16 फ़रवरी, 2021

क्षणिका

 


                                                            है शक्ति तुम्हारी राधा  रानी 
                                                            भक्ति रूप में मीरा पहचानी 

   शेष  हुए    अनुयाई तुम्हारे

 क्या कोई रिक्त स्थान नहीं 

  बचा है हमारे लिए |

२-प्रतिभा की कोई कद्र नहीं 

अकुशल सर पर नाच रहे 

है यह कैसा न्याय प्रभू 

तुम हमें क्यूँ नकार रहे |

३-तुम्हारे दर पर खड़ा याचक

चाहता वरद हस्त तुम्हारा 

,कोई कितनी भी आलोचना करे 

पर तुम न बदल जाना |

४-बासंती पवन चली चहुओर  

खेतों  में और खलियानों में

वासंती पुष्पों ने घेरा सारे परिसर  को 

मन हुआ अनंग किया विचरण बागों में |

आशा  

 

15 फ़रवरी, 2021

पेम प्रीत स्नेह प्रणय भक्ति

 


प्रेम,प्रीत प्यार भक्ति स्नेह  केअर्थों में

  थोड़ा ही अंतर होता है वह भी जिस ढंग से

प्रयोग किये जाएं कैसे सही प्रयोग हो

किस के लिए उपयोग में आएं |

मन में उठती  आकर्षण की  भावनाएं

मोहताज नहीं होतीं किसी संबोधन की 

हर शब्द है अनमोल

 


उन्हें व्यक्त करने के लिए |

प्रीत  प्रेम होते  निहित भक्ति में

अवमूल्यंन उसका नहीं किया जाता

स्नेह है शब्द बहुत सीधा सरल

बडे छोटे सभी के लिए उपयोग में आता |

इसमें आसक्ति की भावना नहीं होती

प्रियतम प्रिया आसक्ति दर्शाते अपनों में

सामान उम्र के लोगों   को प्रिय होते

पर हर रिश्ते के लिए नहीं |
एक ही शब्द भावात्मकता दर्शाता

 जिसकी है जैसी नजर वही उसे वैसा नजर आता  

प्रणय प्रीत की भावना होती केवल अपनों के लिए

गैरों के लिए किये उपयोग गलत मनोंव्रत्ति दरशाते |

आशा

14 फ़रवरी, 2021

प्रणय दिवस

दिल से दिल मिले

मन बगिया में फूल खिले

पर एक कमी रही आज  

लाल गुलाब नहीं मिले |

 सोचा लाल गुलाब ही विशेष क्यूँ ?

 प्रणय दिवस के इजहार के लिए

 एक ही सप्ताह किस लिए ?

क्या  जिन्दगी पर्याप्त नहीं है

प्यार के इजहार के लिए |

प्यार के लिए योवन ही क्यों ?

बचपन बुढापे में इससे दूरी क्यूँ ?

गुलाब का लाल रंग ही

केवल प्रेम नहीं दर्शाता

हैं सभी रंग के पुष्प

 परिचायक प्रेम प्रीत के |

आशा

13 फ़रवरी, 2021

तुम्हारा वंदन

 


