22 नवंबर, 2021

कोयल चतुर (हाइकु )




 हरी ने  कहा 

करो  विनती मेरी 

वो  भूल गया 


सुबह हुई 

धूप चढ़ आई है 

तुम न उठे 


कोयल बोले 

कर्ण  सुनते  धुन  

मन मोहक  


कागा है  काला 

कोयल है  चतुर 

कोयल काली  


सुर  उसका 

मीठा है  मधुर है 

  कागा का नहीं 


                                           कोयल  काली  

                                           अपने अंडे देती  

                                               कौए के घर  


                                               है वह चंट 

चालाक बहुत है 

उड़ जाती है 



                                                   आशा 




 

21 नवंबर, 2021

इतना न झुकना

 

                 किसी के सामने न झुकना  

कि तुम्हारी गर्दन में बल आजाए 

यह तो शारीरिक व्यथा है

पर मन के कष्ट का क्या ?

कभी सोचा हो या नहीं तुमने  

मुझे क्या तुम्हारी जो इच्छा हो

किसी पर झुको या न झुको

या उसमें ही खो जाओ

 स्वाभिमान  ही भूल जाओ |

पर जब समय बीत जाएगा

कोसना न मन को अपने  

 कहना नहीं किसी ने बताया नहीं  

किसी के सामने इतना न झुकना  

कि तुम्हारी गर्दन में बल आजाए |

यह तो शारीरिक व्यथा है 

पर मन के कष्ट का क्या ? 

कभी सोचा या नहीं | 

मुझे क्या तुम्हारी जो इच्छा हो 

किसी पर झुको या न झुको 

या उसमें ही खो जाओ 

 स्वाभिमान ही भूल जाओ |

पर जब समय बीत जाएगा 

कोसना न मन को अपने  

 कहना नहीं किसी ने बताया नहीं 

कोई क्या समझाए कितना समझाए |   

घूमना न हर बार की तरह मुंह लटकाए 

ना ही दोष देना अपने आप को  

कभी कोई बात भी गंभीर हो सुन लेना मेरी 

मैं दुश्मन तो नहीं जो गलत बात करूंगी |

हूँ मित्र तुम्हारी जानों य न जानों  

मैं जिस्म हूँ और जान   तुम्हारी 

तुम मानो या न मानो पर मुझे एहसास है

तुम से दूर नहीं हूँ तुम्हें समझती  हूँ | 

किसी के सामने नत मस्तक न होना 

अडिग अपनी बातों पर रहना

 यही शोभा देता है  तुम्हें 

तुम जैसा मेरे लिए कोई नहीं है |

आशा  

    





    

19 नवंबर, 2021

कर्म या भाग्य

 


दुनिया देखी जब से  

भाँति  भाँति  के रंगों से नहाई

हर रंग जमाए अपनी धाक 

 शेष रंग रहे बेताव |

दिखा असंतोष उनमें आपस में  

वही करते रहे प्रलाप

 उनको कोई स्थान न मिला  

 यह कैसा न्याय मिला |

क्या यही समानता की है परिभाषा

जो मांगे सब मिल जाता है

यह कहा झूटा नहीं क्या? 

“बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख” |

है यह कैसा न्याय प्रभू

किसी को दिया धान  भर झोली 

किसी को केवल आशीर्वाद

 मेरे भाग्य में दोनो न थे

मैं रहा सदा खाली हाथ |

अक्सर कहा जाता कर्म प्रधान होता 

कोई कहता भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता 

मैं उलझा शब्दों की तलैया में

बाहर निकलने की राह न मिली |

वहां खड़ा हो सोच रहा कैसे बाहर आऊँ 

 जितनी बार यत्न किया

सर पटक कर रह गया

निकल न पाया भूलभुलैया में  से |

आशा 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हूँ अधूरा तुम्हारे बिना


 

