23 फ़रवरी, 2022

गहराई है रात

गहराई है रात 
कोरोना की लहर 
 फिर से उभार आई है  

हुत उदासी छाई है |

मरीजों की लंबी कतारें 

 दीखती अस्पतालों में  

वहां भी  जगह नहीं है

वे सो रहे जमीन पर | 

जाने कितनी व्यस्थाएं

 की है सरकार ने 

फिर भी संतुष्टि नहीं 

जनता जनार्दन में |

 हर समय कमियाँ उसकी

 गिनवाई जातीं हैं 

कहाँ कमीं रह जाती है

नियम पालन करवाने में |

स्पष्ट निर्देश तक नहीं दिए जाते   

केवल भय बना देने से

 कुछ नहीं होता

 कोई हल नहीं निकलता |

 दिखा कर सारे नियम

स्पष्ट करने होते है

कहना है बहुत सरल 

पर पालन उतना ही जटिल |

मन को मारना पड़ता है

कुछ नया सीखने में   

लौकडाउन में घर पर रहना

लगता उम्र कैद जैसा |  

आशा  

22 फ़रवरी, 2022

अनुग्रह भजन का


 

अचानक  जब नजर पडी

देखी अनौखी वस्तु वस्त्र में लिपटी 

पहले कभी देखी न थी

जानने की उत्सुकता जागी  |

वह  कोई पुस्तक न थी

नाही कोई दस्तावेज

जितनी बार देखा उसे

पता नहीं चल पाया है वह क्या |

उलटा पलता ध्यान से पढ़ा

एकाएक दृष्टि पड़ी लिखा था

 बहुत ही व्यक्तिगत 

उत्सुकता ने की ध्रष्टता  |

सीमा लांघी मर्यादा की

केंची  से काटा खोला लिफाफा 

एक सांस में पढ़ना चाहा

न था आसान उसे पढ़ना |

वे थे पत्र किसी के  लिखे हुए  

भेजे गए अपने इष्ट को

जिन पर किसी का नाम नहीं था

केवल हरी का नाम लिखा था |

मन झूम झूम कर गाने लगा

ॐ हरिओम राधे राधे श्री सरकार

भगवत भजन का था  अनुग्रह 

जो उन पत्रों में किया गया था |

मेरा भी मन आत्मविभोर हो गया 

फिर भूली सुध आई लौट कर 

श्री राम और सीता माता  की 

 अपने मन मोहन की छवि की 

आशा 

21 फ़रवरी, 2022

जटिल प्रश्न



सत्य की प्राण प्रतिष्ठा के लिए

क्या किया जाए

कैसे पूर्ण आहुति हो

किसे आमंत्रित किया जाए |

यह  है बड़ा जटिल प्रश्न

जब सब आएँगे

त्रुटियों को गिनवाएंगे

मन भी आहत होगा

पर  हम भूल जाएंगे |

कहने को अनेक त्रुटियाँ

थीं यहाँ वहां उस कार्य में

उनमें सुधार हो सकता था

 पर जाने क्यों नजर अंदाज हो गया  |

कोई परिवर्तन नहीं कर पाए

 सब ने गलतियों का मखौल उड़ाया

पर उनको तब भी न सुधरवाया |

सुधार करवाना सरल न होता

बार बार देखो पढ़ो पर  

वे आँखों की ओट हो जाती हैं  

 खोजो उन्हें सुधार जब करना हो

कहीं लुप्त हो जाती हैं  |

यह मेरे ही साथ होता क्यूँ

मन फिर भी सोचता

नहीं ऐसा नहीं है

मैंने भी विचार किया है |

मैं अकेली नहीं हूँ

इस झमेले में

 मैंने किसी का क्या बिगाड़ा   

 किसी ने नहीं इशारा दिया मुझे |

मैंने सब सौंप  दिता है

 अब परमात्मा के हाथ में

सुख मिले या दुःख किसी से

है अधिक की अपेक्षा भी नहीं |

यही है नियति मेरी

इसमें मुझे कोई शक नहीं है

जीवन के दो पहलू है

किसी से भी दूरी नहीं है |

आशा


20 फ़रवरी, 2022

हाइकु


 

१-कहीं जाने में

बुराई क्या हुई है

जान न पाई

२-कितनी बाधा

रोकटोक सब की

मैं क्या सोचती 

३- रहूँ सतर्क 

किसी पर विश्वास

रखूँ न रखूँ

४-वो एक दिन

हो जाएगी समाप्त

 मृत्यु के साथ 

५- काला कागला

बैठ कर छत पे

किसे बुलाता

६-कोयल काली

मधुर कंठ वाली

मन रिझाती

७-मेरा है गीत 

लगता प्यारा मुझे

 सुनो  न सुनो  

आशा

किसी के छद्म प्यार में


 

