07 मई, 2021

था एक अरमान


 

था  अरमान 

किसी बड़े आदमीं 

से मिलने का  

जल्दी ही  पूर्ण  हुई

यह चाह भी

देखी एक सूचना 

 अख्बार  में

देखी  आँखों में खुशी  

हुई   तैयार

इच्छा पूर्ति के लिए   

 अब  है पूर्ण     

 मन संतुष्ट हुआ 

ख़ुशी छाई है  

छोटी छोटी बातों से

हुआ आनंद 

खुशी का जमाबडा

इतना बढ़ा     

मन में न समाया

है  अनुपम   

इसका नहीं मोल

नहीं है ख्याल 

 ना  ही कल्पना में है

 सरल  दिखा 

 मन में  दुःख  छिपा      

  है तरीका  खुश  होने का

यह पल सहेजो

           है  अनुभूति              

 था अरमान यही

जो पूर्ण  हुआ  |

आशा 

06 मई, 2021

सच्ची भक्ति



नृत्य संगीत से सजा है जीवन गीत

कभी कहीं तो गीत गाता ही है

जिसमें रुझान नहीं संगीत के प्रति

उसका जीवन  है रूखा नीरस सा |

नृत्य से आत्मसंतुष्टि मिलाती है

 नियमित हो जाता है व्यायाम

तन मन  में  आजाती है स्फूर्ति

मन महक उठता है फूलों की सुगंध सा  |

भजनामृत में हो  मगन भक्ति भाव में डूबते

नजदीक होते प्रभू के सच्चे दिल से ध्यान करते  

प्रभु को भी रहता ध्यान  ऐसे ही भक्तों का

जो दिल से सुमिरन करते हर समय बैठते उठते |

 भक्ति में जो सुख मिलता है चौसठ मिष्ठानों से  नहीं

सच्चे मन से की सेवा से अच्छा  कोई कार्य नहीं

भूखे को भोजन देना वस्त्र दान करने से बहुत पुन्य  मिलता है

 गौ धन की सेवा करने से बड़ा कोई पुन्य कार्य नहीं है |

सच्चा भक्त है जो दिल से करे  वे कार्य

जिन से परहित की भावना जुडी हो

निस्वार्थ भाव से किये कार्य मन को सुकून देते हैं

वे सब भगवान के बहुत नजदीक होते हैं |

आशा  

नृत्य दिवस



                                                                        १- मोर नाचता 

छम छम करता 

पंख फैलाए 

२-नृत्य का रंग 

मन मस्त करता 

सारा जीवन   

३-नृत्य संगीत 

मुदित करे मन 

नृत्य खुशी दे 

४-आल्हादित हूँ 

 आज है नृत्य दुवस 

भाग लिया है 

५-नृत्य किया है 

टबले  की थाप पर 

समा बांधा है 

६-ताल पे ताल 

ठुमके पर ठुमके 

बोल मधुर 

७-दीपक नृत्य 

जब किया था मैंने 

प्रशंसा पाई 

आशा 



 



04 मई, 2021

कोई रिक्त स्थान नहीं




 

चहरे से पर्दा हटा

किसी ने कहा था कभी

उसे तुम से प्यार है

तुमने जबाब दिया था

 हंस कर |

आगे जाओ 

यहाँ कोई स्थान  रिक्त  नहीं  |

वह मन मसोस कर रह गया

आँखों में छलके  अश्रु

चालाकी से उसने

उन्हें छिपा लिया |

पर तुमसे नहीं

 छिप् पाए आंसू

इशारों से अपनी

 व्यथा कथा बता गए |

मन ने सोचा

 इतनी सी बात भी

न दिल में रख पाए

फिर खुद को बहुत

चतुर कैसे कहते 

आशा 

03 मई, 2021

मन चंचल

 


