ना तो जानती थी
ना ही जानना चाहती थी
वह क्या चाहती थी
थी दुनिया से दूर बहुत
अपने में खोई रहती थी |
कल क्या खोया
ओर कल क्या होगा
तनिक भी न सोचती थी
वर्त्तमान में जीती थी |
जो भी देखती थी
पाने की लालसा रखती थी
धरती पर रह कर भी
चाँद पाना चाहती थी |
क्या सही है वह क्या गलत
उस तक की पहचान न थी
अपनी जिद्द को ही
सर्वोपरी मानती थी |
हर बात उसकी पूरी करना
संभव न हों पाता था
अगर कहा नहीं माना
चैन हराम होजाता था |
जब कठोर धरातल
पर कदम रखा
थी बिंदास
कुछ फिक्र न थी |
जिन्दगी इतनी भी
आसान न थी
गर्म हवा के झोंकों ने
उसे अन्दर तक हिला दिया |
उठापटक झगडे झंझट
अब रोज की बात हों गयी
तब ही वह समझ पाई
सहनशीलता क्या होती है |
जब मन पर अंकुश लगाया
बेहद बेबस ख़ुद को पाया
तभी वह जान पाई
माँ क्या कहना चाहती थी |
जिन्दगी ने रुख ऐसा बदला
पैरों के छाले भी
अब विचलित नहीं करते
ठोस धरा पर चलती है
क्यूँ की वह समझ गयी है
जीवन केवल फूलों की सेज नहीं
कई कंटक भी वहाँ होते हें |
आशा
ना ही जानना चाहती थी
वह क्या चाहती थी
थी दुनिया से दूर बहुत
अपने में खोई रहती थी |
कल क्या खोया
ओर कल क्या होगा
तनिक भी न सोचती थी
वर्त्तमान में जीती थी |
जो भी देखती थी
पाने की लालसा रखती थी
धरती पर रह कर भी
चाँद पाना चाहती थी |
क्या सही है वह क्या गलत
उस तक की पहचान न थी
अपनी जिद्द को ही
सर्वोपरी मानती थी |
हर बात उसकी पूरी करना
संभव न हों पाता था
अगर कहा नहीं माना
चैन हराम होजाता था |
जब कठोर धरातल
पर कदम रखा
थी बिंदास
कुछ फिक्र न थी |
जिन्दगी इतनी भी
आसान न थी
गर्म हवा के झोंकों ने
उसे अन्दर तक हिला दिया |
उठापटक झगडे झंझट
अब रोज की बात हों गयी
तब ही वह समझ पाई
सहनशीलता क्या होती है |
जब मन पर अंकुश लगाया
बेहद बेबस ख़ुद को पाया
तभी वह जान पाई
माँ क्या कहना चाहती थी |
जिन्दगी ने रुख ऐसा बदला
पैरों के छाले भी
अब विचलित नहीं करते
ठोस धरा पर चलती है
क्यूँ की वह समझ गयी है
जीवन केवल फूलों की सेज नहीं
कई कंटक भी वहाँ होते हें |
आशा