी सोच हो
वह वहीं ठहर जाती |
आत्मविश्वास सुद्रढ़ हो जब
 कोई नहीं बदल सकता उसे
मन का मालिक है वह
अच्छे बुरे का है  भान 
तभी सफल है जिन्दगी
 यही उसका प्रमाण |
कब होता  आस्था का जन्म  
यह भी निश्चित नहीं होता
किस  में हो किस पर हो
कहा नहीं जा सकता |
किशोरावस्था  में कोई
 बहुत मन पर छाता
वय  परिवर्तन के साथ
 बदल जाते है भाव
यौवन में किसी पर
अंध विश्वास तो होता है
पर आस्था नहीं|
यह होती आवश्यकता
उम्र के अंतिम पड़ाव की
तभी याद आते पाप पुन्य
जो भी किये पूरे जीवन में
आस्था का जन्म होता  
भगवत भजन याद आते
रह जाते जाने अनजाने  में
आस्था रूप बदल लेती भक्ति में
यही है कहानी आस्था की |
asha

18 जून, 2020

जीवन क्षण भंगुर


    

नीला समुन्दर नीला आसमान
धरा बहुरंगी इंद्र धनुष सामान
आशा उपजती उसे निहारने की
समस्त रंग जीवन में उतारने की |
 यह जीवन भी  है क्षणभंगुर
जाने कब साँसें थम जाएं
शरीर अग्नि की भेट चढ़े
 पञ्च तत्व में विलीन हो जाए |
इस ज़रा से जीवन के हर पल का
पूर्ण आनंद लेना चाहती हूँ मैं
जिस रंग से हो अधिक लगाव
उसमें ही खोना चाहती हूँ मैं |
चंचल मन सोच नहीं पाता
किस रंग से है उसका गहरा नाता  
हुआ  है हाल बच्चों सा किसे दूं वरीयता  
फिर भी जो  जिद्द ठानी है उसकी पूर्ती करूँ |
कभी जल या  नभ कभी धरा पर विचरण करूं
हर रंगबिरंगी वस्तु मुझे  करती आकृष्ट
किसे लूं अपनाऊँ आत्मसात करूं
मैं कोई पल गवाना नहीं चाहती |
मुझे हर पल का हिसाब रखना है
जितना हो संभव उसका सदउपयोग करूं
है आकांक्षा प्रवल  इस  जीवन  को भरपूर जिऊं
क्या भरोसा कब साँस की लड़ी टूट जाए
मेरे सारे अरमान तो पूर्ण हो जाएं |
                        आशा