 हरियाली ने मोहा मन मेरा

 आगे बढ़ने न दे

कोई तो कारण होगा

 इसका खोजना होगा   

 पैरों में बंधन क्यों 

 बेड़ियाँ लगी है

हाथ भी बंधे हैं खुलते नहीं हैं  |

यह बंधन मन से स्वीकारा है

या किसी दौर से गुजरे लोगों से

यह अब तक  तक स्पष्ट नहीं

बंधन मन से हो तब कोई बात नहीं  

पर थोपे गए बंधन

 स्वीकार नहीं मन को |

मन तो चंचल है

 विद्रोही हो जाता है

 कहने से नहीं चलना चाहता

 मनमानी करता  

यही दुर्गुण कष्टकर 

होता जीवन में

जितनी भी कोशिश करूं

 व्यर्थ हो जाती है |

समय यूँ ही नष्ट होता

 किसी का क्या जाता

मन अपनी मर्जी से

 चलता रुकता

कुछ नया करने का 

मन न होता

 हरियाली देख मन

 यहीं ठहर गया है

आगे जाने की श्रद्धा

नहीं है क्या करू?

यहाँ की हरीतिमा 

जो कुछ देती है मुझे

मन तरोताजा हो जाता

 प्रसन्नता देता है

 खुशी से दमकता चेहरा 

पर्याप्त है मेरे लिए

यही मेरे मन को

  संतुष्टि देता है |

02 मई, 2021

हाइकु

 

१-श्याम सलोना

माखन चोर हुआ

बच न पाया

२-कृष्ण के सखा 

धेनुओं  को चराते

रास रचाते

३- राधा की छवि

मन बाँधे रखती

बंसी  की  धुन  

४- कदम्ब तले

मुरली  सुनते  हैं  

गोप गोपिका 

५-हरी को भजो

ध्यान केन्द्रित करो

एकाग्र मन 

६-  न्योता  दिया है

  कंस नगरी आना 

मित्र उधो ने 

 ७- राज्य  अशान्त

   अत्याचार बढ़ा  है

   निदान करो  

८-प्रजा   तुम्हारी   

 अराजकता फैली

जनता दुखी 

९- कब आओगे

मनमोहन मेरे

मथुरा जी में   

आशा 

01 मई, 2021

जन्म दिन मेरा

 


पल पल बीता दिन

 सप्ताह गुजरे महीने बीतें

गुजरे वर्षों ने विदा ली

 फिर आई है सालगिरह  |

बचपन में बहुत उत्साह रहता था 

वर्षगाँठ मनाने का

अम्मा पटले पर बैठातीं

 पूजा की अलमारी से

एक कलावा निकालतीं  |

 उसकी पूजा करके

 एक और गठान लगातीं थीं

मुझे तिलक लगातीं थी

 मुंह मीठा करवातीं थी |

नई फ्राक पहन खुश हो

 मैं सब को प्रणाम करती थी

बाबूजी सर पर हाथ फेर

  बहुत  दुआएं देते थे  |

ऐसी  सालगिरह आए बार बार

इसी प्रकार मनाई जाए

 जैसे जैसे उम्र बढी

  पैर ठोस धरातल पर  पड़े  |

सुख दुःख  झेलते बीते कई वर्ष

 आया अंतिम पड़ाव जीवन का

 कोई उत्साह नहीं रहा अब तो 

सालगिरह मनाने का  |

सोचा  और कितनी सालगिरह

मनेंगी मेरे जीवन की

न कोई उत्साह रहा

न ही आयोजन  की ललक  |

मन ही नहीं होता कुछ करने का 

बाक़ी  दिनों की तरह गुजर जाएगा यह दिन भी

लोग फोन कर शुभकामनाएं देंगे

 और मैं धन्यवाद|

अब ना तो अम्मा बाबूजी रहे

 ना ही मेरा बचपन  

 काटे नहीं कटता समय

 नए ख्याल लिए रचना का जन्म होता है  |

 स्वर्णिम यादों को कविताओं में पिरो कर

 नया रूप देती हूँ

 यादें है मेरा छुपा खजाना

उनमें ही प्रसन्न रहती हूँ  |

आज जीवन जी रही हूँ

 यादों को शब्दों में समेट के

कविता में लिपिबद्ध करके 

नवीन रूप दे कर जीवन्त करके |

आशा