06 फ़रवरी, 2023

क्या कुछ कहा तुमने

क्या कुछ कहा तुमने

 ना ही कुछ सुना उसने

 क्या तुम ही बचे थे

उलझने के लिए |

यह क्या आदत है तुम्हारी  

उसके बिना ना चलने की

राह में झगड़ने की 

कभी समझाया तो होता |

इतनी उम्र होते हुए भी

अपना भलाबुरा न समझा

क्यों व्यर्थ झगड़ते हो

किस बात का बदला लेते हो |

 आज तक समझ ना पाई   

तुम क्या चाहते हो उस से  

सब कुछ तो ले लिया

अब कुछ नहीं रहा शेष |

कैसे समझोगे यह बात

समझा कर हार गई है  

उसने शांति से समझाया

कभी रौद्र रूप भी दिखाया |

तुम वहीं के वहीं रहे

चिकने घड़े की तरह

कोई फर्क नहीं तुममें हुआ

वह हारी सब कह कह कर |

अब तो जीवन ऐसे ही कटेगा

काँटों भरी राह पर चलते

नयनों से नीर बहाते

 कंधा किसी का न मिलेगा

 सांत्वना पाने के लिए   |

जब बाढ़ आ जाएगी

उसमें डूबते उतराते आगे बढ़ेगी

अंत तक कोई सहारा ना होगा

जिसकी मदद ली जा सके |



आशा सक्सेना 

05 फ़रवरी, 2023

चांदनी रात में

 


तारों भरी रात में

चांदनी के  साथ में  

बड़ी  सुहानी लगती

नभ की आभा |

चाँद पूरा दीखता

आसपास उसके

अनोखी आभा दिखती  

मन लुभाए रहती |

जीवन में रंग भरती मेरे

अनेकों रंग नजर आते

नीलाम्बर में

सब को  रिझाते |

यही दृश्य  मुझे मोहते

घंटों बैठी रहती छत पर

तुम्हारी वाट जोहती

बड़ी उत्सुकता से |

तुम्हारी यही आदत

  अच्छी नहीं लगती

कितनी राह देखूं

मन को समझाती हूँ |

आशा सक्सेना

 

हाइकू (कान्हां )


१-माखन खाया 
हमने याद किया
मन मोहन 
२- बांसुरी तेरी

 मन मोह लिया है

  सुनी जब से

३-पीली कसौटी

काली कमली ओढी है

चले वन को

४-गोपी नाचती

 राधा राह देखती

 पेड़ के नीचे

५-ऊधव आए

दी  शिक्षा  गोपियों को

मोह न पालो   

६-कान्हां ही कान्हा

दीखते चहुओर

गोपिया मुग्ध

७-गोकुल आए

पालने में झूलते

नन्द लाल हैं 

८-सावला तन 

मेरे  मोहन का है 

देखे न थके  

९-प्यारी मुस्कान 

मन मोहन की है 

मन में बसी 

१०-राधे है शक्ति  

कन्हिया के मन बसी 

बसी दिल में   

आशा सक्सेना 

 

04 फ़रवरी, 2023

वे सुनहरे बीते दिन




 

क्या तुमने सोचा कभी

 किसी ने मनुहार किया न किया

पर मेरे मन में प्यार की घंटी बजी

मैंने उसको अपना समझ अहसास किया |

अपने दिल में सजाए रखा

उस फूल को जो बरसों किताब में सहेजा  था

उसकी भीनी खुशबू फैल  जाती

उन यादों की तरह जो तुम से जुड़ी थीं |

मुझे कल की यादों में ले जातीं

अब मैं  सोचती हूँ जब बीती यादों में खो जाती हूँ

वे दिन भी क्या दिन थे

समय का ध्यान ही नहीं रहता था

 वह  कब  निकल जाता ध्यान ही नहीं रहता था |

उन दिनों में जब खो जाती हूँ

आज भी उस  शाम की वे यादे भूल नहीं पाती

मैं बीते कल में खो जाती हूँ |

आशा सक्सेना 

तुमने जिसे कहा था गुलाब

 


