08 नवंबर, 2023

अभी तक कुछ ना कहा

 

.अभी तक कुछ न कहा

मन को नियंत्रण में रखा 

ना ही कोई आवश्यकता का इजहार किया

यह नहीं भूलो कि मैं भी हूँ मनुष्य

मेरी भी कुछ अपेक्षाएं हैं तुमसे |

जब भी दूसरों को देखा मन में असंतुलन हुआ

इससे मुझे दूर रखो सामान्य सा जीवन जीने दो

मेरी बहुत आवश्यकताएं नहीं होगी

जीवन सहज रूप से चलेगा |

तुमसे ही अपेक्षा रहती है

 उस पर भी नियंत्रण हो जाएगा

पर समय लगेगा है यह कठिन पर असंभव नहीं

यह मैं जान गई हूँ खुद पर ही नियंत्रण रखूंगी |

यही हितकर होगा मेरे लिए

एकाग्र चित्य होना होगा आवश्यक

यह हो पाएगा प्रभु की शरण में जाकर

मन पर नियंत्रण रख कर |

यही है  जीवन की खुश हाली का राज

मुझे खुद पर ही संतुलन बनाकर रखना होगा

यही साझ में आया है मेरे

इसी से भवसागर से पार उतर पाऊंगी

आशा सक्सेना  

 

 

07 नवंबर, 2023

कहानी करवा चौथ की -सात भाइयों की एक बहिन की

 

 

एक दिन मेरी छोटी बहन ने मुझसे पूंछा आपको इतनी कहानी कैसे याद हैं |मैंने अपनी यादों की किताब खोली और एक पन्ना खोला |देखी लिस्ट उन कहानियों की जो कभी रात को मम्मीं सुनाया करतीं थी |

दिमाग पर जोर डाला तब कहानियों  का पिटारा खुला |मैंने उसे रोज एक कहानी सुनाने का वादा किया |

नजाने कितनी पुरानी कहानियां याद आईं उसे बड़ी प्रसन्नता होती थी कहानी सुन कर |उसने मुझे प्रोत्साहित किया उन कहानियों को लिपिबद्ध करने के लिए फिर भी मेरी हिम्मत नहीं हुई कहानी लिखने की |बार बार कहने से अब कोशिश करूंगी सोचा |मेरख्याल  था ये सुनी सुनाई कहानी जाने किसने लिखी होंगी उनको अपने नाम से कैसे लिखूंगी |पर बार बार की जिद्द ने प्रयत्न करने के लिए बाध्य किया है –

  सात भाइयों की एक ही बहिन थी |सातों उससे बहुत प्यार करते थे |
वय  प्राप्ति के बाद उसका बिवाह उसी शहर में एक संपन्न परिवार में हुआ |ससुराल में कोई कमीं  न थी |पर भाई बहुत चिंता करते थे उसकी| 
    जब पहली करवा चतुर्थी आई बहन ने निर्जला व्रत रखा |
उसे व्रत चाँद देख कर ही खोलना था |भाई बहुत परेशान थे कि बिना जल के बहिन उपास कैसे रखेगी |उन्हों ने आपस में विचार विमर्श किया |कोई तरकीब निकाली जाए कि बहिन का व्रत जल्दी समाप्त हो जाए |
   आँगन में एक अखैवर का वृक्ष लगा था |भाइयों में से एक
शाम होते ही पेड़ की  सबसे ऊंची  डाल पर एक छलनी ले कर चढ़ गया |उसमें एक जलता हुआ दिया रख लिया |
  सबसे छोटा भाई  बहिन के पास जा कर बोला “चाँद निकल आया है”चलो बहिन व्रत खोलो | बहिन बहुत सीधी थी |उसने पानी पी कर
व्रत तोड़ा |इतने में उसकी ससुराल से समाचार आया कि न जाने उसके पति को क्या हो गया |वह खबर सुनते ही अपनी ससुराल चल दी |वहाँ  सब  हिचकियाँ ले कर रो रहे थे |आसपास के लोग ले जाने की तैयारी करने लगे |उससे रहा नहीं गया और पति की अर्थी को ठेले पर रख घर से निकली |
सबसे पहले घूरे के पास गई उससे कहा “घूरे मामा मैं तुम्हारे पास
आऊँ”|घूरे ने कहा “बेटी तेरे दिन भारी हैं मेरे पास न आ” उसे बुरा लगा और कहा “जाओ१२ वर्ष बाद भी तुम जैसे हो वैसे ही रहोगे”| थोड़ा और आगे चली|राह में एक गाय मिली उससे कहा “क्या मैं तेरे पास आऊँ”|गाय ने भी उसे अपने पास ठहराने से मना कर दिया और कहा “बेटी तेरे दिन भारी है मेरे पास कैसे रहेगी”|उसे बहुत दुःख हुआ और श्राप दिया जिस मुंह से गाय ने मना किया था उसी मुंह से गाय  विष्ठा पान करेगी |
हारी थकी वह एक गूलर के पास पहुंची “गूलर भैया मैं  तुम्हारे पास
रुक जाऊं”|पर गूलर से भी निराशा ही हाथ लगी |उसने गूलर को श्राप दिया की तुम्हारा फल कोई नहीं खाएगा उसमें कीड़े पड़ जाएंगे |
   आगे जा कर वह एक बरगद के नीचे बैठने लगी और पूंछा  “क्या मैं आपके आश्रय में रह सकती हूँ”|बरगद ने जबाब दिया “जहां इतने लोगों ने आश्रय लिया है तुम्हारे लिए क्या कमी है”|वह पेड़ के नीचे छाँव देख कर बैठ गई और प्रार्थना करने लगी  मेरी क्या भूल थी जो मुझे यह कष्ट दिया है|एक ने सलाह दी तुमसे कोई भूल हुई है
देवी की प्रार्थना करो और अपने सुहाग की भिक्षा मांगो |पूरा साल होने को आया जब बारहवी चतुर्थी आई उसने माँ के चरण पकड़ लिए और
कहा पहले मेरा  सुहाग लौटाओ तभी तुम्हारे पैर छोडूंगी |देवी का मन पसीजा और अपनी छोटी उंगली सेउसके पती को  छुआ |उसका पती राम राम कह कर उठ कर बैठ गया |वे दौनों खुशी खुशी घर आए और अपने परिवार के साथ रहने लगे |
आशासक्सेना 

