बांह फैलाए दूर तलक
बर्फ से ढकीं हिमगिर चोटियाँ
लगती दमकने कंचन सी
पा आदित्य की रश्मियाँ |
दुर्गम मार्ग कच्चा पक्का
चल पाना तक सुगम नहीं
लगा ऊपर हाथ बढाते ही
होगा अर्श मुठ्ठी में |
जगह जगह जल रिसाव
ऊपर से नीचे बहना उसका
ले कर झरने का रूप अनूप
कल कल मधुर ध्वनि करता |
जलधाराएं मिलती जातीं
झील कई बनती जातीं
नयनाभिराम छबी उनकी
मन वहीँ बांधे रखतीं |
कभी सर्द हवा का झोंका
झझकोरता सिहरन भरता
हल्की सी धुप दिखाई देती
फिर बादलों मैं मुंह छिपाती |
एकाएक धुंध हो गयी
दोपहर में ही शाम हो गयी
अब न दीखता जल रिसाव
ना ही झील ना घाटियाँ |
बस थे बादल ही बादल
काले बादल भूरे बादल
खाई से ऊपर आते बादल
आपस में रेस लगाते बादल
मन में जगा एक अहसास
होते हैं पैर बादलों के भी
आगे बढ़ने के लिए
आपस में होड़ रखते हैं
आगे निकलने के लिए |
आशा
बर्फ से ढकीं हिमगिर चोटियाँ
लगती दमकने कंचन सी
पा आदित्य की रश्मियाँ |
दुर्गम मार्ग कच्चा पक्का
चल पाना तक सुगम नहीं
लगा ऊपर हाथ बढाते ही
होगा अर्श मुठ्ठी में |
जगह जगह जल रिसाव
ऊपर से नीचे बहना उसका
ले कर झरने का रूप अनूप
कल कल मधुर ध्वनि करता |
जलधाराएं मिलती जातीं
झील कई बनती जातीं
नयनाभिराम छबी उनकी
मन वहीँ बांधे रखतीं |
कभी सर्द हवा का झोंका
झझकोरता सिहरन भरता
हल्की सी धुप दिखाई देती
फिर बादलों मैं मुंह छिपाती |
एकाएक धुंध हो गयी
दोपहर में ही शाम हो गयी
अब न दीखता जल रिसाव
ना ही झील ना घाटियाँ |
बस थे बादल ही बादल
काले बादल भूरे बादल
खाई से ऊपर आते बादल
आपस में रेस लगाते बादल
मन में जगा एक अहसास
होते हैं पैर बादलों के भी
आगे बढ़ने के लिए
आपस में होड़ रखते हैं
आगे निकलने के लिए |
आशा