18 अगस्त, 2021

बन्धनो न्मुक्त आनंद


 खुले न बंधन तुम्हारे हाथों के

देख रहा हूँ  मैं

बेड़ियों से भी दूरी नहीं है

समझ रहा हूँ मैं |

जब तक बंधन मुक्त न होगी

तुम कैसे जी पाओगी

उन्मुक्त हो समाज में विचरण

 कैसे कर पाओगी |

खुद का अस्तित्व कैसे खोजोगी 

 पराधीनता में घुट कर जियोगी

मुस्कान का मुखौटा लगा चहरे पर

चह्कोगी नकली व्यबहार करोगी |

अस्तित्व  खोज अधूरी रही यदि

 आगे कैसे बढ़ पाओगी    

क्या रखा है ऐसे बंधनों में

कि तुम्हारा  वजूद ही खो जाए |

 उन्मुक्त जीवन से बड़ा क्या है

अनावश्यक बंधन देते त्रास

नियम समाज के बिना सोचे

 अपनाने में है आनंद क्या   |

इस दुनिया में आते ही  

वर्जनाओं की झड़ी लग जाती

सब समाज का अपना क्या है

आज तक जान नहीं पाया   |

विपरीत परिस्थिति में 

तुम्हें अपनया  है 

पर तुम्हारे लिए कुछ कर न पाया 

है बड़ा संताप मुझे |

आशा 

 

 

 

 

   

 

 

17 अगस्त, 2021

भूल मेरी


 


दिन में सपने सजाए

बड़े अरमान  से

कल्पना में भी  उड़ी व्योम में 

कोई कमी न रही |

ऐसा मैंने सोचा था

खुद को अधिक ही

 सोच लिया था 

यहाँ मैं गलत थी |

यह तो  स्पष्ट हुआ

स्वयं के  आकलन से

 भूल इतनी बड़ी  

कैसे हो गई  |

सोचने को विवश हुई

मैंने सही आकलन न किया

खुद को समझा अधिक

सही हल न निकाला |

 सोच कर जब देखा

खुद की भूल समझआई

 उसे कैसे सुधारूं

 आज तक जान नहीं पाई |

 बीता कल लौट नहीं पाता

  मैंने जान लिया है

अब  खुद की भूल को

सुधार लिया है |

आशा

 

 

16 अगस्त, 2021

हाइकु



नमन तुम्हें

शहीद भारत के
है गर्व मुझे

देश हित को
दी प्राथमिकता है
सफल रहे
शत्रु से किया
सावधान देश को
वक्त रहते

भारत देश
शहीदों का देश है
है देश प्रेम

देश भक्ति का
जज्बा हर प्राणी में
मन हर्षाता

श्रद्धा सुमन
अर्पित तुमको हैं
हुए शहीद

आशा तुमसे
बहुत है देश को
अमर वीर
आशा


Sopoensiorhed 

कोरे पन्ने कॉपी के


 

कॉपी के कोरे  पन्ने

कोरे ही रह गए

मगर कुछ

लिख नहीं पाई |

यत्न तो बहुत किये

पर परिपक्वता

 न मिली लेखन को

मेरी नादानी से |

मन विषाद से भरा 

असंतोष जगा

भावों को समेट नहीं पाई

शब्दों के जालक  में |

बहुत मन था

कुछ विशेष करने का

सब से हट कर

कुछ लिखने का |  

 ऐसा न हो पाया

उम्र के तकाजे ने 

धोखा दिया अधबीच में 

 भाग्य साथ न दे पाया|

 स्वास्थ्य ने साथ न  दिया

भावों को उड़ान  न दे पाई  

अभिव्यक्ति कुंठित हुई

 खुद भावों में सिमटी रही |

जब आत्म मंथन किया

किसी हद तक

सफल तो हुई पर

 उत्तंग  शिखर तक ना पहुंची |

 जो कमी  लेखन में रही

मैं जान तो गई

फिर भी उससे दूरी

बना न सकी |

 बोई बेल को आज तक 

परवान न चढाया मैंने

समय पा वह मुरझाई

फल न दे पाई  |

कोरे पन्ने कॉपी के 

कोरे ही रह गए

मेरी पुस्तिका के

 पन्ने सारे भर न पाए |

आशा 

   

15 अगस्त, 2021

जन्म से मृत्यु तक



जन्म मरण के बीच

मीलों का फासला

कैसे किसी ने तय किया

वही जानता होगा |

आज तक कोई

वहां जा कर

लौट न पाया

बड़े प्रयत्नों से 

 भूले भटके जो लौटा |  

बड़ा  विश्लेषण

वहां का करता

बड़े चाव से सत्य का

चित्रण करता |

किसी ने विवरण

 दिया भी तो

 नमक मिर्च लगा कर 

किस्सा सुनाया |

है कितनी सच्चाई  

उस विवरण में

आज तक

जान न पाई |

उत्सुकता और बढ़ी

बहुत अध्ययन किया

पर किसी निष्कर्ष पर

न पहुच पाई |

 फिर  हार कर

 सोच लिया

बिना स्वयं  गए

 स्वर्ग के दर्शन नहीं होते |

आत्मा कहाँ विचरण करती

कहाँ अपना घर खोजती

फिर से दुबारा

 कोई न जानता |

आशा 

मध्यप्रदेश


१-हरा भरा है
 मेरा मध्यप्रदेश 
है प्यारा मुझे 
२-पगपग पे
 हरियाली यहाँ है
 लोग सरल
 ३-दिल देश का
 सभी समाते यहाँ
 बड़े प्यार से
 ४-कहीं से आया
 कोई भी यहाँ पर
 मिले प्यार से
 ५-लोग यहाँ के 
 महमान नवाज
 बड़े सरल
 ६-सभी अपने 
 न रहा भेदभाव
इस राज्य में 
७-टपकता है 
रिश्तों से लगाव 
यहाँ दिल से 
८-मेरा प्रदेश 
देखा स्नेह से जब 
होता है गर्व 

आशा 













 इस राज्य में ७- टपकता है रिश्तों से लगाव है यहाँ दिल से ८-मेरा प्रदेश देखा स्नेह से जब होता है गर्व आशा