09 मई, 2010

माँ

मातृ दिवस के उपलक्ष्य में ,
ममता का कोई मोल नहीं होता ,
हतभागा है वह जो इसे खो देता ,
माँ की ममता का कोई नहीं सानी ,
उसकी ममता है अथाह नहीं मैं अनजानी ,
उसके प्यार की थपकी ,
मुझे जब भी याद आ जाती हैं ,
आँखें नम हो जाती हैं ,
माँ की याद दिलाती हैं |


आशा
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07 मई, 2010

कुछ लोग ऐसे भी होते है

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं ,
जो कभी बड़े नहीं होते ,
मन की कुंठाओं को ढोते-ढोते ,
पार किये उम्र के कितने पड़ाव ,
पर बीच में कहीं ठिठक गये ,
मन में कई अवसाद लिये ,
बड़े कहलाने की चाहत
रखते हैं ,
पर संयत व्यवहार नहीं करते ,
कुंठाओं से नहीं उबर पाते ,
निंदा रस का स्वाद आत्मसात कर लेते हैं ,
पर निंदा का कोई अवसर ,
नहीं हाथ से जाने देते ,
हीन भावना के परिचायक ,
सब को तुच्छ समझते हैं ,
दुनियादारी से दूर बहुत ,
खुद को बहुत समझते हैं ,
दूरी सबसे रखते हैं ,
अहम भाव से भरे हुए ,
संकीर्ण मानसिकता के
पुरोधा होते हैं |


आशा

05 मई, 2010

उदासी का नामोंनिशां नहीं होगा


तुम गुमसुम से क्यूँ बैठे हो
कुछ अधिक उदास ही रहते हो
कोई तो ऐसी बात करो
जो तुमको भी रास आ जाये
मेरा मन भी बहला जाये
कुछ तुम सोचो कुछ मैं सोचूँ
दोनों का सोच यदिहो एक् सा
दुनिया रंगीन नजर आये
दुःख से दुनिया भरी हुई है
पर सुख की भी कोई कमी नहीं 
दुःख से तुम किनारा कर लो
सुख से ही बस नाता जोड़ो
सारे कष्ट भुला कर अपने
खुशियों से  रिश्ता जोड़ो
कुछ तुम बढ़ो कुछ मै बढूँ
दुनिया के सब बंधन तोडूँ
मेरा हाथ जब  थामोगे
मुझे अपने साथ  पाओगे
देखो दुनिया कितनी रंगीन
खुशियों से दामन भर लाओ
आने वाले कल को अपनाओ
खुशियों से भरा कल होगा
उदासी का नामोनिशां नहीं होगा |

आशा

04 मई, 2010

अनुपम छटा प्रकृति की

रात चाहे कितनी लम्बी हो
इसके बाद सुबह होती है
बाल सूर्य की प्रथम किरण
अंधकार को धो देती है |
मंद हवा का स्पंदन
खुशबू से भरता उपवन
फूलों से गंध चुरा लाया
सारे उपवन को महकाया |
बाल सूर्य की स्वर्णिम किरणें
चारों ओर बिखरने लगीं
मन बंजारा ठहर गया
स्वर्णिम आभा में सराबोर हुआ |
प्रकृति की रंगीन छटा
अंतस में घर करने लगी
अरुणाई समस्त व्योम की
अपनी बाँहों में भरने लगी|
अमलतास के  फूलों से
पीली धरती पीला उपवन
पुष्प गुच्छों में स्पंदन
उनमें से किरणों का विचरण |
रंग बिरंगे फूलों से
सजा हुआ पूरा उपवन
मन भावन दृश्य उभरने लगा
अंतरमन में सिमटने लगा |
सूरज की किरणों का
स्वागत करता पूरा मधुवन
मन प्रफुल्लित हो जाता है
प्रकृति में रमता जाता है |
चिड़ियों का कलरव उड़ना उनका
मन के तारों को छूने लगा
मन झंकृत होने लगा
यह अद्भुत छटा प्रकृति की
अनुपम देन वन देवी की |


आशा

03 मई, 2010

यदि ऐसा होता


उपालंभ तुम देते रहे
हर बार उन्हें वह सहती रही
जब दुःख हद से पार हुआ
उसका जीना दुश्वार हुआ
कुछ अधिक सहा और सह न सकी
उसका मन बहुत अशांत हुआ
पानी जब सिर से गुजर गया
उसने सब पीछे छोड़ दिया
निराशा मन में घर करने लगी
जीने का मोह भंग हुआ
अपनी खुशियाँ अपने सुख दुःख
मुट्ठी में बंद किये सब कुछ
अरमानों की बलिवेदी पर
खुद की बली चढ़ा बैठी
जीते जी खुद को मिटा बैठी
दो शब्द प्यार के बोले होते
दिल के रहस्य खोले होते
जीवन में इतनी कटुता ना होती
वह हद को पार नहीं करती
सदा तुम्हारी ही रहती |


आशा

01 मई, 2010

बंधन प्रेम का

कुछ ऐसी बात करो मुझसे ,
जो मेरे मन पर छा जाये ,
आहत पक्षी की तरह ,
मुझको भी जीना आ जाये |
आज मुझे छोड़ कर ,
तुम कैसे जा पाओगे ,
यह है एक ऐसा बंधन ,
जिसको ना तोड़ पाओगे |
प्रेम पाश में बाँध कर मेरे ,
खींचते चले आओगे ,
मुझ से बच कर दूर बहुत ,
आखिर तुम कहाँ जाओगे |
मैंने जो प्यार दिया तुमको
उसे कैसे झुठलाओगे ,
मुझ को दंश प्रेम का दे कर ,
तुम कैसे जा पाओगे |
मेरे साथ बिठाये हर पल ,
छाया बन कर साथ चलेंगे ,
यह निस्वार्थ प्रेम का बंधन ,
कैसे उसे भुला पाओगे |


आशा

30 अप्रैल, 2010

जीने की ललक अभी बाकी है

स्वत्व पर मेरे पर्दा डाला ,
मुझको अपने जैसा ढाला ,
बातों ही बातों में मेरा ,
मन बहलाना चाहा ,
स्वावलम्बी ना होने दिया ,
अपने ढंग से जीने न दिया |
तुमने जो खुशी चाही मुझसे ,
उसमें खुद को भुलाने लगी ,
अपना मन बहलाने लगी ,
अपना अस्तित्व भूल बैठी ,
मन की खुशियाँ मुझ से रूठीं ,
मैं तुम में ही खोने लगी |
आखिर तुम हो कौन ?
जो मेरे दिल में समाते गए ,
मुझको अपना बनाते गए ,
प्रगाढ़ प्रेम का रंग बना ,
उसमें मुझे डुबोते गए |
पर मैं ऊब चुकी हूँ अब ,
तुम्हारी इन बातों से ,
ना खेलो जज़बातों से,
मुझको खुद ही जी लेने दो ,
कठपुतली ना बनने दो ,
उम्र नहीं रुक पाती है ,
जीने की ललक अभी बाकी है |


आशा