30 सितंबर, 2022

किसी से क्या कहिये

 

 

 

 



जीवन हुआ है भार

किसी से क्या कहिये

मन हुआ बेहाल

किसी से क्या कहिये  |

 जन्मदिन था आज तुम्हारा 

पर तुमने याद न किया

ना ही फोन किया

भूलीं सभी  संस्कार |

 मन को लगी ठेस मैं सह न पाई

मेरे दुःख को तुमने न समझा

केवल अपने तक सीमित रहीं 

है कैसा अन्याय तुम्हारा तुम भूलीं | 

यह है कैसा व्यबहार वाह

किसी से  क्या कहिये

बात मन की मन में रही

राई का पहाड़ बनाया तुमने |

हमने भी प्यार किया था तुमको

धन दौलत नहीं दी थी पर मन में

जगह तुम्हारी थी सबसे ऊपर

यह  तुम भूलीं पर मैं नहीं भूल पाई |

तुम्हें भी याद तो आई होगी हमारी

थोड़ी औपचारिकता भी न निभा पाई तुम 

हो आज की पैदाइश हम यह तो भूले 

केवल हमारी मुन्ना ही याद रही मुझको |

मन को ठेस लगी मेरे सोच न पाई 

यह माया मोह किस लिए

किस के लिए आज की दुनिया मैं

सच कहा है सोचा  समझा है

 देवी के पूजन अर्चन में |



आशा सक्सेना

27 सितंबर, 2022

कविता के कई रूप

कविता के कितने रूप 

तुम्हें कैसे गिनवाऊँ 

कुछ होतीं अकविता 

पढने में रुचिकर लगतीं |

कुछ होतीं छंद रूप में 

पढने में बहुत रोचक लगतीं 

पर लिखने में बहुत क्लिष्ट 

कभी मात्राओं  में त्रुति हो जाती  

कभी लय भंग हो जाती 

पर सही लिखी न जाती 

दोहा ,सौराठ ,छंद चौपाई 

लेखन है कठिन बड़ा |

जब सही नहीं लिख पाती 

मन क्षोभ में डूबा रहता 

अपने से वादा करती

छंदबद्ध रचना  अब नहीं लिखूंगी |

अधूरा ज्ञान होता है घातक 

पर जब प्रयत्न ही नहीं करूंगी 

कैसे सीख पाऊंगी उन्हें लिखना 

भावों को छंदबद्ध करना |

मैंने सोचा कई बार प्रयत्न भी किया 

पर असफल रही 

फिर भी कोशिस करती रही 

हार नहीं मानी |

आशा सक्सेना 

26 सितंबर, 2022

देवी आराधना

देवी मैया ओ  अम्बे मैया 

कर दो मेरा बेड़ा पार भव सागर  से 

तुम तक सरलता से पहुंचूं    

खाऊँ न  हिचकोले मध्य भवर   में |

बड़ी बड़ी लहरें आई हैं  मुझे डरानें 

भव सागर से  कैसे बेड़ा पार लगाऊँ 

तुम्हारी शरण आई हूँ माता 

दिन रात तुम्हारा ध्यान करूं 

 दो मुझे मुक्ति इस दुनिया से 

अपनी शरण में  लेलो मेरी अम्बे 

चोला आज चढाऊं मैं जगदम्बे 

 भजन तुम्हारे गाऊँ माता 

कभी भुला न पाऊं तुम्हें 

जीवन भर सेवा करती रहूं तुम्हारी 

तुमसे दूर न जा पाऊँ माँ |

आशा सक्सेना 

एक पत्र

 

एक  पत्र लिखा था कभी

जब लिखने का अभ्यास न था

पत्र लिख पाया  था कभी

परीक्षा में बस पांच अंकों के लिए |

उसमें प्रारंभ किया था आदरणीय सर

मुझे बुखार आया है

मैं कक्षा में हाजिर न हो सकूंगी

अंत  में अपना नाम लिखा था

कक्षा लिखी थी फिर स्कूल का नाम |

सोचा सभी को ऐसा ही पत्र लिखा जाता होगा

जब मुझे अवसर मिला पत्र लिखा

बड़े प्यार से प्रारम्भ किया उसी प्रकार

मध्य में लिखा हम अच्छे हैं आप भी ठीक होंगे |

हमें आपकी याद आती है |

सब को नमस्ते कहना |हम दर्शन करने गए बताना

अब कब आओगे |हम दूसरे मंदिर चलेंगे

फिर समाप्त किया ऐसे सोचा कितना सुन्दर पत्र लिखा

आपकी विद्द्यार्थी

कु आशा लता सक्सेना

कक्षा १२-बी

सागर ग्राम म.प्र.

अरे पत्र पर पता तो लिखा ही नहीं

पत्र यहीं रह गया मेरी किताब में |

आशा सक्सेना 

आशा सक्सेना 

24 सितंबर, 2022

हाइकू

 


१-कितने दिन

यूँ ही सोचती रहूँ 

हूँ परेशान 

 

२-नहीं जानती

क्या कहा  कब मैंने

बिना विचारे

 

३-तेरे ख्यालों में

मैं भी जी रही 

क्या है सच

 

४-हार गई हूँ

खुद के विचारों से

भटक रही

 

५-कभी सोचना

मैंने की कोई मांग

तस्वीर से ही

 

६- यह जिन्दगी

 तुम्हारे आसपास

यही है ख्याल

७-कब जागती

सोती किस समय

मालूम नहीं

 

 

रहूँ उदास


                                                      रहूँ  उदास और सोच में  डुबी रहूँ  

क्या रखा है इस  जिन्दगी में 

कोई अरमा अब शेष नहीं हैं 

जिन्दगी जी ली है पर्याप्त |

कोई कार्य अधूरा नहीं छोड़ा 

यह है ख्याल मेरा या सत्यता 

अब जीने से क्या लाभ 

जितना  समय शेष है

 प्रभु चरणों में अर्पित करूं  |

और आगे की सोचूँ 

क्या मैं ऐसा कर पाऊंगी 

इतनी शक्ति मुझे दो परमात्मा 

अपने ध्येय में सफल रहूँ |

कोई बाधा बीच में न आए 

अपने सोच में सफल रहूँ 

भव सागर को पार करूं |

मेरी  नैया पार लगादो 

 मझदार में न  रह पाऊँ  

पार लगा दो मेरा जीवन 

इतना उपकार करो मुझ पर |

जीवन क्षणिक रह गया है 

उसका भी सदुपयोग  करूं पूरा 

अब जीवन भार सा हुआ है 

क्या करूं  इसका |

आशा सक्सेना 


































 

23 सितंबर, 2022

व्यबहार एक जैसा


                                                           न किया किसी से बैर    

ना ही प्रीत अधिक ही पाली 

बस यही किया मैंने 

समान व्यबहार रखा सब से |

कभी भेदभाव न  रखा 

ना ही   अपने तुपने का 

 सतही सम्बन्ध  रखा 

सब को अपना समझा |

जिन्दगी में दोगला

 कहलाने का अवसर  

 किसी को न दिया 

सब को एक जैसा समझा |

किया  व्यबहार

 सब से  एक सा 

किसी को कभी 

धोखा न दिया 

है यही विशेषता 

मेरे मन के  

संयत व्यबहार की |

 सब को अपनाता 

ज़रा भी अंतर नहीं करता  

बस प्यार ही प्यार 

बरस रहा आसमान से |

 मन को रखा है

संयत अपने 

 शुद्ध  एक दम 

नहीं प्रभावित किसी से |


आशा सक्सेना