
माँ का हो आशीष शीश पर
छत्रछाया हो उसकी
उसे यहाँ फिर हो भय कैसा
तू करती रक्षा जिसकी |
तेरी जोत जलाने आई
कहना पाई तुझ से
तेरी महिमा जान न पाई
हुआ मगन मन कब से |
आजा माँ मेरे अंगना में
हूँ बहुत अकिंचन सी
देना आशीष मुझे ऐसा
बस हो जाऊं तुलसी
आशा |
छत्रछाया हो उसकी
उसे यहाँ फिर हो भय कैसा
तू करती रक्षा जिसकी |
तेरी जोत जलाने आई
कहना पाई तुझ से
तेरी महिमा जान न पाई
हुआ मगन मन कब से |
आजा माँ मेरे अंगना में
हूँ बहुत अकिंचन सी
देना आशीष मुझे ऐसा
बस हो जाऊं तुलसी
आशा |