22 फ़रवरी, 2021
स्वप्नों की चौपाल
21 फ़रवरी, 2021
चंचल चपला हिरणी जैसी
कभी चंचल चपल हिरनी जैसी
दौड़ती फिरती थी बागानों में
अब उसे देख मन में ईर्षा होती
क्यूँ न मैं ऐसी रही अब |
इतनी जीवन्त न हो पाई
बिस्तर पर पड़े पड़े मैंने
लम्बा समय काट दिया है
अब घबराहट होने लगती है |
और कितना समय रहा शेष
कैसे जान पाऊँ कोई मुझे बताए
क्या बीता समय लौट कर आएगा
मुझमें साहस का संचार होगा |
फिर से कब आत्म विश्वास जागेगा
पर शायद यह मेरी कल्पना है
कभी सच न हो पाएगी
जिन्दगी यूं ही गुजर जाएगी |
आशा
20 फ़रवरी, 2021
खोज में हूँ एकांत की
खोज में हूँ एकांत की
पर यह सुख मेरे नसीब में कहाँ
जंगल की राह जब भी पकड़ी
प्रकृति ने खोले दरवाजे सभी चराचरों के लिए |
इतना कोलाहल वहां दिखा मन घबराया
वहां से जा बैठा कलकल करते झरने पर
कुछ समय आनंद आया
झरने के कलकल की आवाज सुन |
फिर मन उचटा राह पकड़ी नदी की ओर
जा बैठा उस ऊंचे टीले पर
बहती दरिया के किनारे
सोचा यहाँ अपार शान्ति होगी |
केवल मंद आवाज लहरों की होगी
लिखना चाहा कापी खोली
पर अजब सी बेचैनी हुई
अनचाही बातों ने दिमाग का पीछा न छोड़ा था अब तक
बहुत हताशा हुई जब पुनह विचार किया |
एक वही कारण समझ में आया
मन की शान्ति है आवश्यक लिखने पढ़ने के लिए
घर हो या बाहर वह कहीं भी मिल सकती है
यदि हो नियंत्रण मन पर |
आशा
19 फ़रवरी, 2021
कौनसा मार्ग चुनूं
धर्म कर्म की अति करदी
पर हर बार कमी रह जाती
द्वार तुम्हारे जब भी आती
वे खुल न पाते मेरे लिए |
है यह कैसा न्याय प्रभू
सभी ने एक से यत्न किये
किसी के लिए पट खुले
हम अधर में ही रहे |
दिल से दान किया था
धर्म में भी पीछे न रहे
सच्चे मन से अरदास की
कमी कहाँ रही न जान सकी |
कुछ तो इशारा किया होता
अधर में लटकी मेरी नैया
ढूंढे न मिला खिवैया
कैसे विश्वास करू किसी पर
जब तुमने ही राह न दिखाई
मुझ पर करुणा ना दर्शाई |
किसी ने कहा बिन गुरु मोक्ष न होय
सोचा किसी गुरू कोही अपना लूं
तभी मेरी नैया पार लग पाएगी
भव सागर से मुक्ति मिले पाएगी
पर ऐसा गुरू कहाँ खोजूं
जो सच्चे मन से शिक्षा दें
भवसागर के प्रपंचों से दूर कर
मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करें |
आशा
18 फ़रवरी, 2021
सीमा सुरक्षा है प्राथमिकता
सागर पार से आया हूँ
तुम्हारा प्यार पाने
की चाहत में
यही एक अरमान रह गया शेष
तुम्हें अपनाने का वादा किया था
वह भूला नहीं हूँ उसे
ही निभाने आया हूँ |
समय न मिल पाया था अब तक
सीमा की चौकसी थी प्राथमिकता पर
कैसे तुम्हें यह समझाऊँ ?
मुझे अवकाश न मिल
पाया था
देश की सीमा पर तैनाती थी
उसकी निगह्बानी पहले
जरूरी थी|
अब जा कर अवकाश मिला है
अब मुझे अन्य चिंता
नहीं है
उसे ही पूरा करने आया हूँ |
आशा
17 फ़रवरी, 2021
अलबिदा सर्दी का मौसम
इस बार बहुत कष्ट दिया तुमने
बिना गर्म कपड़ों के फुटपाथ पर
रात कैसे गुजरती होगी वहां रहने वालों से पूंछो |
एक दिन मुझसे ही भूल हुई
पूंछा तुम कैसे ऐसी सर्द रात में गुजारा करती हो
उसके दोनो नयन भर आए
बस एक दिन यहाँ खड़े हो कर देखिये |
जान जाएंगी है कैसी हमारी जिन्दगी
दिन भर महनत करते हैं
फिर अपने घर को लौटते हैं
यह फुटपाथ ही है घरोंदा हमारा |
यदि पैसे हुए रूखा सूखा खा कर
यहीं चूल्हा जला कर खाना बनाते है
यदि नहीं मिला कुछ तब पानी पी सो जाते हैं
बच्चों की तरसती निगाहें देखी नहीं जातीं |
फटे टूटे कपडे देते हैं सहारा उन्हें
सर्दी से बचाव के लिए
भोर होते ही किसी पेड़ पर
रात की रही शेष रोटी खा कर
अपना सामान समेट कर टांग देते हैं |
बच्चों का क्या वे सड़क पर खेलते
खाते ही पल जाते हैं
कभी शाला का मुंह देखते ही नहीं
यदि दस्तखत करने हों अंगूठा लगाते हैं |
पर मेरे बेटे को यह अच्छ नहीं लगा
मम्मा इसे भी किताबें दिला दो
मैं इसे पढ़ाऊंगा लिखना इसे सिखाऊँगा
यह भी शाला जाएगा मेरे साथ खेलेगा |
यह तो है एक कहानी
न जाने ऐसे कितने लोग होंगें
उनकी व्यथा देख मन उदास हो गया
जीवन सरल नहीं होता यह आभास हो गया |
आशा
16 फ़रवरी, 2021
आया वसंत आई बहार
आया वसंत आई बहार
वृक्षों ने किया नवश्रृंगार हरे भरे पत्तों से
वे खेले वासंती पवन के झोंकों से
हुई धरा सराबोर रंग वासंती में
खेतों में पीले सफेद पुष्प खिले
हरियाली छाई धरणी पर
वृक्षों ने ली है अंगडाई उन पर छाई तरुणाई|
बसंती रंग के परिधानों से सजे बालक वृन्द
गृहणी ने भी पहने पीत वसन
की मां सरस्वती के पूजन की तैयारी |
कहीं बच्चों का पट्टी पूजन हुआ
किये वादे विध्या की देवी के समक्ष
पढ़ने में कमी न करने के लिए |
कई युगल बंधे विवाह बंधन में
कच्चे धागे से बंधे सदा के लिए
जन्म जन्म का साथ निभाने को
वचन बद्ध हुए साथ जीने मरने के लिए |
यह दिन है ही ऐसा प्रसन्नता से भरा
शंकर से रति ने पति काम देव के लिए
पूजन अर्चन कर प्रार्थना की थी
तभी से नाम कामदेव का हुआ अनंग |