21 सितंबर, 2021

मेरा अस्तित्व


 

समय हाथों से

फिसल रहा

सिक्ता कणों सा

मैं खोजती रही उसे भी  |

पर  खोज अधूरी  रही

उसे तो खोया ही

खुद का वजूद

भी न मिला |

जाने कैसे वह भी

मुझसे मुंह मोड़ चला

कुछ तो खता रही होगी  

उसने मुझे क्यों छोड़ा ?

समय तो गैर  था

पर हाथों के बंधन से

 बंधा था तभी गया 

बंधन ढीले  होते ही |

फिर भी खुद के

अस्तित्व से

 यह आशा न थी 

कभी वह भी धोखा दे जाएगा  |

  हुआ मन अशांत

भरोसा तोड़ दौनों  ने

 मझधार में छोड़ा |

 समय के साथ जा कर

जाने कहाँ विलीन हुआ  

खुद ने ही धोखा खाया  

 अपने अस्तित्व को खो कर |

बदला मौसम


 

दिल बहका मन महका

झुकी डालियाँ देखीं जब फुलवारी में

फलते फूलते पुष्पों से भरी

पुष्पों के भार से दबी उन टहनियों में   |

प्रातः काल की बेला में जब

मंद वायु के झोंकों ने

उन्हें जगाया  झझकोर कर

 झुलाया मन से बहुत स्नेह से |

आदित्य की रश्मियों ने धीरे से

सहलाया अधखिले फूलों को

कब प्रस्फुटित हुए वे  जान न पाए

 लम्हां था हसीन यादों में सिमटा |

अब नित्य  का नियम बन गया  

उस बगिया में  भ्रमण को जाने का 

खिलते पुष्पों के संग मंद वायु में

खिलखिलाने का सूर्योदय का आनंद उठाने का  |

एक दिवस तेज हवा का झोका आया

उसने पूरी क्षमता से डालियों को हिलाया

वायु के वार वे सह न सकीं

फूल झरने लगे वे सूनी होने लगीं |

अब वीरान हुई बगिया

 तितली भ्रमर पुष्प नहीं थे  

मनोरम न लगे हरियाली बिना दृश्य वहां के

सूनी हुई बगिया  बिना रंगबिरंगे  पुष्पों के |

सूखे पत्तों का साम्राज्य हुआ बागीचे में

अब शबनमी मोती कहाँ  हरी पत्तियों पर

ना ही रश्मियों की लुकाछिपी होती रही ओस से

फिर भी थी हरियाली गुलमोहर के वृक्ष पर |

हो प्रकृति से दूर भ्रमण में आनंद न आया

मौसम के बदलाव ने मन को कष्ट पहुंचाया  

पर सब मौसम परिवर्तन के नियम से बंधे थे

कुछ भी हाथ में न था मौसम बदल रहा था |

आशा

20 सितंबर, 2021

हिन्दी (हाइकु )


१-हिंदी की बिंदी 

चमके भाल पर

हिन्द की शान

२-पखवाड़ा है

हिंदी की समृद्धि का

बनाया स्थान 

३-बौध गम्य है

सरल बोलने में 

समझे सब

४-हम हैं हिंदी

 समर्द्ध हुई हिन्दी 

साहित्य से 

५- हिंदी हमारी  

कोई तुलना नहीं 

राष्ट्र भाषा से   

६- हम भारती 

हिन्द देश के वासी

बोलते हिन्दी

७-शब्द दूसरे  

दूध से  समा जाते 

जल में मिल 

  

आशा  

  बिंदी

19 सितंबर, 2021

हार न मानी कभी


 


 हार न मानी कभी 

कितनी भी कठिनाई आई

डट कर सामना किया  

मोर्चे से नहीं  भागा |

मन पर पूरा नियंत्रण

जाने कब से रखा है

 हर कदम पर सफल रहा हूँ

तिथि तक याद नहीं है अब तो |

कभी भरोसा था अन्यों पर

कंधे पर सर रखा था

मन को सांत्वना देने को

वह भी खोखला निकला |

पर अब पश्च्याताप नहीं

खुद ही इतना हूँ सक्षम 

है तुम पर ही विश्वास

तुम्ही तारणहार मेरी नैया के |

तुम्ही हो खिवैया नैया के बीच मझधार में

मेरा बेड़ा पार लगाओ हे कर्तार

मेरी आस्था कभी न डगमगाए

हो बेड़ा पार इस विशाल भवसागर से  |

 आशा 


गणेश (हाइकु )

