चल कदमी करता
सोचता रहा
स्वयं के
जीवन की
कहानी पर
आज खिला सुमन
आया यौवन
कभी कली रहा था
पत्तों से ढकी
डालियों के कक्ष से
झाँक रहा था
कली से झांकती
खिली पंखुड़ी
लाल सुर्ख गुलाब
एकल नहीं
कंटक रहते पास
रक्षा के लिए
बचाते अनजानों से
तितलियों की
भाती हैउसे
प्यार प्रेम उनका
स्वीकार उसे
वायु बेग सहना
मन से स्वीकार है
विरोध नहीं
करने की क्षमता
अब न रही
यौवन की समाप्ति
बढ़ती उम्र
जीवन हुआ सफल
स्वयम अर्पण
करने का निर्णय
आज का पुष्प
कभी हारूंगा नहीं |
आशा