   

  

   

सपने

 

आज की रात सपनों ने डेरा डाला 

मेरी नींद पर जब तक दिन ना हुआ

सुबह होते ही वे कहाँ गुम हो गये

बहुत  खोजा मैंने पर असफल रही |

सब क्या क्यूँ कैसे  में उलझे रहे

 जिससे भी पूंछा कारण सपनों के आने का

सब ने गोलमाल  उत्तर दिया

मेरी क्षुधा कोई शांत न कर पाया |

मेरी बेचैनी इतनी बढी

कि डाक्टरों तक तारों तक जा पहुंची

जो लोग बहुत चिंता करते हैं

उनका  मन शांत नहीं रहता सपने देखते हैं | 

आशा सक्सेना 

06 नवंबर, 2023


हाइकू

१-कुछ कहना

सुनना नहीं अब

 यादें  ही बाक़ी

 

२--तुम्हारे बिना

मन भटकता है

याद सताती

३ -कैसे भूलती

जिसे ना भूली कभी

पल भर को

४ -तन्मय रही

अपनी यादों में  खोई

 व्यस्तता रही

आशा सक्सेना 


04 नवंबर, 2023

भक्तों की महफिल

   भक्तो की महफिल में

भावों का  समूहन हुआ 

भावनाएं प्रवल हुई 

भक्त हुए आसक्त उन में |

दोनो  रहते साथ आपस 

कोई बहस नहीं होती 

मिलजुल कर साथ आते जाते  |

जब आहाट होती दरवाजे पर 

महमानों का स्वागत होता 

दिलो जान से खुश हो कर 

मेंहमानों को बैठाया जाता मंच पर |

कार्यक्रम पारंभ होता परिसर में 

मां सरस्वति के पूजन अर्चन से 

अपने अपने विचार रखे जाते 

सब के समक्ष पूरे प्रमाणों से |

कार्यक्रम सफल होता 

भगवत भजन की अन्तिम प्रस्तुति से 

सब का स्वागत होता पुष्प मालाओं से 

सब प्रस्थान करते अपने अपने घरों को |

आशा सक्सेना 

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03 नवंबर, 2023

कोई नया नहीं

                                                                        


  यह  कैसी जिन्दगी

कुछ  नया नहीं 

 फैला  -चारो ओर  अन्धेरा 

जीवन में खुशी नहीं |

 फैला हुआ दुखी जीवन  

 उजड़ा हुआ सारा  जीवन

 किसी  काम का नहीं 

खुशहाल छोटा सा जीवन हो 

इसी  की राह देखती है |

सपने सजाती है इसके 

कठिनाई  से रहती है दूर्  

प्यार  के  बहुत नजदीक 

प्यार पशु पक्षियों  से करती |

अपने  बच्चों को भी यही सिखाती 

प्यार प्रेम को गले लगाओ 

दुनिया में सफल होजाओ 

सब के प्रिय होते जाओ |

आशा सक्सेना