जल में तैरतीं इठलातीं
रंग बिरंगी मछलियां
भोजन की तलाश में
यहाँ वहाँ जाती मछलियां |
तितलियाँ उड़ातीं फिरतीं
एक फूल से दूसरे पर
मकरंद का रस लेतीं
जब तक जीतीं
आकण्ठ डूबी रहतीं
मस्ती में |
पर मनुष्य ऐसा कहाँ
वह तो है उपज
विकसित मस्तिष्क की |
सोचता है कुछ
करता कुछ और है
कभी खाली नहीं रहता
खोजता रहता
नायाब तरीके धनोपार्जन के |
वे हों चाहे नैतिक या अनैतिक
बस वह तो यही जानता है
धन तो धन ही है
चाहे जैसे भी आए |
मानता हैजीवन का आधार उसे |
आकण्ठ डूब कर उसमें
अपने आप को
कृतकृत्य मानता है |
समाज भी ऐसे ही लोगों को
देता है मान प्रतिष्ठा
जो धनिक वर्ग से आते हैं
अपने को सर्वोपरी मानते हैं |
अंत समय आते ही
याद आता है ईश्वर
जिसे पहले कभी पूजा ही नहीं
यदि पूजा भी तो रस्म निभाई |
जो प्रेम दूसरों से किया
था केवल दस्तूर दुनिया का
अब कुछ भी न रहा |
मन में अवसाद लिए
दुनिया छोड़ चला
वह मछली सा या तितली सा
कभी ना बन पाया |
आशा
रंग बिरंगी मछलियां
भोजन की तलाश में
यहाँ वहाँ जाती मछलियां |
तितलियाँ उड़ातीं फिरतीं
एक फूल से दूसरे पर
मकरंद का रस लेतीं
जब तक जीतीं
आकण्ठ डूबी रहतीं
मस्ती में |
पर मनुष्य ऐसा कहाँ
वह तो है उपज
विकसित मस्तिष्क की |
सोचता है कुछ
करता कुछ और है
कभी खाली नहीं रहता
खोजता रहता
नायाब तरीके धनोपार्जन के |
वे हों चाहे नैतिक या अनैतिक
बस वह तो यही जानता है
धन तो धन ही है
चाहे जैसे भी आए |
मानता हैजीवन का आधार उसे |
आकण्ठ डूब कर उसमें
अपने आप को
कृतकृत्य मानता है |
समाज भी ऐसे ही लोगों को
देता है मान प्रतिष्ठा
जो धनिक वर्ग से आते हैं
अपने को सर्वोपरी मानते हैं |
अंत समय आते ही
याद आता है ईश्वर
जिसे पहले कभी पूजा ही नहीं
यदि पूजा भी तो रस्म निभाई |
जो प्रेम दूसरों से किया
था केवल दस्तूर दुनिया का
अब कुछ भी न रहा |
मन में अवसाद लिए
दुनिया छोड़ चला
वह मछली सा या तितली सा
कभी ना बन पाया |
आशा