03 अप्रैल, 2019

रूप तेरा







रूप तेरा पूनम के चाँद सा
चेहरा सजा साज  सिंगार से
माथे पर कुमकुम का टीका
खुशबू से अंग अंग महका |
केश विन्यास सुन्दर तेरा  
बड़े सलीके से सजाया गया है
श्वेत पुष्पों की माला से|
मृगनयनी चंचल चपल  
 हैं नैन बड़े  विशाल  तेरे
पैनी उनकी धार से  जब करते कटाक्ष
हृदय विदीर्ण हो जाता |
चाहे जितने करू उपचार
 दर्द कम न होता
जब चलते नैनों के बाण  तीखे
घाव दिल के नहीं भरते |
नैनों में कजरे की गहरी  रेखा   
आकार बढ़ा देतीं इतना
लगता पूरा कैद कर लेंगी मुझे
क्यूँ न मैं समा जाऊं उनमें |
हाथों की उंगलियों से  
 मुंह छिपाने की कोशिश
 मैं एकटक देखता रहूँ
पलकें भी न झपकाऊँ |
तेरी यह अद्भुद छवि और अधिक
 आकर्षित  करती मुझे
मन में भय रहता सदा ही  
किसी की नजर न लगे तुझे |
                                             आशा

शायद



                                   है शब्द  बहुत सामान्य सा
पर करतब इसके बहुत बड़े
जब भी उपयोग में लाया जाता
कुछ नया रंग दिखलाता
किन्तु परन्तु की उलझने
सदा  अपने साथ लाता
जब भी शायद का उपयोग होता
वह मन में बिछे उलझनों के जाल में
ऐसा फंसता जैसे
 मीन बिन जल के तड़पती
हरबार असमंजस होता हावी
क्या करे ? कैसे करे?
यह यदि किया होता
दुविधा से सरलता से  निकल पाता
उलझन से छुटकारा पाता
इस शब्द की आराधना
पड़ती बहुत मंहगी
उससे बच  कर जो रहता
दुखों से दूरी  बनाकर चलता
वही सफल हो पाता
किन्तु , परन्तु ,क्या, क्यों ,कैसे
के जाल से मन को मुक्त कर पाता
                                सहज भाव से जीवन  जी पाता 
                                             |आशा

02 अप्रैल, 2019

फलसफा प्रजातंत्र का

बंद ठण्डे कमरों में बैठी सरकार
नीति निर्धारित करती 
पालनार्थ आदेश पारित करती 
पर अर्थ का अनर्थ ही होता 
मंहगाई सर चढ़ बोलती 
नीति जनता तक जब पहुँचती 
अधिभार लिए होती 
हर बार भाव बढ़ जाते 
या वस्तु अनुपलब्ध होती 
पर यह जद्दोजहद केवल 
आम आदमी तक ही सीमित होती 
नीति निर्धारकों को 
छू तक नहीं पाती 
धनी और धनी हो जाते 
निर्धन ठगे से रह जाते 
बीच वाले मज़े लेते ! 
न तो दुःख ही बाँटते 
न दर्द की दवा ही देते 
ये नीति नियम किसलिए और 
किसके लिए बनते हैं 
आज तक समझ न आया ! 
प्रजातंत्र का फलसफा 
कोई समझ न पाया ! 
शायद इसीलिये किसीने कहा 
पहले वाले दिन बहुत अच्छे थे 
वर्तमान मन को न भाया !

01 अप्रैल, 2019

शरारत




















बच्चों की शरारतों की
बचपन की प्यारी बाते
जब भी याद आती हैं
हंसने के लिए काफी हैं|
जब अति हो जाती है
गुस्सा बहुत आता है
पर भोली सूरत देख कर
वह कहीं खो जाता है |
जब भी एक पर करते क्रोध
दूसरा बचाने आ जाता
अरे छोड़ो मां अभी बच्चा है
कहकर उसे बचा ले जाता |
फिर बाहर जा कर हँसी के मारे
लोटपोट होता जाता
कहता मां भी कितनी भोली है
जल्दी से पट जाती है |
शरारत और बचपन  का
आपस में रिश्ता है अनुपम 
दौनों एक दूसरे के अनुपूरक 
अधूरे एक दूसरे के बिना |
आशा



आशा

29 मार्च, 2019

नयनों की सुनामी




दो नैनों के 
नीले समुन्दर में 
तैरती दो सुरमई मीन 
दृश्य मनमोहक होता |
पर जब लहरें उमड़तीं 
पाल पर करतीं वार 
अनायास सुनामी सा कहर टूटता 
थमने का नाम नहीं लेता ! 
है ये कैसा मंज़र 
न जाने कब 
नदी का सौम्य रूप 
नद में बदल जाता |
अश्रु पूरित आखों से 
 जल का रिसाव कम न होता  
हृदय विदारक पल होता 
जब गोरे गुलाबी कपोलों पर
अश्रु आते, सूख जाते 
निशान अपने छोड़ जाते  ! 
आशा 

