कच्ची सड़क के दोनो ओर गुलमोहर के वृक्ष लगे 
 
देते छाँव दोपहर में करते बचाव धूप से 
 धरा
से  हो कर  परावर्तित आदित्य की  किरणे 
मिल कर आतीं हरे भरे पत्तों से 
खिले फूल लाल लाल देख 
ज्यों ही गर्मीं बढ़ती जाती 
चिचिलाती धुप में नव पल्लव मखमली अहसास देते 
चमकते ऐसे जैसे हों  तेल में तरबतर  
फूलों से लदी डालियाँ  झूल कर अटखेलियाँ करतीं 
मंद मंद चलती पवन से 
वृक्ष की छाया में लिया है आश्रय बहुत से
जीवों ने 
एक पथिक क्या चाहे थोड़ी सी छाँव थकान दूर
करने के लिए 
वह आता सिमट जाता छाँव के  एक कौने में 
तभी  दो बच्चे आए
 लाए  डाल पर से छुपी तलवारें 
  कहा
आओ चलो शक्ति का प्रदर्शन करो 
पेड़ से तोडी गई कत्थई तलवारें चलने लगी पूरे  जोश  से 
दाव पर दाव लगाए सफल होने के लिए 
पर दोनो बराबरी पर रहे हार उन्हें स्वीकार
नहीं 
तभी फूलों की वर्षा हुई  वायु  के बढ़ते  बेग से 
बहुत हुई प्रसन्नता देख पुष्पों की वर्षा  
कहा यह है तुम्हारा पुरस्कार ईश्वर की और से
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                                                आशा