20 सितंबर, 2021

हिन्दी (हाइकु )


१-हिंदी की बिंदी 

चमके भाल पर

हिन्द की शान

२-पखवाड़ा है

हिंदी की समृद्धि का

बनाया स्थान 

३-बौध गम्य है

सरल बोलने में 

समझे सब

४-हम हैं हिंदी

 समर्द्ध हुई हिन्दी 

साहित्य से 

५- हिंदी हमारी  

कोई तुलना नहीं 

राष्ट्र भाषा से   

६- हम भारती 

हिन्द देश के वासी

बोलते हिन्दी

७-शब्द दूसरे  

दूध से  समा जाते 

जल में मिल 

  

आशा  

  बिंदी

19 सितंबर, 2021

हार न मानी कभी


 


 हार न मानी कभी 

कितनी भी कठिनाई आई

डट कर सामना किया  

मोर्चे से नहीं  भागा |

मन पर पूरा नियंत्रण

जाने कब से रखा है

 हर कदम पर सफल रहा हूँ

तिथि तक याद नहीं है अब तो |

कभी भरोसा था अन्यों पर

कंधे पर सर रखा था

मन को सांत्वना देने को

वह भी खोखला निकला |

पर अब पश्च्याताप नहीं

खुद ही इतना हूँ सक्षम 

है तुम पर ही विश्वास

तुम्ही तारणहार मेरी नैया के |

तुम्ही हो खिवैया नैया के बीच मझधार में

मेरा बेड़ा पार लगाओ हे कर्तार

मेरी आस्था कभी न डगमगाए

हो बेड़ा पार इस विशाल भवसागर से  |

 आशा 


गणेश (हाइकु )

 

१-


१- था इन्तजार

पिछले वर्ष ही से

 गणनायक

२- आते ही  चले

गणेश जी जल्दी से

 विसर्जन में   

३- प्रथम पूज्य

सब के दुःख  हरते

 हो  गणपति

४- हो सर्बोपरी 

तुमसा न कोई है

विघ्न हरता

५- आए थे जब

खुशी कितनी रही 

उदासी अब 

६- नमन तुम्हें

हे सिद्धि विनायक 

दुःख हरता   

७-उदासी अब 

किससे बांटी जाए 

खाली मंदिर

आशा 











 उदासी अब

18 सितंबर, 2021

सफलता की ओर

 

                                     कितनी शिकायतें सुननी होंगी

                     
                      उसका अंदाज नहीं है क्या ?

फिर भी कूद रहे हो बिना तैयारी के  

जिन्दगी के मैदाने जंग में |

कितनी बार सबने समझाया  

पहले सोचो फिर कार्य करो  

यदि दिल दिमाग जाग्रत रखोगे   

कभी न पछतावा होगा  |

 भावुक होना जल्द्बाजी में

 उसी सोच पर कार्य करना

 असफल रहे यदि यत्न न किया

सर न उठा पाओगे  |

 घुटन होगी असफल हो कर तब

कितनी ही बार सोचोगे

पहले ही यदि सोच लिया होता

यह दिन न देखना पड़ता |

आँखें खुली रख जब दिल से सोचोगे

तब भी किसी हद तक सफल रहोगे

दिल का सोच सही नहीं होता

यदि प्रतिफल न मिला पछताओगे |

केवल भावनाओं में जीने से

कोई सफल नहीं होता

दिल दिमाग दौनों हैं आवश्यक   

सफलता पाने  के लिए |

साहस के बिना भी कुछ न होगा

प्रयत्न पूरी शिद्दत से करना होगा

इस शिक्षा पर यदि चलोगे तभी सफल होगे

जिन्दगी की कठिन परीक्षा में |

सफलता तुम्हारे कदम चूमेंगी

समाज तुम्हें देगा सम्मान  

गिनी चुनी हस्तियों में होगा नाम तुम्हारा

यथोचित सम्मान तुम पाओगे |

आशा

17 सितंबर, 2021

मन क्या सोच रहा


 

                जब भी सोचा सोचती ही रही

               अवसर न मिला कुछ कहने का

मन ही मन घुटती रही

बेचैनी बढ़ती रही कुछ कह न सकी |

 उमस बढी मन के किसी कौने में 

स्थिति बद से बत्तर हुई  

 किससे मन की बात कहूँ  

 मैं निर्णय न कर  पाई  |

गिरह मन की न  खोल पाई

पर घुटन कब तक सहती

कोई न मिला जिससे कुछ बाँट पाती

अब मन की बेचैनी सहन न होती  |

उलझनें  बढीं बढ़ती गईं

जीना दुश्वार हुआ पर

 समाधान नहीं हो पाया   

कोई दिल से  अपना न हुआ

जिससे बाँट पाती उलझनों को |   

 कुछ तो  हल्का मन होता

 बोझ न उस पर रहता

पर इतनी समझ कहाँ दौनों में  

 ऐसा कब तक चलता |

दौनों ने राह  खोजी अपनी   

 और चल दिए अलग हो

  अपनी  अपनी राह पर

  मन में मलाल लिए |

          अब भी कभी जब सोचती हूँ

      मेरा मन नहीं मानता 

          क्या दौनों का निर्णय सही था

                मन तो न टूटता घर  न उजड़ता |

                 आशा 

15 सितंबर, 2021

सरस्वति वन्दना


                                          हे हंस वाहिनी 

श्वेत वसन धारणी

कमलासन पर

 तुम्ही विराजत |

तुम ही हो भारती 

अदभुद है छवि तुम्हारी 

वीणा पुस्तक धारणी

विध्या की देवी सरस्वति  |

ज्ञान दायनी मां शारदे

दो  सबको ज्ञान दान  

हो सब का उपकार

नमन तुम्हें  कमलासनी |

 सरस्वती जिसकी

 जिव्हा पर विराजती 

 मृदु भाषण से सदा 

जीवन सफल होता उसका |

ज्ञान धन  है ही ऐसा 

कभी क्षय न होता जिसका 

हैं सबसे धनवान वही 

जो है सरस्वति का उपासक |

आशा 

 

हो तुम मेरे ही कान्हां


 हो तुम मेरे ही  कान्हां

 यशोदा नंदन नन्द जी के दुलारे

राधा रानी शक्ति तुम्हारी

 लिए काली कमली और बाँसुरी साथ में  |

शीश पर मोर मुकुट सजा है

पीली कछोटी बंधी  कमर में

मुंह पर माखन लगा है

ऐसी छबि करती तुम्हें जुदा सब से |

अलग ही है पहचान तुम्हारी

बाल सुलभ चंचलता नयनों में

यही अदा प्यारी है मुझको

मैं हो जाऊं  तुम पर न्योछावर  |

                  ना मैं मीरा ना में राधा

                 रहूँ तुम्हारी अनुयाई  सदा

                 ऐसा ही भोला बचपन 

                    मुझे बड़ा भाया है 

                   क्यों न मैं जी लूँ उसे 

                  दिन भर धेनु चराऊँ 

                शाम पड़े गोधूली बेला में 

                   लौट कर घर आऊँ |  

                        आशा 


   

शा