 

१-


१- था इन्तजार

पिछले वर्ष ही से

 गणनायक

२- आते ही  चले

गणेश जी जल्दी से

 विसर्जन में   

३- प्रथम पूज्य

सब के दुःख  हरते

 हो  गणपति

४- हो सर्बोपरी 

तुमसा न कोई है

विघ्न हरता

५- आए थे जब

खुशी कितनी रही 

उदासी अब 

६- नमन तुम्हें

हे सिद्धि विनायक 

दुःख हरता   

७-उदासी अब 

किससे बांटी जाए 

खाली मंदिर

आशा 











 उदासी अब

18 सितंबर, 2021

सफलता की ओर

 

                                     कितनी शिकायतें सुननी होंगी

                     
                      उसका अंदाज नहीं है क्या ?

फिर भी कूद रहे हो बिना तैयारी के  

जिन्दगी के मैदाने जंग में |

कितनी बार सबने समझाया  

पहले सोचो फिर कार्य करो  

यदि दिल दिमाग जाग्रत रखोगे   

कभी न पछतावा होगा  |

 भावुक होना जल्द्बाजी में

 उसी सोच पर कार्य करना

 असफल रहे यदि यत्न न किया

सर न उठा पाओगे  |

 घुटन होगी असफल हो कर तब

कितनी ही बार सोचोगे

पहले ही यदि सोच लिया होता

यह दिन न देखना पड़ता |

आँखें खुली रख जब दिल से सोचोगे

तब भी किसी हद तक सफल रहोगे

दिल का सोच सही नहीं होता

यदि प्रतिफल न मिला पछताओगे |

केवल भावनाओं में जीने से

कोई सफल नहीं होता

दिल दिमाग दौनों हैं आवश्यक   

सफलता पाने  के लिए |

साहस के बिना भी कुछ न होगा

प्रयत्न पूरी शिद्दत से करना होगा

इस शिक्षा पर यदि चलोगे तभी सफल होगे

जिन्दगी की कठिन परीक्षा में |

सफलता तुम्हारे कदम चूमेंगी

समाज तुम्हें देगा सम्मान  

गिनी चुनी हस्तियों में होगा नाम तुम्हारा

यथोचित सम्मान तुम पाओगे |

आशा

17 सितंबर, 2021

मन क्या सोच रहा


 

                जब भी सोचा सोचती ही रही

               अवसर न मिला कुछ कहने का

मन ही मन घुटती रही

बेचैनी बढ़ती रही कुछ कह न सकी |

 उमस बढी मन के किसी कौने में 

स्थिति बद से बत्तर हुई  

 किससे मन की बात कहूँ  

 मैं निर्णय न कर  पाई  |

गिरह मन की न  खोल पाई

पर घुटन कब तक सहती

कोई न मिला जिससे कुछ बाँट पाती

अब मन की बेचैनी सहन न होती  |

उलझनें  बढीं बढ़ती गईं

जीना दुश्वार हुआ पर

 समाधान नहीं हो पाया   

कोई दिल से  अपना न हुआ

जिससे बाँट पाती उलझनों को |   

 कुछ तो  हल्का मन होता

 बोझ न उस पर रहता

पर इतनी समझ कहाँ दौनों में  

 ऐसा कब तक चलता |

दौनों ने राह  खोजी अपनी   

 और चल दिए अलग हो

  अपनी  अपनी राह पर

  मन में मलाल लिए |

          अब भी कभी जब सोचती हूँ

      मेरा मन नहीं मानता 

          क्या दौनों का निर्णय सही था

                मन तो न टूटता घर  न उजड़ता |

                 आशा