14 नवंबर, 2023

दीपोत्सव

 

दीपोत्सव –

आज शाम आँगन में

की लिपाई और पुताई

लक्ष्मी स्वर की देवी

का आगमन होने को है |

द्वार पर दीपक लगाए

किया इंतज़ार देवी के आगमन का

बहुत राह देखी उसकी

घर चमकाया अपना आगत के आने का |

देवी हुई प्रसन्न अपने स्वागत से

दिया आशीष दिल खोल कर

पूजा अर्चना के संपन्न होते ही

प्रसाद वितरण किया मन से |

यह त्यौहार आता वर्ष में एक बार

इसी खुशी में घर स्वच्छ किया जाता

देवी के स्वागत में दिए जलाए जाते

फटाके ,फूल झड़ी जला बच्चे बहुत खुश होते |

मिलने जुलने वाले आते स्नेह बांटने

सभी  व्यक्ति पैर पूजते बुजुर्गों के

बदले में आशीष पाते दिल से

जिसे भूल ना पाते फिर से  आने वाले दीपोत्सव  तक |

आशा सक्सेना

 

12 नवंबर, 2023

दीपावली

 

दीपावाली

आज ख़ुशियों  के दीप जलाएं

त्यौहार  मेलजोल का मनाएं  

छोटे बड़े आपस में सदभाव रखें

प्यार प्रेम का गीत गाएं  |

जब प्रसन्नता होगी घर में

लक्ष्मी जी का आना होगा

किसी बात की कमीं न होगी

बच्चों में खुश हाली होगी |

द्वार सजाएं दीपों से

लक्ष्मी का स्वागत करें नैवैध्य चढ़ाएं

खुशिया आएं पूरे घर में  

गुजियों से बच्चे बहुत प्रसन्न होते |

 खुद खाते  अपने मित्रों को खिलाते

आतिशबाजी का आनंद उठाते    

साफ सुथरे घर में रहने का जो आनंद आता

शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता  |

मां ने दो सप्ताह लगाए सफाई अभियान में

घर चमकाया पूरी महनत से  

जिसने देखा प्रशंसा की दिल खोल कर  

लक्ष्मीकी कृपा  हुई घर के सभी सदस्यों पर  |

आशा सक्सेना 

10 नवंबर, 2023

तुमसे ना की शिकायत

 

 तुमसे ना  की शिकायत

ना ही  दुःख मनाया

मन को दी सांत्वना केवल  

जिससे तुम्हारा मन ना दुखे |

मुझे  सब का ख्याल रहता है

यह भी तुमने ना जाना

मुझे तुमसे है यही  शिकायत

तुमने मुझे समझा नहीं |

यदि तुमने मुझे समझा होता

हर पल मुझे नहीं सालता

त्योहारों पर उदासी ना होती

दिल की खुशी चौगुनी होती |

खैर मेरे भाग्य से ज्यादा

कुछ ना चाहिए नाही मिल पाया  

इसका क्या दुःख मनाऊँ

जीवन ऐसा ही चलेगा |

आशा सक्सेना

 

 

09 नवंबर, 2023

शब्दों की रीढ़

 

शब्दों की रीढ़

है अधूरा दीपक का जीवन

 अपने सहायकों के सिवाय

बिना तेल और  बाती के

जीने का अधिकार नहीं |

जब तक समीर ना हो तब भी

उसका भी है अधिकार

तेल और बाती के अलावा

दीपक के जलने में |

है आवश्यक चुने गए

शब्दों की रीढ़ अभिव्यक्ति के लिए

इनके बिना खड़े  होना

संभव नहीं होता अभिव्यक्ति के लिए |

यदि शब्दों की रीढ़ में कोई कमी हो

जीना कठिन हो जाता

हारा थका जीवन

 खिचता जाता  अभिव्यकि का |

आशा सक्सेना

 

रंग ही रंग

                                                                     १-सारी दुनिया 

रंगा रंग  हुई है 

कितनी प्यारी 

२-रगों की रात 

सज रही है कहीं 

देखो तो ज़रा  

३-रंग ही रंग 

बिखरे यहाँ वहां 

उसने देखा 

 ४- पांच  रंग हैं 

आसमान में सजे 

दो गौण रहे 

५-होली के रंग 

सजाए हैं  थाली में 

कान्हां को रंगा 


आशा सक्सेना 


कितने रंग जीवन में बिखरे

 

कितने रंग जीवन में बिखरे

जिन्दगी के कई रंग

 देखने को मिले इस जहां मे |

कोई रंग कैसा कहाँ  ठहरा

या लहराया जाने कहाँ |

जो रंग मन को भाया

पहले पास नजर आया

जब पास जाना चाहा

और दूर होता गया |

मन को ठेस लगी दूरी देख

पर फिर मन को समझाया

हर वह वस्तु जरूरी नहीं  कि मिले

यदि बिना कष्ट मिल जाएगी

कितना आनंद आएगा यह  मालूम नहीं|

यही रंग जीवन में जब  दिखाई देगा

अदभुद नजारा होगा

जबबिखरे रंग  दिखाई देगे  चारो ओर  

लोग जानना चाहेगे यह प्राप्ति कैसे मिली

बताने का  आनन्द कुछ और ही होगा |

आशा सक्सेना

 

08 नवंबर, 2023

अभी तक कुछ ना कहा

 

.अभी तक कुछ न कहा

मन को नियंत्रण में रखा 

ना ही कोई आवश्यकता का इजहार किया

यह नहीं भूलो कि मैं भी हूँ मनुष्य

मेरी भी कुछ अपेक्षाएं हैं तुमसे |

जब भी दूसरों को देखा मन में असंतुलन हुआ

इससे मुझे दूर रखो सामान्य सा जीवन जीने दो

मेरी बहुत आवश्यकताएं नहीं होगी

जीवन सहज रूप से चलेगा |

तुमसे ही अपेक्षा रहती है

 उस पर भी नियंत्रण हो जाएगा

पर समय लगेगा है यह कठिन पर असंभव नहीं

यह मैं जान गई हूँ खुद पर ही नियंत्रण रखूंगी |

यही हितकर होगा मेरे लिए

एकाग्र चित्य होना होगा आवश्यक

यह हो पाएगा प्रभु की शरण में जाकर

मन पर नियंत्रण रख कर |

यही है  जीवन की खुश हाली का राज

मुझे खुद पर ही संतुलन बनाकर रखना होगा

यही साझ में आया है मेरे

इसी से भवसागर से पार उतर पाऊंगी

आशा सक्सेना