शेष हुए अनुयाई तुम्हारे
क्या कोई रिक्त स्थान नहीं
बचा है हमारे लिए |
२-प्रतिभा की कोई कद्र नहीं
अकुशल सर पर नाच रहे
है यह कैसा न्याय प्रभू
तुम हमें क्यूँ नकार रहे |
३-तुम्हारे दर पर खड़ा याचक
चाहता वरद हस्त तुम्हारा
,कोई कितनी भी आलोचना करे
पर तुम न बदल जाना |
४-बासंती पवन चली चहुओर
खेतों में और खलियानों में
वासंती पुष्पों ने घेरा सारे परिसर को
मन हुआ अनंग किया विचरण बागों में |
आशा