यूँही नहीं जीता
पीता हूँ ग़म भुलाने के लिए
जीता हूँ पीने के लिए
दर्देदिल छिपाने के लिए |
मदहोश
कदम आगे जाते
वहीँ
जा कर रुक जाते
होते
अधीर अतृप्त अधर
और
अधिक की चाहत रखते
ग़म भुलाने की लालसा
यहाँ तक खींच लाई
ना हाला हलक तर कर पाई
ना हाला हलक तर कर पाई
ना ही साकी बाला आई |
लहराता
झूमता झामता
नितांत
अकेला
निढाल
सा गिरता सम्हलता
पर
सहारा किसी का न पाता |
फबतियां कानों में
पडतीं
आदतन है शराबी
घर फूँक वहीँ आता
जहाँ अपने जैसे पाता
|
सच
कोई नहीं जानता
हालेदिल
नहीं पहचानता
छींटाकशी शूल सी चुभती
फिर भी उसी ओर जाता
फिर भी उसी ओर जाता
आशा