अपने सपनों को सजाया मैंने

इस ख्याल से तुमने जिसे कहा था गुलाब प्यार से |

किसी के प्यार को महत्त्व दिया तुमने

हमें न सही,  यही क्या कम है

मन  को सम्हाला था  मैंने बड़े विश्वास  से |

तुमने मुझे न अपनाया मन से यहीं मैं गलत थी

तभी रही बेकरार तुम्हारे इंतज़ार में

भ्रम मेरा टूटा जब सत्य से दो चार हुई

 प्यार तुम्हारा देख  किसी के साथ में   |

सत्य का सामना करने की भी ताकत नहीं थी मुझमें

मन को विक्षोभ हुआ मेरे |

 मैंने तुम्हारे प्यार  को अलग दृष्टि से देखा था

मैंने यही गलत किया था |

यदि अपनी सोच सही रखती सदा जमीन पर रहती

 मुझे यह दिन  देखना नहीं पड़ता |

मन को मलाल न होता  यदि सोचा होता दिमाग से  

या कहा अपनों  का मान  लिया होता |

अब ऐसी गलती दोबारा न करूँ यही है चाह मेरी

अंतर सच और झूट का  जान लेती  मैं भी  |

आशा सक्सेना 

03 फ़रवरी, 2023

यदि सच्चे दिल से चाहो

 


तुमने की आराधना जब मन से

वह  कृपावन्त हुआ तुम पर  

पर फल की आशा न की जब

अति प्रसन्न हुआ  |

मेरे मन ने यह माना

बिना  मांगे मोती मिले

मांगे मिले न भीख 

जो सोचो सच्चे मन से चाहो  

प्रभु की नजर पड़ जाए अगर   

वह  हाथ बढ़ाना चाहे

यदि दृढ़ आस्था रही तुम्हारे मन में |

तुम मन से सच्चे रहो  

कोई कमी नहीं छोड़ी तुमने

हुई  कृपा ईश्वर की  तुम पर  

यही दिया तुम्हें खुले हाथ से उसने |

अपना हक़ न समझो इसे तुम

यदि जो मिला उस पर गर्व किया  

यही तुम्हारी भूल समझ

पहली गलती मान  क्षमा किया तुमको |

कभी करना नहीं गुमान अपनी प्राप्ती पर

इशारे से समझ लेना भूल को

तभी सफल रहोगे जब याद करोगे बिना प्रलोभन 

प्रभु भी जानता है तुम्हारी मांग को |

 वह  भी परिक्षा ले रहा तुम्हारी 

तुम भी अनजाने में उसे याद करते हो दिल से

किसी का बुरा नहीं चाहते

यही विशेषता है तुममें |

तुम हो उसकी पहली पसंद

है वह  मोहित तुम पर

तुम्हारा व्यवहार है सब से जुदा

हो सब से भिन्न सफल रहो जीवन में |

आशा सक्सेना    

02 फ़रवरी, 2023

चांदनी रात में जंगल में विचरण


 

दिन बीता सूर्य की तीव्रता  मंद हुई

सूर्य की तीव्रता में विखराव आया

आदित्य पीतल की थाली सा दिखा

धीरे धीरे अस्ताचल को जा पहुंचा |

पेड़ों के पीछे छिपा पर दृश्य आकर्षक हुआ

चन्दा आसमान में चमका तारों के संग

रात के आने की प्रतीक्षा रही उसे  

वायु बेग भी कम हुआ उसकी गति धीमीं हुई |

वह छवि बार बार मुझे आकृष्ट करती

उस दृश्य को भी  प्रतीक्षा थी हमारे आने की

रात्री जागरण जंगल में करने की

जंगल में मंगल मनाने  की |

समय कब कटा मालूम ही नहीं पड़ा

उस नज़ारे का आनंद उठाने की  

हमने भी यत्न किया खुले आसमान में जाने का

चांदनी रात का आनन्द लेने का

तारों को आसमान में विचरण करते देखने का | 

कोई तारा छोटी पूंछ लिए था

 उसको पुच्छल तारा  कहा 

आकाश गंगा में तारों की भरमार देखी

कभी तारों को गिनने की कोशिश की

पर असंभव को संभव कर न सके|

पर अफसोस नहीं हुआ कारण समझ लिया था  

तभी  लोगों का प्रयत्न भी पूर्ण न हो सका था 

समय कब पंख लगा कर उड़ चला

हम यहीं रह गए क्या करते|

हमारे साथ वही सुन्दर दृश्य मन में बसा रहा

 मन को संताप तो हुआ पर कोई चारा न था

चल दिए मन मार कर 

अपने घर को |

आशा सक्सेना