29 सितंबर, 2021

मनोभाव मेरे


तुम मेरे ही रहो

मैं हूँ तुम्हारे लिए

 कोई और न हो दूसरा

 हम  दौनों के  मध्य |

कोई बाधा बन उभरे     

यह मुझे  सहन नहीं    

मन चाहे पर मेरा अपना ही

केवल  अधिकार रहे |

जिस पर हक हो मेरा  

उसे  किसी से बाटूं

नहीं स्वीकार मुझे

कमजोरी कहो या तंगदिली  |

अपने स्वभाव में  

परिवर्तन कैसे लाऊँ

कभी जाना नहीं

किसी ने भी  सुझाया नहीं |

यही कमीं रही मुझमें

जिसे आज तक

 बोझे सा उठाए रहती हूँ

उस से बच  नहीं पाई |

आशा

 

 

 

28 सितंबर, 2021

स्वप्नों का बाजार

 


स्वप्नों का बाजार सजा हैं

आज रात बहुत कठिनाई से

किसी की चाहत से बड़ा  

उसका कोई खरीदार  नहीं है |

दुविधा में हूँ जाऊं या न जाऊं

स्वप्नों के उस बाजार में

कुछ स्वप्न अपने लिए खरीदूं

या  चुनूं उपहार के लिए |

रात्री बिश्राम में तो बाधा न होगी

या चुनूं दिवा स्वप्नों को  

दिन मैं व्यस्त रहने के लिए

 खाली समय के सदुपयोग के लिए |

अभी तक निर्णय ले नहीं पाई

मुझे कोई बुराई नहीं दीखती दौनों में

 ये लूं या दूसरे को स्वीकारूं

सोच में हूँ उलझन से निकल न पाई |

कोई तो मुझ जैसा  सोचवाला हो

मुझ जैसा  विचार रखता हो

हो सहमत मेरे ख्यालों  से 

मेरा हम कदम हो हम ख्याल हो |

आशा 


मेरा हम कदम हो हमख्याल हो |

27 सितंबर, 2021

वर्ण पिरामिड

 है

मेरी

बिटिया

व्याही गई  

सब से  दूर

पराए देश में

बहुत याद आती

जब आ नहीं पाती

 विछोह सह न  पाती 

मन अधीर कर जाती |  


हो  

तुम  

वेदना 

   हो मेरी ही      

कभी गोण हो  

बेचैन कभी हो  

क्यों मुझे सताती हो  

यह  मुझ से  लगाव हो    

तुम से लगाव हो कैसे  |  

         है 

        वही 

        सुबह  

      और शाम

      व्यस्तता लिए 

       नहीं  है  आराम 

       सिर्फ रात्री  विश्राम  

        है तब भी चैन कहाँ   

     सो नहीं  पाती  स्वप्न बिना  | 

आशा 






 

मन  

26 सितंबर, 2021

नमन तम्हें


 


हो सीमा के निगहवान

देश की रक्षा करते

शत्रुओं से पूरी क्षमता से 

मुकाबला करते |

है धन्य वह जन्मदात्री जिसने

 तुम से वीर को जन्म दिया

   ऐसे कर्तव्य निष्ट को

 पाला पोसा बड़ा किया  |

संस्कार  कूट कूट कर भरे

बचपन से ही निर्भय रहे

देश प्रेम में ऐसे डूबे स्वप्न में भी

दिन रात देश की रक्षा करते रहे  |

प्रथम कर्तव्य देश रक्षा को जाना

देश से अधिक किसी को न माना

देश के प्रति  निष्ठा की

 तुमसी कोई मिसाल नहीं  

सभी कार्य गोण हुए  देश प्रेम के आगे  |

नमन तुम्हें हे वीर सपूत देश के  

ताउम्र याद रहेगा बलिदान तुम्हारा  

देश भक्ति की मिसाल हो तुम   

25 सितंबर, 2021

रिश्ते एकतरफा नहीं


 

 

रिश्ते कभी एकतरफा नहीं होते

सम्बन्ध निभाना पड़ते हैं

उन्हें  बनाना  है फिर भी सरल

पर  कठिन है  निभाना उन्हें |

बहुत दूर तक  जीवन पर्यंत

वैसे ही रख रखाव  रिश्तों का  

प्यार की कमीं  न होने देना

है यही सफल संबंधों का प्रतिफल |

अभी बने हाल ही टूटें

स्थाईत्व जिनमें न हो तनिक भी

होते ऐसे रिश्ते अस्थाई होते  

अकारण न बनए जाते |

मतलब से बनाएगे गए रिश्तों की

कोई अहमियत नहीं होती 

जब हल हो जाए समस्या

तभी कहा जाता हैआप कौन |

हम पहचानते नहीं आप को

कहाँ मिले थे याद नहीं है

कब मिले किस कारण मिले

यह तक  याद नहीं हम को |

खून के रिश्ते भी कभी डगमगाने लगते

तब बनाए रिश्तों में दम कितना होगा

एक झटके में विलुप्त हो जाएंगे

समय न लगेगा टूटने में |

आशा 















 

 

 

 

 

 

 

 

 

24 सितंबर, 2021

वर्ण पिरामिड


 

है

मेरी  

चाहत

अपनी ही

तुम्हारी  नहीं

 स्वप्नों में सजी है    

ख्यालों में बसी रहे 

या विलुप्त होने लगे 

नहीं है  दरकार मुझे  |

ओ 

चन्दा 

चमको 

आधी रात 

तारों के साथ 

मुझे भाने लगा

रहना तेरे साथ 

रात भर तारे गिनूं 

भोर होते ही उठ जाऊं |

हे 

कान्हां 

तुम्हारी 

अनुरागी 

भक्ति भाव से 

करूं  आराधन 

तन मन धन  से 

 दिन में भोग लगाऊँ 

 करो पूरी  मेरी कामना | 

आशा  






23 सितंबर, 2021

जाना उस देश


 

 

 

 

 

 

 


 ओ वर्षा के पहले बादल

                       काले कजरारे भूरे बादल

तुम जाना काली दास की नगरी में  

जहां से मैं आया हूँ  |

मालव प्रदेश मुझे ऐसा भाया

जिसे मैं भूल न पाया

वहां के दृश्य मनोरम

 है हरियाली चहु ओर |

जब उस प्रदेश से गुजरोगे

मंद  गति से बहती पवन

सहलाएगी तन मन

सुहाना मौसम करेगा आकृष्ट तुम्हें भी |

चाहोगे अपना बसेरा बनाना  वहां

अवन्तिका में क्षिप्रा स्नान कर देव दर्शन करोगे  

महाकाल दर्शनार्थ पहुँचते लोग मिलेंगे  

पक्षी कलरव करते होंगे प्रातःकाल की बेला में |

 रवि रश्मियाँ अंगड़ाइयां ले कर

जागेंगी अपनी आभा बिखेरेंगी

सातों रंग भरेंगी प्रकृति में

मन मोहक छवि उभरेगी नयनों में |

रात में लुकाछिपी चंद्र और तारों से   

नदिया के जल से क्रीड़ा करेंगी

दिन में राह दिखाएंगी आदित्य को

जो निकलता होगा देशाटन को |

आशा