भरी धूप में
सूर्य की गर्मीं सर पर
तुम्हारी परछाईं चलती
कदमों में तुम्हारे
जैसे ही आदित्य आगे बढ़ता
पर साथ कभी ना छोड़ती
शाम को वह भी घर आती साथ तुम्हारे
तुम सोते वह भी सो जाती
तुम में विलीन हो जाती |
काश मैं तुम्हारी परछाईं बन पाती
अपने भाग्य को सराहती
तुम्हें अपने करीब पा कर
सभी ईर्ष्या करते मेरे भाग्य से |
मुझे है पसंद रहना करीब तुम्हारे
परछाईं बन कर साथ रहना तुम्हारे
कम ही लोग होते इतने भाग्यशाली
तुमसे जुड़े रहते साथ जन्म जन्मान्तर तक|
आशा