कान्हां तुम न आए मिलने
जमुना किनारे
वट वृक्ष के नीचे
रोज राह देखी तुम्हारी
पर तुम न आए |
इतने कठोर कैसे हुए
यह रंग बदला कैसे
तुमने वादा किया था
आने का यहीं पर |
आए पर छिपे रहे करील की
झाड़ियों के पीछे
है यह कैसा न्याय प्रभू
तुमने बिसराया मुझे |
कहाँ तो कहा कहते थे
जी न पाओगे मुझसे बिछुड़ कर
पर मैंने तुम्हें पहचान लिया है
तुम रह नहीं सकते
बांस की मुरली के बिना |
तुमने मुझे भरमाया
अपनी शक्ति मुझे बताया
पर यही गलत फहमी रही
मैंने तुम्हारी बात को सच माना |
राह देखी दिन रात तुम्हारी
पर तुम न आए
तुम तो मथुरा के हो गए
फिर लौट न पाए दोबारा |
मेरा विरही मन
तुम्हारी राह देखता रहा
नयन धुधले हुए हैं
वाट जोहते जोहते |
श्याम तुम कब आओगे
मेरी मनोकामना पूर्ण करोगे
तुम भूले हो अपना वादा
पर मैं नहीं भूली अब तक |
आशा