23 फ़रवरी, 2021

कान्हां तुम न आए


                                                             कान्हां तुम  न आए मिलने

जमुना किनारे

वट वृक्ष के नीचे

 रोज राह देखी तुम्हारी

 पर तुम न आए |

इतने कठोर कैसे हुए

यह रंग बदला कैसे

तुमने वादा किया था

आने का यहीं पर  |

आए  पर छिपे रहे  करील की

 झाड़ियों के पीछे

है यह कैसा न्याय प्रभू

 तुमने बिसराया मुझे | 

कहाँ तो कहा  कहते थे

जी न पाओगे मुझसे बिछुड़ कर

पर मैंने तुम्हें पहचान लिया है

तुम रह नहीं सकते

बांस की मुरली के  बिना  |

तुमने मुझे भरमाया

अपनी शक्ति मुझे बताया

पर यही गलत फहमी रही

मैंने तुम्हारी बात को सच माना |

राह देखी दिन रात तुम्हारी

पर तुम न आए

तुम तो मथुरा के हो गए

फिर लौट न पाए दोबारा |

मेरा विरही मन

 तुम्हारी राह देखता रहा

नयन धुधले हुए हैं 

वाट जोहते जोहते |

 श्याम तुम कब आओगे

मेरी मनोकामना पूर्ण करोगे

तुम भूले हो अपना वादा

पर मैं नहीं भूली अब तक  |

आशा

 

22 फ़रवरी, 2021

स्वप्नों की चौपाल

स्वप्नों की चौपाल सजी है
कोई व्यवधान न आने दूंगी
बंद आँखों पर चश्मा चढ़ा है
चित्र धूमिल न होने दूंगी |
एक ही अरमां रहा शेष अब
जागते हुए भी उसी में खोई रहूं
मेरा है विश्वास अडिग यह
भावनाओं पर नियंत्रण रखूँ |
केवल कल्पना ही कल्पना हो
और न हो कोई ठोस कार्य
क्या यह गलत नहीं है ?
दिन रात सपनों में खोए रहना
जीवन ऐसे नहीं चलता है |
मनुज को अकर्मण्य बना देता है
इसी लिए ठोस धरातल पर
सजाऊँगी चौपाल स्वप्नों की
वहीं उन्हें साकार करूंगी |
आशा

21 फ़रवरी, 2021

चंचल चपला हिरणी जैसी

 


कभी चंचल चपल हिरनी जैसी

दौड़ती फिरती थी  बागानों में

अब उसे  देख  मन में  ईर्षा होती

क्यूँ न मैं ऐसी रही अब |

इतनी जीवन्त न हो पाई

बिस्तर पर पड़े पड़े मैंने

लम्बा  समय काट दिया है 

अब घबराहट होने लगती है |

और कितना समय रहा शेष

कैसे जान पाऊँ कोई मुझे बताए

क्या बीता समय लौट कर आएगा

मुझमें साहस का संचार होगा |

फिर से कब आत्म विश्वास जागेगा

पर शायद यह मेरी कल्पना है

कभी सच न हो पाएगी

जिन्दगी यूं ही गुजर जाएगी |

आशा  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

20 फ़रवरी, 2021

खोज में हूँ एकांत की

 

                                      खोज में हूँ एकांत की 

 पर यह सुख मेरे नसीब में कहाँ 

जंगल की  राह जब भी  पकड़ी

प्रकृति  ने खोले  दरवाजे सभी चराचरों  के लिए |

इतना कोलाहल वहां दिखा मन घबराया

 वहां से जा बैठा कलकल करते झरने पर

कुछ समय आनंद आया

 झरने के कलकल की आवाज सुन | 

 फिर मन उचटा राह पकड़ी नदी की ओर

जा बैठा उस ऊंचे टीले पर

 बहती दरिया के किनारे 

सोचा  यहाँ अपार शान्ति होगी |

केवल मंद आवाज लहरों  की होगी 

 लिखना चाहा कापी खोली

 पर अजब सी बेचैनी हुई 

अनचाही  बातों ने दिमाग का पीछा न छोड़ा था अब तक  

बहुत हताशा हुई जब पुनह विचार किया |

एक वही कारण समझ में आया

मन की शान्ति है आवश्यक लिखने पढ़ने के लिए

 घर हो या बाहर वह कहीं भी मिल सकती है

यदि हो नियंत्रण  मन पर |

आशा

19 फ़रवरी, 2021

कौनसा मार्ग चुनूं


 

