छोटी बड़ी रंग बिरंगी ,
भाँति-भाँति की कई पतंग ,
आसमान में उड़ती दिखतीं ,
करतीं उत्पन्न दृश्य मनोरम ,
होती हैं सभी सहोदरा ,
पर डोर होती अलग-अलग ,
उड़ कर जाने कहाँ जायेंगी ,
होगा क्या भविष्य उनका ,
पर वे हैं अपार प्रसन्न अपने
रंगीन अल्प कालिक जीवन से ,
बाँटती खुशियाँ नाच-नाच कर ,
खुले आसमान में ,
हवा के संग रेस लगा कर |
अधिक बंधन स्वीकार नहीं उन्हें ,
जैसे ही डोर टूट जाती है ,
वे स्वतंत्र हो उड़ जाती हैं,
जाने कहाँ अंत हीन आकाश में ,
दिशा दशा होती अनिश्चित उनकी ,
ठीक उसी प्रकार
जैसे आत्मा शरीर के अन्दर |
उन्मुक्त हो जाने कहाँ जायेगी,
कहाँ रहेगी, कहाँ विश्राम करेगी ,
या यूँ ही घूमती रहेगी ,
नीले-नीले अम्बर में ,
कोई ना जान पाया अब तक
बस सोचा ही जा सकता है
समानता है कितनी ,
आत्मा और पतंग में |
आशा