क्या खोया क्या पाया मैने
आकलन जब भी किया
सच्चाई जानना चाही
मैं और उदास हो गयी
बहुत खोया कुछ ना पाया
जब भी पीछे मुड़ कर देखा
लुटा हुआ खुद को पाया
जाने कितने लोग मिले
केवल सतही संबंधों से
जिनके चहरे खूब खिले
यह सब मैने नहीं चाहा
अपनों को ही अपनाया
मन से सब का अच्छा चाहा
पर आत्मीय कोई ना पाया
जूझ रही हूं जिंदगी से
कुछ अच्छा नहीं लगता
चारों और अन्धेरा लगता
और उदासी छा जाती है
सोचती हूं ,विचारती हूं
लंबी उम्र बनी ही क्यूँ
यदि निरोगी काया होती
शायद तब अच्छा लगता
पर इससे हूं दूर बहुत
हर ओर वीराना लगता है
फिर भी मन को छलती हूं
देती हूँ झूटी सांत्वना
कभी तो समय बदलेगा
कोई अपना होगा
निराशा नहीं होगी
आशा का दीप जलेगा
आशा