कुछ भी अधिक नहीं चाहा
जो मिला उसी को अपनाया
फिर भी जब मन में झांका
खुद को बहुत अकेला पाया |
सामंजस्य परिस्थितियों से
आज तक ना हो पाया
अपनों ने जब भी ठुकराया
गैरों ने अपना हाथ बढ़ाया |
तब भी सोच नहीं पाया
है कौन अपना कौन पराया
कब कोई भीतर घात करेगा
यह भी ना पहचान पाया |
जब भी गुत्थी सुलझानी चाही
कोई अपना नजर ना आया
है स्वार्थी दुनिया सारी
फिर भी स्वीकार ना कर पाया |
कई बार विचार आता है
सब एक से नहीं होते
कोई तो ऐसा होगा
जो निस्वार्थ भाव लिए होगा |
अब तक तलाश जारी है
जाने कब कौन
किस रूप में आए
पूर्ण रूप से अपनाए |
जो मिला उसी को अपनाया
फिर भी जब मन में झांका
खुद को बहुत अकेला पाया |
सामंजस्य परिस्थितियों से
आज तक ना हो पाया
अपनों ने जब भी ठुकराया
गैरों ने अपना हाथ बढ़ाया |
तब भी सोच नहीं पाया
है कौन अपना कौन पराया
कब कोई भीतर घात करेगा
यह भी ना पहचान पाया |
जब भी गुत्थी सुलझानी चाही
कोई अपना नजर ना आया
है स्वार्थी दुनिया सारी
फिर भी स्वीकार ना कर पाया |
कई बार विचार आता है
सब एक से नहीं होते
कोई तो ऐसा होगा
जो निस्वार्थ भाव लिए होगा |
अब तक तलाश जारी है
जाने कब कौन
किस रूप में आए
पूर्ण रूप से अपनाए |