13 मार्च, 2022

सायली छंद (२)



                                             १- मेरा

तन मन 

महकाती तेरी खुशबू 

बहकाती नहीं 

मुझे |

२-छलकी 

तेरी गागर 

जल से भरी 

सर पर 

धरी |

२- नहीं

चंचल चपल 

आज की नारी 

मेरी सोच

 खरी |

३-हम

हैं हिन्दुस्तानी  

 भारत के  निवासी 

 गर्व  है 

हमें |

४-प्रभू 

तुम ने 

दिया बहुत कुछ 

नहीं सम्हाला 

मैंने |

५-कोई 

 कब तक 

 रक्षा  करेगा  तेरी 

हुई तरुणा 

सक्षम |

६-डाली 

जीवन की 

है हरी भरी 

फूलों से 

लदी |

७-कमल

होकर  अलग 

तैरता पंक पर 

रहा दूर 

उससे |

























इल्जाम


                 इल्जाम
 
मुझे न देना

खामोशी का

सहरा पहन कर |

यही खामोशी

तुम्हें महंगी पड़ेगी

जीवन के

कठिन दौर में | 

दायरा ख्यालों  का

 इतना विस्तृत 

 नहीं है

जिससे हम दौनों में 

दरार पड़ जाए

 मुझे तुम से अलग 

कर पाए |

इल्जाम लगाने 

से पहले 

ज़रा सोचना 

क्या तुम्हें मेरी 

कोई जरूरत 

नहीं है 

मुझे  भी कोई

 दरकार नहीं है |

आशा 

 

11 मार्च, 2022

सायली छंद

 


१-कमतर

नहीं रहा

विकास देश का

नहीं देखा

विगत |

 

२-प्रियतम

 कब आओगे

बताया नहीं है

मुझे तक

तुमने |


 ३-हुई

बगिया सूनी

पुष्पों के बिना  

उड़ गए

भ्रमर |

 

४-आई

 सर्द हवाएं

खुले व्योम से

है सर्दी

बढ़ी|

 

५-- मौसम

 सर्दी का

बड़ा प्रिय मुझे

लगने लगा

मुझे  |

 

६-गाया

फाग आज

होली आई है

लिए रंग

संग |

 

 ७- यहीं  

दुनिया में

है माया मोह

किससे कहें 

सत्य 


८-रिश्ता 

तेरा मेरा 

जन्म जन्मान्तर का 

नहीं सतही 

लगता |



आशा


10 मार्च, 2022

प्रतीक्षा हुई समाप्त

 


प्रतीक्षा अब हुई समाप्त

जब तुम यहाँ आईं

और मैं  तुमसे मिल पाई

कुछ तो कोरोना का भय और बंदिश

कुछ व्यस्तता घर गृहस्थी की रही |

जब प्रतिबन्ध लगाए जाते थे

या खुद ही लग जाते थे अकारण

पर क्या करते पालन की मजबूरी थी

पर मिलना भी था आवश्यक  |

आज तमन्ना पूर्ण हुई अब

जब लंबित प्रकरण पर ध्यान दिया  

जब तक घर न पहुँँची

 मन में दुविधा बनी रही |

देखते ही हुई प्रसन्नता इतनी कि

शब्द कम पड़े इसे व्यक्त करने को  

बहुत समय बाद मिले हों जैसे

इसका आकलन न किया जा सकता हो जैसे |

जाने कितनी बातें मन में हैं कहने को

पर शब्द नहीं मिलते स्पष्ट करने को

इतने से समय की छुट्टी मिली है

मन को संतुष्टि कैसे मिलेगी |

जीवन में समझौता करना पड़ता है

किससे उलझें क्या तर्क रखेंं

विधि का है विधान ऐसा ही  

थोड़े से संतुष्ट होना पड़ता है |

पहले बहुत व्यस्त थे हालातों से थे लाचार

समय नहीं मिल पाया उलझनों में फंसे थे

अब खुद कहीं नहीं जा आ पाते

फिर किसी से क्या रखें अपेक्षा  |

आशा

\

09 मार्च, 2022

वह और तुम


 

उसके ख्यालों में आना

आँख मिचौली खेलते रहना 

जज्बातों से उसके खेलना 

तुम्हें शोभा नहीं देता |

अपने पर रखो नियंत्रण 

किसी को दो न अवसर 

उंगलियां  उठाने का

कुछ अनर्गल बोलने का |

यह  अधिकार भी

तुम खो चुके हो

अपनी मनमानी करके

अकारण उससे उलझ के |

वह कोई गूंगी गुडिया नहीं

जो कभी न बोले 

अपने अधिकार जानती है

तुम्हें पहचानती है |

जितनी दूरी बना कर चलोगे

खुद पर नियंत्रण रखोगे

तभी उसे पाने में सफल रहोगे

यही एक  तरकीब उसे

तुम तक पहुंचाएगी |

जब वह लौट कर आएगी

एक नए रूप में होगी

जिसे दिल से अपनाना

पर हमें तब  भूल न जाना |

आशा

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08 मार्च, 2022

कलम मेरी सीधी साधी


 

कलम मेरी सीधी साधी
करती है प्यार मुझे
जब भी क्रोध आता है मुझको
प्यार से शांत करती है मुझे |
यदि कोई विश्वासघात करे मुझसे
पहले ही करती सतर्क मुझे
मेरा कहना नहीं जब मानते
तब अग्नि वर्षा करती है |
इसी लिए है बहुत प्यारी न्यारी
अपनत्व लिए हुएहै वह
सच्ची मित्रता निभाती है
कभी धोखे में नहीं रखती |
आशा
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नारी वर्तमान में (अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर )

 


 सुनहरी धुप प्रातः की 

जब भी खिड़की से झांकती 

नैनों से दिल में उतरती

दिल को बेचैन करती |

जब कभी विगत में झांकती

उसे याद करती मन से

 वही गीत गुनगुनाती फिर से

जो कभी उसने  गाया था मंच पर |

जितनी तालिया मिलीं थी

उनकी मिठास आज तक सुनाई देती

मधुर धुन कानों में गूंजती

मंजिल को सक्षम हो छूने के लिए |

 स्वप्न साकार हुआ था उसदिन

पहले अक्सर  सोचा करती थी

कब मुझको भी सफलता मिलेगी  

तालियों का उपहार मिलेगा |

मन  हुआ था उत्साहित 

समूचा कम्पित हुआ था तन मन  

 मंच पर पैर रखते ही

 तालियों की गूँज सुन कर  |

आज के युग की नारी हूँ

कदम पीछे कैसे  हटाती  

जो सुख मिला सफलता से

मस्तक उन्नत हुआ मेरा

तालियों के स्वागत से |

यही चाहत  भी  थी मेरी

अग्र पंक्ती में सदा रहने की

अपनी योग्यता साबित करने की

सोच था किसीसे कम नहीं मैं |

आशा