धर्म कर्म की अति करदी

पर  हर बार कमी रह  जाती

द्वार तुम्हारे जब भी आती

वे  खुल न पाते मेरे लिए |

है यह कैसा न्याय प्रभू

सभी ने एक से यत्न किये

किसी के लिए पट खुले

हम अधर में ही रहे |

दिल से दान किया था

धर्म में भी पीछे न रहे

सच्चे मन से अरदास की

कमी कहाँ  रही  न जान सकी |

कुछ तो इशारा किया होता

अधर में लटकी  मेरी नैया

ढूंढे न मिला खिवैया

 कैसे विश्वास करू किसी पर

जब तुमने ही राह न दिखाई

 मुझ पर करुणा ना दर्शाई |

किसी ने कहा बिन गुरु मोक्ष न होय

 सोचा किसी गुरू कोही  अपना लूं

तभी मेरी  नैया पार लग पाएगी

भव सागर से मुक्ति मिले पाएगी

पर ऐसा  गुरू कहाँ खोजूं

जो सच्चे मन से शिक्षा दें

भवसागर के  प्रपंचों से दूर कर

मोक्ष का  मार्ग प्रशस्त करें |

आशा

18 फ़रवरी, 2021

सीमा सुरक्षा है प्राथमिकता

 


सागर पार  से  आया हूँ  

तुम्हारा प्यार पाने की चाहत में  

यही एक अरमान रह गया शेष

 तुम्हें अपनाने का वादा किया था  

वह भूला नहीं हूँ उसे ही निभाने आया हूँ |

 समय न मिल पाया था अब तक

 सीमा की चौकसी थी प्राथमिकता पर  

 कैसे तुम्हें यह  समझाऊँ ?

मुझे अवकाश न मिल पाया था

 देश की सीमा पर तैनाती थी   

उसकी निगह्बानी पहले  जरूरी थी|

अब जा  कर  अवकाश मिला है

अब मुझे अन्य चिंता नहीं है

 मैंने  वादा जो तुमसे किया था

 उसे ही पूरा करने आया हूँ |

आशा

17 फ़रवरी, 2021

अलबिदा सर्दी का मौसम

                                      अलबिदा मौसम सर्दी  का  अलबिदा

 इस  बार  बहुत कष्ट दिया तुमने

बिना गर्म कपड़ों के फुटपाथ  पर

रात कैसे गुजरती होगी  वहां रहने वालों से पूंछो |

एक दिन मुझसे ही भूल हुई

पूंछा तुम कैसे  ऐसी  सर्द  रात में  गुजारा  करती हो

उसके दोनो नयन भर आए

बस एक दिन यहाँ खड़े हो कर देखिये |

जान जाएंगी है कैसी हमारी जिन्दगी

दिन भर महनत करते हैं

फिर अपने घर को लौटते हैं

यह फुटपाथ ही है घरोंदा हमारा |

यदि पैसे हुए रूखा सूखा खा कर

यहीं चूल्हा जला कर खाना बनाते है

यदि नहीं मिला कुछ तब पानी पी सो जाते हैं

बच्चों की तरसती निगाहें देखी नहीं जातीं |

फटे टूटे कपडे देते हैं सहारा उन्हें

सर्दी से बचाव के लिए

भोर होते ही किसी पेड़ पर

 रात की रही शेष  रोटी खा कर

अपना सामान  समेट  कर टांग देते हैं |

बच्चों का क्या वे सड़क पर खेलते

खाते  ही  पल जाते हैं

कभी शाला का मुंह देखते ही नहीं

यदि दस्तखत करने हों अंगूठा लगाते हैं |

पर मेरे बेटे को यह अच्छ नहीं लगा

मम्मा इसे भी किताबें  दिला दो

मैं इसे पढ़ाऊंगा लिखना इसे सिखाऊँगा

यह भी शाला जाएगा मेरे साथ खेलेगा |

यह तो है एक कहानी

 न जाने ऐसे कितने लोग होंगें

उनकी व्यथा देख मन उदास हो गया

जीवन सरल नहीं होता यह आभास हो गया |

आशा