अब तो सोच की
इन्तहा आम हो गई
हम क्या थे ?क्या चाहते थे ?
क्या हो गए ?
किसने बाध्य किया
राज फाश करने को
अब तो बात फैल गई
चर्चा सरेआम हो गई
गैरत ने मजबूर किया
पलटवार ना करने को
बात ख़ास थी पर
अब आम हो गई
मन कुंठित हुआ
निगाहें झुक गईं
कसम खाई मौन रहने की
किसी बात पर
बहस न करने की
यदि कुछ जानने की
इच्छा भी हुई
मन पर नियंत्रण रखने की
आदत सी हो गई
पहचान अपनी खुद हो गई|
आशा