 हे हरी तेरा वंदन

 मन को बड़ा सुकून देता

ज़रा समय भी बदलता

बेचैन किये रहता है |

है कितना आवश्यक

सुमिरन तुम्हारा

 समय पर ध्यान तुम्हारा   

आदतों में सुधार होता है |

 फिर पूजा करो या अर्चना

 प्रातः उठते ही  

याद आ जाता है

आज क्या करना है |

एक तो नियमित जिन्दगी होती

सभी कार्य समय पर  होते   

किसी का  कोई तंज

 सहना नहीं पड़ता |

अब जिन्दगी बेजान

 नजर नहीं आती

जिन्दगी में रवानी आती|

 है यही उपलब्धी बड़ी

जो  जाने अनजाने में

आदत में शुमार हो जाती 

 अपना पंचम फहराती |

 बहुत सी समस्याएँ

हल  हो जाती हैं  

कष्ट कम होते जाते हैं

तुम्हारे पास होने से |

वरदहस्त तुम्हारा जब  रह्ता सिर पर

 मै  वही नहीं रह्ती

तुममें इतनी खो जाती हूँ

दुनियादारी से दूर चली  जाती हूँ |

अपनी इच्छाओं अभिलाषाओं को  

जानने  लगती हूँ

है क्या स्वनियंत्रण

पहचानने लगती  हूँ |

आशा 

11 फ़रवरी, 2021

फूलों के रक्षक


 जब मिलना चाहो फूलों से

काँटों पर से गुजरना होगा 

काँटे है संरक्षक उनके

पहले उनसे निवटना होगा |

शूल की चुभन सहना सरल नहीं है

वह ह्रदय की व्यथा बढा देते हैं

पर उनपर से गुजरने की

 असलियत समझा देते हैं |

उनके सानिध्य में आने से क्यूँ डरते हो

फूलों तक पहुँचने के लिए

उनसे मित्रता तो करनी ही  होगी

नहीं तो यह प्रेम कहानी

अधूरी ही रह जाएगी |

आशा

 

10 फ़रवरी, 2021

अग्नि परिक्षा

हर युग में महिलाओं ने ही  दी है  अग्निपरीक्षा

अपनी शुचिता  सिद्ध करने के लिए

 यह केवल महिलाओं तक ही सीमित क्यूँ ?

किसी कार्य को सही बताने के लिए |

  कठिन परिक्षा केवल उन्हीं के लिए क्यों ?

क्या पुरुषों  से कोई गलती कभी होती ही नहीं

जब होती है  उसे अपना अधिकार मान लेते है

क्षमा माग पतली गली से निकल लेते  है

उन्हें  यूं ही छुटकारा मिल जाता है |

हर बात की सच्चाई साबित करने  के लिए

महिलाओं पर ही नियम  थोपे जाना

उन्हें  दूसरे  दर्जे की नागरिक समझना

है यह न्याय कहाँ का ?

सतयुग में सीता ने दी थी अग्निपरीक्षा

अपनी  पवित्रता के  प्रमाण के लिए

 भूल हुई  थी उनसे लक्ष्मण रेखा पार  कर

यदि कहना माना होता इतने कष्ट न सहना होते

राम रावण युद्ध न होता |

पुरुष और महिला दौनों   को ही जूझना पड़ता है

हर कठिन समस्या से गुजरना पड़ता है सामान रूपसे

कहने को  महिलाओं की आजादी बढ़ी है

पर सच्चाई है  कितनी |

बाहर महिला उन्नयन की बातें जो करता है

वही घर में महिलाओं पर अत्याचार करता है

दोहरी नीति अपनाता है

यह दोहरी मानसिकता क्यूँ ?

अग्नि परिक्षा देनी हो तो दोनो दें महिला अकेली क्यूँ ?

आशा 















09 फ़रवरी, 2021

चाह मन की


                                                           ना रहा अरमां कोई तब

ना कभी कोई कमी खली

बस एक ही लक्ष रहा

कोई कार्य  अधूरा ना  रह जाए |

दिनभर की  व्यस्तता

कभी समाप्त नहीं होती थी  

 बिश्राम तभी मिलता था

जब आधी रात बीत जाती |

भोर की लाली दस्तक देती

 खिड़की के दरवाजे पर  

पक्षियों का कलरव भी

 आँगन में बढ़ने लगता था |

 अब  समय का अभाव नहीं है

जीवन की गति भी धीमी  है

पर मस्तिष्क बहुत सक्रीय हुआ है

सोच का दायरा  बढ़ा है |

बस यही विचार मन में आते हैं

क्या कुछ छूटा तो नहीं है ?

कोई कार्य अधूरा न रह जाए  

व्यर्थ का  अवसाद मन में न रहे

स्थिर मन मस्तिष्क रहे 

 चिर निंद्रा के आने तक |

आशा