26 मार्च, 2019

क्या होता












 जब शाम ढलने को आती
सब घर पहुँचने की
करते तैयारी
पक्षी अपने  समूंह में
हो कर एकत्र
गंतव्य तक पहुँचाने की
करते तैयारी

 संचित  दाना एकत्र कर
जल्दी से घर पहुँचने की
इच्छा रखते
भूले से कोई यदि राह भटक जाता
क्या होती उसकी हालत
देखी नहीं जाती
बहुत बेचैन हो
वह खोजता अपने साथियों को
जब मिलते
प्रसन्न हो जोर जोर से चहकते
चुस्ती से घर की राह पकड़ते
रहता इन्तजार चूजों को
माता पिता के आने का
जोर से चूंचूं कर अपनों का
स्वागत करते
चाहते जानना
क्या उपहारआया
आज उनके लिए
मां सोचती क्या होता
यदि वह  राह भटक जाती
समय पर घर लौट न पाती |
आशा

20 मार्च, 2019

फागुन आया है







कान्हां संग राधा  खेलें फाग
 फागुन आया है 
यादों की सौगात लिए
आया महीना फागुन का
रंगों में सराबोर होने का
 आपस में प्यार बांटने का
रंग गुलाल लिए हाथों में
बच्चे ले पिचकारी आए
मनुहार की लगवालो रंग
न माने की बरजोरी
यूँ तो रंग से डर लगता है
पर रहता इन्तजार मनुहार का
अपनों का स्नेह पाने का
पर बहुत खालीपन है
किसी की याद कर के
इन्तजार रहा करता था
 रंगों की होली का
गुजिया पपड़ी खाने का
एक साथ मिल कर
वे दिन बीते कल की बात हो गए
जाने कहाँ खो गए
बस यादों में बस कर रह गए |
आशा




18 मार्च, 2019

होली( हाईकू )





१- रंग रंगीली
होली आ गई है
प्रेम से रंगों
२-फूलों की होली
खेली बनवारी ने
राधा के संग
३-विरही मन
रोज राह देखता
प्रियतम की
४-मलें गुलाल
प्यारे से मुख पर
है होली आज
५-उड़ा गुलाल
होली में बरसा रंग
जीना मुहाल
६-होली में होली
जल गई बुराई
विजयी सत्य
आशा

होली








 होली रंग रंगीली  आई
प्यार की सौगात लाई
कड़वाहट को भूल   कर
मन को डुबोती प्रेम रंग में |
इस रंगों के  त्योहार का
है यही सरल सा उपाय 
भाईचारे को निभाने का 
मन में भरा  कलुष मिटाने का |
लगाए जो भी  गुलाल
लाल सारा मुंह कर जाए
जब गुलाल  हटाया जाए
प्यार के निशान  छोड़ जाए |
यह रंगों का खेल नहीं
यह तो हैआपस की  वर  जोरी
बड़ा इन्तजार रहता है
इन लम्हों को जीने का |
खुशहाली का आलम ऐसा
भुलाया नहीं जा सकता
रंगों का तालमेल ऐसा
अपनाना सहज नहीं है |
रंगीनी जीवन में घुलती है ऐसे
 शक्कर मिली हो पानी में जैसे  
बहुत समय तक मिठास  बनी रहती है
होली पर घोटी गई भंग में |
फाग के गीत गाना किसे नहीं सुहाता
  फगुआ मांगना मन को बहुत भाता
चंग की थाप पर  थिरकना नाचना
अद्भुद समा होता इस त्योहार का |
                                               आशा

17 मार्च, 2019

वह दिन जरूर आएगा







वह दिन जरूर आएगा
तुम  हमें न भूल पाओगे
किस्से देश प्रेम के 
 जब भी  दोहराए जाएंगे   
देश से मोहब्बत के फसानों में
 हमारा नाम आएगा
 जितनी भी कोशिश  कर लो
हमें न भूल पाओगे
किताब के पन्ने में
हमारा नाम लिखा जाएगा
हमारा प्यार रंग लाएगा
प्यार की होली न जलेगी
नफरत होगी  अलविदा
हमारा प्यार होगा बेमिसाल
 भाईचारे की ओर बढ़ता कदम
 है  आवश्यकता बहुत
वर्तमान  युग में सौहार्द की
इसी कमी को दूर कर
नया भारत बनेगा शक्तिसंपन्न
अलग अलग विचारों से
तकरार बढ़ती है
 होता यही  अलगाव का कारण  
समान विचारों से दिलों की
 दरारें मिटती हैं
होते एक समान विचार जब
सभी योजनाएं होती सफल
जब सफलता की पायदान चढ़ेंगे
तभी प्रजातंत्र में निखार आएगा
सच्चा जनतंत्र नजर आएगा | 
                                                                            आशा