26 अप्रैल, 2021

महामारी का रूप भयावह

 



                       

                         
          



                     अब तो बात फैल गई 

खुद के वश में कुछ न रहा 

कोविद कोविद मत कर बन्दे 

यह है उपज अपनी ही लापरवाई की |

जब भी कोई बात बताई जाती

सिरे से नकारा जाता उसको

जब जोर जबरदस्ती की जाती

पुलिस से  झूमाझटकी होती |

उन्हें  क्षति पहुंचाई जाती

इतना तक विचार नहीं होता

दिशा निर्देश होते है पालनार्थ

जनता की भलाई के लिए |

क्या है आवश्यक विरोध नियमों का

 हर उस बात का विरोध करना

जो किसी ने सुझाई हो

 सरकार को देश हित के लिए |

इतनी सुविधाएं देने पर भी  

नाकारा सरकार है कहा जाता

सरकार विरोधी नारे लगा

वातावरण दूषित किया जाता |

इससे हानि किसको होती

सरकार तो सजा नहीं पाती

केवल आर्थिक तंगी में फंसती जाती 

महामारी का रूप भयावह 

देख रूह काँप जाती |

अपनों को  गंवा कर दुःख झेलती 

आम जनता ही उलझनों में 

 फँस कर रह जाती |

आशा 

25 अप्रैल, 2021

हाइकु



 ·                                                              1-कोरोना भय

इतना गहरा है

मन में पैठा

 

2-चैन किसी का

मन में समागया

बाहर नहीं

 

3-थके व्यक्ति

आँखें नम आँसू से

व्यथा न कही

 

4-सागर जल

प्यास न बुझे खारा

आंसुओं जेसा

 

5-था बीता कल

स्वर्णिम यादों भरा

लौट न पाया


6-मन अशांत 

खोज रहा सुकून 

चंद पलों का 


७-जीने की राह 

है बहुत कठिन 

चला न जाए 


८-पीड़ित मन 

दुख से भरा रहा 

जान न पाया 


९- मन मुदित 

किस कारण से है 

ना  पहचाना 

 

आशा 

तिल तिल मिटी हस्ती मेरी


तिल तिल कर मिटी हस्ती मेरी 

कभी इस पर विचार न किया

जब तक सीमा पार न हुई

तरह तरह की अफवाएं न उड़ी|

रोज सुबह होते ही

कोई  अफवाह सर उठाती

किये रहती बाजार गर्म उस दिन का

सुन व्यंग बाण मन आहत होने लगता  |

 कभी रोती सिसकती सोचती किसी को क्या लाभ

 दूसरों  की जिन्दगी में ताकाझाँकी  करने का

मिर्च मसाला मिला  चटपटी चाट बना कर

अनर्गल बातें फैलाने का  |

सूरज पश्चिम से तो उगेगा नहीं

ना ही पूर्व में अस्त होगा

दिन में रात का एहसास कभी न होगा

 ना ही   पूरनमासी को  अधेरी रात दिखेगी |

अपनी समस्याओं से कब मुक्ति मिलेगी 

इस तक का मुझा एह्सास नहीं हुआ अब तक

 खुद की समस्याओं में  ऎसी उलझी मैं 

 निदान उनका न कर पाई और तिल तिल मिटती गई |

यही एक कमी है मुझमें

हर बात किसी से सांझा करने की चाह में

कुपात्र या सुपात्र नहीं दिखाई देता

दिल खोल कर सब बातों को सांझा करती हूँ |

यहीं मात खाती हूँ तिलतिल मिटती जाती हूँ

फिर अपना खोया हुआ सम्मान अस्तित्व में  खोजती हूँ

अब तक तो वह हवा होगया कैसे मिलेगा कहाँ मिलेगा

भूलना होगा मेरा भी अस्तित्व कभी था बीते कल में |

आशा

24 अप्रैल, 2021

विश्व पृथवी दिवस


 

जलचर थलचर और नभचर

 निर्जीव और सजीव सहचर

 एकत्र हो बनाते एक समुच्चय

जो कहलाता विश्व का स्वरुप

वहां भिन्न प्रजातियाँ जीवों की

आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर

करती रहतीं  वास हैं |

हर समय की  चहल पहल

जीवन्त बनाए रखती वातावरण

इसे यदि क्षति पहुंचे उसे तो कष्ट होता ही है

कितना कष्ट होता सोच प्रधान मन को |

यदि जीने की तनिक भी तमन्ना हो

आसपास की सभी  वस्तुएं होती आवश्यक

सजीव हों या निर्जीव सभी के लिए

इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता |

आवश्यक है दोहन प्रकृति का सीमित हो

और बड़े  यत्न से किया जाए

पुरानी  यादों को दोहराने के लिए

इस तरह के आयोजन किये जाते हैं |

आशा

 