 कंचन काया देखी जब चिलमन से

 चेहरे पर मधुर मुस्कान लिए 

एक झलक देखने को तरसा  

नींद तक बैरी हुई मेरी |

जब भी पलकें बंद करता हूँ

तुम्ही नजर आने लगती हो

कभी यहाँ कभी वहां थिरकती

घूमती रहतीं मेरे आस पास |

मुझे जूनून सा  हो गया है

 तुम्हारी एक झलक देखने को  

 तुम्हें पाने को अपनाने को 

तुम पर अधिकार जताने का मन है |

अपने मन की सारी  बातें

तुमसे करने का तुमसे सलाह लेने का 

आज तक मैंने किसी को नहीं देखा

जो हो निष्पक्ष सलाहकार निर्णयकर्ता  

बात यदि कटु भी हो सही सलाह देती|

मुंह देखी बात नहीं करती  

हलकी सी मुस्कान से

मन को शांत कर देती   

बेचैन नहीं रहने देती  |

मेरा मन कहता है

 तुम बनी हो मेरे लिए    

  प्यार मुझसे ही करती हो

कह नहीं पाती तो क्या ?

समाज से जो बंधी हो |

अब जल्दी से आजाओ

मुझ से राह नहीं देखी जाती

सदा बेचैन किए रहती  

 हूँ अधूरा तुम्हारे बिना |

आशा 

18 नवंबर, 2021

वर्ण पिरामिड


 


          है

         यह

        सहज

       सरलता

      लिए हुए है

    कोई भी उपाय 

   कठिन न उसके

   सहज योग अच्छा है   

   संबल योग का उसका |

 मैं 

तुम

दौनों ही   

हमदम  

न  दूसरा है    

मैंरी    प्रेरणा 

तुम  ही  केवल 

तुम पर है आस्था 

तुम गुरू  मेरे लिए 

नमन तुम को  दिल से |

         हे 

       प्रभू 

    मुझे दो 

    आसरा ही    

   हे दया निधान 

रखो सदा अपनी

  छत्र छाया में मुझको   

हो दया द्रष्टि भी  साथ में |


है 

अब 

कहाँ से  

मन को जाना 

कितनी बाधाएं 

पार न कर सका 

दुनिया के जंजाल से  

खुद को निकाल न पाया |

आशा 





 

 

 

 

 

17 नवंबर, 2021

क्षणिकाएं




 


१-संजोग कहो या बेगानापन

या हो इतफाक कोई

जो भी हुआ अच्छा हुआ

कोई सदमा नहीं मुझे |

२- किसी ने कभी भी  

प्यार तो जताया नहीं

हर तरह निराश किया

दो बोल मीठे  न बोले

शायद यही प्रारब्ध था मेरा |

३- मेरा तुझसे यह कहना है

किसी पर एतवार न करना कभी

जो जितना मीठा बोलता दिखे

 मन में कपट की खिचड़ी पके |

४- चंचल चपला हर अदा तेरी

यही तुझे  विशिष्ट बनाती

यदि नयना झुक जाएं तेरे

सुनामी दिल में आ जाती है |

५- पारद  सा तरल दिल है मेरा  

स्थिर नहीं रह पाता कभी

किससे कहूं व्यथा अपनी

किसी की सलाह नहीं जचती मुझे |

६-प्यार की हरारत उसको 

होती रही हर बार 

तुम जाओगे कहाँ तक 

योग साधना का संबल ले कर | 

आशा 





















आशा 

16 नवंबर, 2021

मन बावरा

 


मन बावरा माना ना

कुछ भी जानना चाहा ना  

क्या कहाँ चाहिए उसे

उसने पहचाना ना  |

यहीं मात खाई उसने  

जीवन में सबसे हारा

 कभी सफल न हो पाया 

 कितनी भी  कोशिश की उसने|

यही हार दुःखदायी हुई

कल के सपने धराशाही हुए  

 गिर कर चकना चूर हुए

कोई स्वप्न साकार न हुआ |

मन को बहुत संताप रहा  

 कुछ भी नहीं वह कर सका

सफलता पाने के लिए

जीवन सफल बनाने के लिए |

 बस यही दुःख उसे

सालता रहा जीवन भर

क्या कारण रहा होगा

जीवन असफल होने  के लिए |

उसकी जड़ तक

 वह पंहुंच न सका

बावरा था बावारा ही रहा

कुछ नया हांसिल न हुआ |  

आशा