मैंने चुना है एक मकसद
वहां तक पहुँचने का
एकता के सूत्र में
सब को बांधने का
नहीं जानती कहाँ तक
सफलता पाऊँगी
कितनी सीड़ी चढ़ पाऊँगी |
यह तो जानती हूँ
यह तो जानती हूँ
करना होगा
कठिन प्रयास
पूर्ण लगन से
तन मन धन से
पर नहीं जानती
कितना बाँध पाऊँगी गैरों को
अपनेपन के बंधन में |
समझ रही हूँ
गैरों से व्यवहार अपनों सा
इतना सहज भी नहीं
कई बाधाएं
पथ बाधित करेंगी
यदि उनसे भयभीत हुई
मन कुंठित हुआ
तब मकसद
पूर्ण न हो पाएगा |
पर इतना जानती हूँ
कदम पीछे हटाना
मैंने नहीं सीखा
पथ से भटक जाना
मुझे नहीं आता |
हूँ इसीलिए आशान्वित
जो मार्ग चुना है मैंने
अडिग उसी पर रहूँगी
एकता का बधन
इतना सुदृढ़ होगा
कभी टूट न पाएगा |
आशा