14 अक्तूबर, 2019

अभिमान

अभिमान कहो या गर्व
कुछ तो ऐसा है
कि तुम्हारा मुखमंडल
उन्नत हुआ है
हमें भी नाज है तुम पर
बड़े दिल से सम्मान किया है
याद रहे कभी इसे
घमंड में न बदल देना
नहीं तो सर शर्म से झुक जाएगा
कर्तव्य ही छुप जाएगा
केवल अधिकार की चाहत
कभी पूरी न हो पाएगी
अभिमान मिट्टी में मिल जाएगा
फिर लौट कर न आएगा |
आशा


09 अक्तूबर, 2019

बुद्धि

 बुद्धि के दो रूप होते
कुबुद्धि और सुबुद्धि
जब भी पहली जाग्रत होती
समाज में विघटन होता
कई रावण पैदा होते
राम उन्हें नष्ट करने को
होते सचेत तीर मारते
बुद्धि को परिष्कृत करने की
जुगत सोचते रहते
जब सुबुद्धि आती
सभी कार्य सफल होते
समाज बहुत सचेत हो जाता
आगे बढ़ने का मार्ग खोजता
उन्नत समाज आगे आता |
                                                                          आशा

08 अक्तूबर, 2019

एक रूप प्रेम का


मीरा ने घर वर त्यागा 
लगन लगी जब मोहन से
 विष का प्याला पी लिया
शीष नवाया चरणों में |
सूर सूर ना रहे
कृष्ण भक्ति की छाया में 
सारा जग कान्हां मय लगता 
तन मन भीगा उनमें  |
तुलसी रमें राम भक्ति में 
रामायण रच डाली
राम रसायन ऐसा पाया 
भक्ति मार्ग अपनाया |
एक रूप प्रेम का भक्ति 
लगती बड़ीअनूप
नयन मूँद करबद्ध हो 
जब शीश झुके प्रभु चरणों में |
आशा

07 अक्तूबर, 2019

वर्षा (हाइकू )


१-जल बरसा
जब आसमाँ रोया
बहुत हुआ
२-अधिक वर्षा
प्राकृतिक आपदा
पीछा न छोड़ा
३-बाढ़ का दृश्य
भयावह लगता
मन डरता
४-स्याह आसमां
बेहद बरसेगा
आशा नहीं  थी
५-घरों में जल
बदहवास जन
बेचैन मन
६-बादल आए
हुई न बरसात
उमस बढ़ी
७-बढ़ा कहर
अस्तव्यस्त जीवन
वर्षा ही वर्षा
आशा

06 अक्तूबर, 2019

चांदनी




नहीं किया है कैद
ना ही उसे बंधक बनाया है
ना ही कोई बैरी उसका
 है इच्छा शक्ति प्रवल उसकी |
वह  है ही चंचल चपला सी
तांक झांक करती रहती
पहुँच मार्ग खोजती फिरती
खिड़की खुली देख मुस्कुराई है |
उसे ही अपना मार्ग जान
अपने गंतव्य तक पहुँच पाई है
चांदनी खिड़कियों से आई है |
नहीं कोई भय किसी का
ना ही मार्ग चुनने में भूल की उसने
मन पर भारी पत्थर रखकर
भारी जुगत लगाई है|
 ना ही कदम बहके उसके
चाँद से दूर चली आई है
संयम से काम लिया उसने
तभी वहां तक पहुँच पाई है |
अपनी सफलता पर है गर्व उसे
चमक दो गुनी हो गई उसकी
सब के मन को भाई है
चाँदनी खिड़कियों से आई है |
                                                                              आशा

05 अक्तूबर, 2019

चिंगारी दबी रहने दो









आपस की बातों को 
बातों तक ही रहने दो
जो भी छिपा है दिल में
उजागर ना करो
नाकाम मोहब्बत को
परदे में ही रहने दो |
वक्त के साथ बहुत
आगे निकल गये हें
याद ना करें पिछली बातें
सब भूल जाएं हम |
कोशिश भुलाने की
दिल में छिपी आग को
ओर हवा देती है
यादें बीते कल को
भूलने भी नहीं देतीं |
हें रास्ते अलग अपने
जो कभी न मिल पाएंगे
हमारे बीच जो भी था
अब जग जाहिर न हों |
बढ़ती बेचैनी को
और न भड़कने दो
हर बात को तूल न दो
चिंगारियां दबी रहने दो |
आशा



02 अक्तूबर, 2019

हजारों यूं ही मर जाते हैं


    रूप तुम्हारा महका महका 
जिस्म बना संदल सा 
क्या समा बंधता है 
जब तुम गुजरती हो उधर से |
हजारों यूँ ही मर जाते हैं
 तुम्हारे मुस्कुराने से
जब भी निगाहों के वार चलाती हो
 परदे की ओट से|
और देती हो जुम्बिश हलकी सी जब
 अपनी काकुल को
उसका कम्पन  और
 लव पर आती सहज  मुस्कान
  निगाहों के वार देने लगे 
सन्देश जो रहा अनकहा   |
कहने की शक्ति मन में 
छिपे शब्दों की हुई खोखली
फिर भी हजारों  मर जाते हैं 
तुम्हारे मुस्कुराने से |
इन अदाओं पर 
लाख पहरा लगा हो 
कठिन परीक्षा से गुजर जाते हैं 
बहुत सरलता से |

 आशा