10 जुलाई, 2021

नारी --"एक अपेक्षा तुमसे"


                                                                तेरा जलवा है ही  ऐसा

निगाहें टिकती नहीं

तेरे मुखमंडल पर

फिसल जाती हैं उसे चूम कर |

कितनी बार कहा तुम से

अवगुंठन न हटाओ अपने आनन से

कोई बचा न पाएगा तुम्हे

जमाने की बुरी नजर से |

कब तक कोई बचाएगा तुम्हे

दुनीया की भूखी  निगाहों से

किसी की जब निगाहें  

  भूखे शेर सी तुम्हें खोजेंगी|

तुम मदद की गुहार करोगी  

 चीखोगी चिल्लाओगी सहायता के लिए  

पर कोई भी सुन न पाएगा

जब तक खुद सक्षम न होगी |

आज के युग में कमजोरी का लाभ 

 सभी उठाना चाहते हैं  

 दुनीया का सामना करना होगा

तभी सर उठाकर जी पाओगी |

हो आज की सक्षम नारी

यह कहना नहीं है मुझे  

केवल इशारा ही काफी है

 बताने की आवश्यकता नहीं है |

सर तुम्हारा  गर्व से उन्नत होगा

आनन दर्प से चमक  जाएगा  

सफलता कदम चूमेगी तुम्हारे

हो आज की नारी कमजोर नहीं  हो | 

घूंघट हटे न हटे पर 

चहरे पर आव रहे 

नयनों  में हो  शर्म लिहाज 

है यही अपेक्षा तुमसे  |

आज भी हो सक्षम और सफल 

कल होगी और अधिक हिम्मत 

किसी से न भयभीत हो

 दृढ़ कदम हो समाज में जी पाओगी |

आशा

09 जुलाई, 2021

सौंधी सी खुशबू मिट्टी की


आसमान में घिर आए 

काले मेघ लगे  सुहावन

मंद बेग से हवा चली

 वर्षा  की झड़ी  लगी  |

आसपास की बगिया की 

सोंधी महक मिट्टी की आई

 पौधों ने किया स्वागत हरियाली का 

 दिल का कौना कौना  हरषाने लगी 

 शिद्दत से रहा था  इंतज़ार

 सावन के आने का 

बागों में हरियाली छाने का

झूले पर पैंग बढाने का |

सारी सहेलियां एकत्र हुई 

ढोलक बजने लगी अंगना  में 

कजरी गीत गाने लगीं  समूह में 

 स्वरों  की गूँज उठी व्योम में |

मोरों  की थिरकन दिखी बागों में 

पपीहे की स्वर लहरी सुनी 

कोयल की मधुर तान भी पीछें न  रही 

पूरा पर्यावरण हुआ संगीतमय |

                                    थी  एक विरहण ही  उदास 

सड़क पर टकटकी लगा देखती 

 बैठी बात जोहती 

अपने प्रियतम के आगमन की |

हलकी सी आहट  से भी हो बेचैन 

 निगाहें टिकी रहतीं दरवाजे पर 

सोचती कारण बिलंब का 

एक कागा आ बैठा दीवार पर |

दीवार पर बैठे कागा की 

 आवाज सुनी जब   

उसके आगमन की पूर्व सूचना जान   

खुशी समेट  न पाती |

हरी भरी घरती सावन में 

जीवन्त नजर आती 

मन में  खुशी न समाती

 प्रियतम के आने की |

आशा 




















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08 जुलाई, 2021

सूना सारा जग लगे

                                         सूना सारा  जग लगे

तेरे बिना मन उसका भागे  

भीगे चंचल  स्वभाव

 नन्हीं बारिश की बूंदों में |

है यह  कल्पना मात्र

या किसी का ऐसा  झुकाव

 पैदा हुआ जो आकर्षण से

या पहली दृष्टि  के प्यार से |

एक ही  विशेषता रही यहाँ  

कोई झाँक  न सका उसे चिलमन से

एक तरफा लगाव रहा अवगुंठन में

बचा रहा  दुनिया की काली नजरों से |

वह खुश हुआ यह जान कर 

किसी ने ध्यान न दिया ऐसे लगाव पर

बात परदे में ही छुपी रह गई

दुनिया में रुसवाई न हुई |

आशा

07 जुलाई, 2021

सुकून दिल का


सुहानी रात ही में

वह  खोजाता

 सुकून ह्रदय  का    

जब  देखता

आसमान का  चाँद

रहा चमक    

पूर्णिमा की चांदनी

चमकाती है

  हर कण धरा का

आधी रात  में

जब सभी सोजाते

वह आनंद लेता  

चाँद की  किरणों का

 चन्द्र किरणे

अटखेलियाँ करतीं  

केशों की लटें

चूमलेतीं आनन

 खेल  प्रिय था

दिल की धड़कन

बढ़ने लगीं

चन्द्र  किरणें लौटीं  |  

आशा

  

06 जुलाई, 2021

प्यार का दिखावा



 


कौन जाने कब तक होगा

इस प्यार का समापन

बड़ा  अजीब सा  लगता है

 दिखावा प्यार के इजहार का |

कुछ नया करने का सोच मन के

सर चढ़ कर बोलता है

पर कोई नहीं जानता

इसका अंजाम क्या होगा  |

दिन रात जपी जाए

माला प्यार की उसकी

कुछ निष्कर्ष न निकला तब भी  

पहुँच न सके उस तक कभी |

बहुत दुःख होता है

जब प्यार नजदीक आते ही

हाथों से फिसल जाता है

मन हाथ मलते ही रह जाता है |

प्रश्न है कि  प्यार का यह  दिखाबा

कितना सफल होगा जिन्दगी में

 कैसे छा पाएगा जिन्दगी जरासी में

 प्यार  विशाल व्योम सा मेरे नन्हें मन में |

आशा

 

 

 

 

05 जुलाई, 2021

प्यार (हाइकु )

 


१-प्यार का रंग

होता है सुर्ख लाल

मनभावन

२-गीत प्यार के

जब गुनगुनाते

मन खुश हो

३-प्यार वैराग्य 

दौनों मन पे  बोझ  

बढाते रहे

४-तेरे प्यार मे

    सम्हल नहीं  पाए 

 गर्त में फंसे

५-प्यार का रंग

इतना आकर्षक

किसके के लिए

६-प्राणों  से प्यारा 

लगता इकरार 

तेरा मुझको 

आशा 



04 जुलाई, 2021

यादों की बरात चली


यादों  की बरात चली

बैंड  बाजों के साथ

मैं चला ले कर जखीरा साथ

बीते कल की यादों का |

घोड़े पर बैठ कर दीखती

 क्या शान  है

मधुर  स्वर में बज रहा

हर साज आज है |

पीछे चले घरवाले

गीत संगीत का आनंद लेते

लोकगीतों का मजा उठाते

 दूरी मालूम ही न पडी |

दुलहन का घर आते ही

हुई थकान पर क्या करूं

इतना तो चलना बनाता ही है

 बिना दूल्हा  क्या रौनक होती  बारात की |

हर पल याद पुरानी आती

पुरानी घटनाएं

 मन पर हो सबार

उन्हें और उछाल देतीं |

मन का बोझ तिल भर भी

 कम न होता

तुम्हारी कमी कैसे पूरी होती

तुम्हारा स्थान  भी 

कोई ले नहीं सकता  |

आशा

 

 

 

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