किसी के छद्म प्यार में

मन उसका ऐसा उलझा   

कोई हल न सूझा अब कहाँ जाए

दिल की सुने या मस्तिस्क की |

अब पछता रही है

उसे वह समझ न पाई

अब जान गई था वह एक छलावा 

उस भूल पर कैसे पर्दा डाले |

मन बहुत दुखी हुआ है

पैर पीछे नहीं लौटते

अब कहीं की न रही

यह किससे कहे |

जब पैर डगमगाए थे 

किसी ने चेताया नहीं

ज़रा भी समझाया नहीं

डूबी जब पंक में किसी ने बचाया नहीं |

समय हाथ से फिसल गया 

अब हाथ न आएगा

नष्ट हुई वह किस हद तक

 कोई भी जान न पाएगा |

अपनी गलती का एहसास है उसे

यह वह किस मुंह से कहे

 अपने आप पर शर्मिन्दा है

यह भी नहीं कह पाती किसी से |

वह मन से बहुत  दुखी है

यह भूल नहीं पाती पछताती है   

यही बात बारम्बार मन को सालती रहती 

कोई न मिला जो उसे समझे समझाए |

आशा 

           

19 फ़रवरी, 2022

स्वप्न एक रात का


 

 रात को एक दृश्य देखा 

प्रकृति के सानिध्य में 

चांदनी रात थी 

झील भी पास थी |

 मन ने नियंत्रण खोया

बेलगाम भागा उस ओर 

जहां जाने को नौका रुकी थी 

 उस दिन भी  चांदनी रात थी |

नीला जल झील का

 लुकाछिपी खेलता 

 उसमें थिरकती छवि चाँद की

 मन  मोहक लगती 

अपनी ओर आकृष्ट करती |   

झील के उस पार छोटा सा 

 था मंदिर भोले नाथ का 

वहां पहुँच दर्शन करना

उस में ही खो जाना 

था उद्देश्य उसका  |

जाने कैसे देर हो गई

 उस दृश्य को आत्मसात में 

चाँद की छवि खेल रही थी 

उत्तंग तरंगों से चांदनी रात में |

वह दृश्य भुला नहीं पाई अब तक  

जब भी नेत्र बंद करती 

छवि वही नैनों में उभरती |

जब मंदिर में कदम रखे

अनोखी श्रद्धा जाग्रत हुई  

जल चढ़ाया पूजन अर्चन किया

प्रसाद चढ़ाना ना भूली |

सुकून मिला जो  मन को है याद उसे 

 चांदनी रात में प्रभु के दर्शन की   

 बारम्बार याद आती है छवि वहां की   

  जो मन में बसी है आज भी   |

आशा

18 फ़रवरी, 2022

परिवर्तन



 

आज के युग में  

बहुत कुछ बदल गया 

             उनके सोच में 

 बड़ा परिवर्तन हुआ है |

उनने भी यह जानना नहीं चाहा

यह बदलाव क्यूँ ?

हुआ यह कैसे किसकी सोहवत में

यह तक न सोचा |

ऎसी आधुनिकता की हवा चली  

उसमें बह कर कहाँ चले जान न पाए 

 आज   के मंजर की झलक चहु ओर फैली है

पहले क्या थे यह तक भूल गए |

धधकती आग सी मन बेचैन करती

बरसों की शिक्षा व्यर्थ हुई आज 

केवल अंधानुकरण ही रहा शेष

आज के युग में |

मन में क्षोभ होता है दिल कसकता है 

हमारे पालन पर जब सवाल उठते हमने 

अति  अनुशासन में रखा बच्चों को

बचपन उनका छींन लिया |

आज वे यह तक भूले

 पेट काट काट पाला था उन्हे

सीमित आय थी तब भी

हम अपनी मर्यादा में रहे |

धनवानों की सोहवत नहीं की

अपनी चाहतों पर  रखा नियंत्रण  

पर उनके लिए कोई कमी नहीं की     

केवल आज की तरह कर्ज में न डूबे |

आधुनिकता का भूत न उतरा सर से 

अपनी क्षमता की सीमा न भूले

आत्मनिर्भर बनाया अपने कर्तव्य पूरे किये    तभी चिंता मुक्त हुए  |

आशा