 

हाइकु (कोविद )


 

१-जीवन शुष्क

ना कोई आकर्षण

बदरंग है

२-कष्टों की बेल  

आसपास पसरी

स्वप्न अधूरा  

३-महांमारी का

जब  आगाज हुआ  

सदमा लगा

४-विकट रूप  

कोविद की बापसी

रूप बदला

५- दुगुनी शक्ति

समाई है  इस में

जान न बक्शी

६- कोई भी कष्ट  

सहा जा सकता है

कोविद नहीं  


आशा 

 

23 अप्रैल, 2021

बाधाएं और जीवन


बाधाएं और जीवन

 चलते आगे पीछे

 इस तरह पास  रहते

 मानो हैं  सहोदर कभी न बिछुड़ेगे |

जब जीवन में अग्रसर होने की

 खुशी आनी होती है

बाधाएं पहले से ही  खडी होतीं

व्यवधान डालने को |

कोई कार्य सम्पन्न नहीं होता

 बिना बाधाएं पार किये

 हर बाधा से दो दो हाथकरना पड़ते

एक जुझारू व्यक्ति  की तरह |

जिसने ये  बातें जान लीं

और दिल से स्वीकारा उन्हें  

वही सफल हुआ  अपने  जीवन में

हारने से  भय कैसा  बाधाओं से |

जिसने समझ  लिया उन को

 सामंजस्य स्थापित किया उनसे

वही सफल हो पाया लड़ने में उनसे |

 है ऐसा मन्त्र बाधाओं से बचने का

जिसने सीख लिया और अपनाया 

सफलता कदम चूमती उसके

जब भी जीत हांसिल होती

 मन बल्लियों उछलता उसका  |

आशा | 

22 अप्रैल, 2021

नेता आज के

 

गलियारे सत्ता के हैं

काजल की कोठारी जेसे

जिसने भी कदम रखा उसमें

रपटता चला गया |

उसके काले रंग  में ऐसा रंगा

रगड़ कर धोने में ही

सारी अकल छट गई

समय की सुई वहीं अटकी रह गई |

ना नए चहरे ना ही कुछ नया सोच  

वही पुराने अवसरवादी नेता 

बेपैदी के लोटे जेसे

 कभी इधर कभी उधर होते |

लुढ़कते एक से दूसरी पार्टी में

जाना नहीं जा सकता   

है कैसी मानसिकता उनकी  

क्या उसूल जादू से बदल जाते हैं |

जब  नवीन पार्टी में आए  

कुछ नियम अपनाने का वादा किया

कसमें खाईं वादे  आत्मसात करने की

 हवा का रुख बदलते ही

गिरगिट सा रंग बदला |

दिखावे के लिए पूर्ण रूप से बदले

नया चेहरा उभार कर आया

 जब मुह पर मुखौटा लगाया

एक नए परिवर्तित रूप रंग में |

यही नेता अब पहचाने नहीं जाते

नए रंग रूप नए  परिवेश में

रंग ढंग सब बदले उनके इस नए रूप में

बातों में भी है बड़ा  परिवर्तन |

यही है आज के  नेता की पहिचान

 अपने लिए जीते हैं वर्तमान में

अपने हित को ही देखने की आदत है

दूसरों के हित  की नहीं सोच पाते |

आशा

 

21 अप्रैल, 2021

महफिल न सजी पहले सी






 सांझ हुई धुधलका बढ़ा

शमा जली है चले आइये

आप बिन अधूरी है महफिलेशान

जिन मक्तों में दम नहीं है

वही गाए गुनगुनाए जाते हैं

उन में कोई रस नजर नहीं आता |

फीकी  है शमा की रौशनी भी

जब परवाने न हों फिर वह तेज कहाँ

वायु वेग भी सह लिया जाता

अपने ऊपर मर मिटने  वालों के लिए |

तुम गैर नहीं हो फिर भी मुझ से यह दूरी  

यह कैंसी सजा दे रहे हो

महफिल है अधूरी तुम्हारे बिना

गजलें हुई बेसुरी तुम्हारे बिना |

  हैं  सारे गीत अधूरे साजों के बिना

जो रौनक रहा करती थी तुम्हारी उपस्थिती से

शमा थकी रात भर के जागरण से

वह भी अब विश्राम चाहती है |

 अब तो आजाइए  देर से ही सही

अभी है भोर की लालिमा   दूर बहुत

यह दूरी  पाटना कठिन न होगी  

इस महफिल को  फिर से रंगीन कर जाइए |

                                                 आशा