15 अप्रैल, 2021

मौसम गर्मीं का


 

जाने कितनी

 उपजी है उमस  

धरती पर

सहन नहीं होती

जाने क्या होगा

 बेइन्तहा है गर्मीं 

अभी  हुई है  संध्या

 रात   दूर है  अभी

कैसे कटेगी

 कहर ढाती गर्मीं 

जाने क्या होगा

 हाल इस गर्मीं में  

-आँखों में कटी  

 सारी रात गुज़री

भोर  न हुई 

दिन  की राह देखी

 जाने कब हो

मौसम खुशनुमा

 घुटती जान 

अभी से यह  गर्मीं 

लू के  थपेड़े पड़े

हुए दुश्मन

है यह  ट्रेलर  तो  

आगे जाने क्या होगा

बैरी मौसम 

अब आम लोगों  का

बचेंगे कैसे   

ग्लोबल वार्मिंग से   |

आशा

14 अप्रैल, 2021

एक रस जीवन हुआ है

 



तारों की छाँव में तारे गिन गिन

कब रात बीती मुझे याद नहीं |

कब भोर हुई मुर्गे ने दी  बाग़ 

 पक्षियों का कोलाहल बढ़ा 

यह तक मुझे मालूम नहीं |

 रात तारे गिन  थकी  भोर हुई तब पलक झपकी

नींद ने थपकी दी कब सो गई पता नहीं |

प्रातःकाल  की रश्मियाँ खेलती  हरियाली संग 

 कब  लौटीं अम्बर में यह  भी याद नहीं |

धूप चढी आँखें खुलीं फिर काम की धुन लगी

 व्यस्त हुई इतनी  कब शाम हुई पता  नहीं |

आदित्य चला अस्ताचल को लाल सुनहरी थाली सा 

कभी छिपा वृक्षों के पीछे फिर हुआ उजागर 

 आसमा हुआ रक्तिम लाल सुनहरा |

रात्रि  फिर से आई साथ चाँद तारों को भी  लाई

मैंने भी सब काम कर शय्या की ओर दौड़ लगाई |

यही दिन रात की है मेरे जीवन की  कहानी

कोई परिवर्तन नहीं इसमें इतना भर है याद मुझे |

जीवन एक रस हुआ है 

 चाहती हूँ सुकून का थामना पल्ला 

कुछ नया करने की लालसा उपजी है मन में |

आशा

13 अप्रैल, 2021

पर्यावरण

 


 प्रकृति नटी करती जब  नर्तन  

मन रमता जाता  उसमें

नाज नखरे उसके सह न पाते

है राज  क्या इस नृत्य का | 

कभी नरम और कभी गरम

कैसा  है  मिजाज उसका

कोई मिसाल नहीं 

बेमिसाल है निखरा  रूप उसका  |

जब सागर  का  जल  लेता उफान

लगता भय देख कर रौद्र रूप उसका  

उछाल लहरों का देखा नहीं जाता

बर्बादी का मंजर सहा नहीं जाता| 

जब आपदा आती है अनजाने में  

चुपके से बिना बताए

अस्त व्यस्त होता जन जीवन   

 डगमगाने लगता पर्यावरण संतुलन  |

होता बहुत कठिन उसका संरक्षण

पर मानव ही है कारण  इसका  

यदि ध्यान दिया जाए सतर्क रहा जाए

सीमित संसाधन का सही दोहन हो  |  

प्राकृतिक संतुलन पर प्रहार न हो 

ऐसी आपदा बार बार न आए  

जीवन  सुखद हो जाए 

जन जीवन सरल सहज हो जाए  |

आशा 

12 अप्रैल, 2021

स्वर साधना




-

मन वीणा के तारों  में

स्वर साधा है आत्मा ने

शब्द चुने अंतर घट से

रचनाओं  को सवारा है |

मीठी मधुर  तान जब

सुन  पाता परमात्मा   

खुद पर बड़ा  गर्व होता

कहता है वह बहुत भाग्यशाली |

कुछ ही लोग  होते हैं ऐसे

जिन्हें सुनाई दे जाती  

वीणा की वह मधुरिम  तान  

वे नजदीक ईश्वर के होते

उनकी हर बात की पहुँच

वहां तक होती सरलरेखा सी सीधी

कोई व्यवधान न आते मध्य में   

जब उसे ठीक से सुना जाता

प्रति उत्तर भी वे समय पर पाते

 प्रभु का आशीष पा कर

 स्वयं  को धन्य समझते

जब मन वीणा की चर्चा होती

 आत्मिक सुख का अनुभव करते

 हर चर्चा में बढचढ कर भाग लेते

विचार विमर्श में  अग्रणीय  रहते  

और फूले नहीं समाते |

आशा 

10 अप्रैल, 2021

हाइकु


 

१-सतही रिश्ते  

कभी साथ न देंते 

काम न आते 

२-जाने दो बातें

 पुरानी हो गई है 

क्या है लाभ 

३-जी  दुखे जब

भूल जाओ प्रसंग

ना दोहराओ

४- किसने कहा

हर बात तुमसे 

है संबंधित

५-आज का दिन

हुआ बहुत भारी

फैला कोरोना

६- नियम सारे

रख किनारे पर

डूबने चले

७-रिश्ते ही रिश्ते 

असली न  सतही

मुंह बोलते  

आशा

09 अप्रैल, 2021

राज

 



दिल नहीं चाहता

गैरों से संबाद करू

जब भी ऐसे अवसर आते  

वे दुःख ही देते

कभी सही सलाह नहीं देते |

अपने तो अपने होते

मतलबी नहीं

जो मतलब की बातें करते

उन्हें अपना समझने की भूल

अक्सर हो जाती

 बचने के लिए इससे

अपनी कोई बात

जब वे बाँट नहीं सकते

सोचो हैं कितने गहरे पानी में

उनकी पहचान तभी

हो पाएगी   

तभी असली राज

 खुल पाएगा  |

आशा

 

1

 

 

 

06 अप्रैल, 2021

अधिकार कर्तव्य


                                                    छिड़ी बहस अधिकारों में कर्तव्यों में 

प्राथमिकता  दौनों में से किसे 

पर सजग अपने  अधिकारों के प्रति 

 मन सचेत है अधिकार  जानता  

दूरी है  कर्तव्यों से ऐसा क्यूँ  ?

कभी विचार  नहीं किया है  

  ना  हीं  जानना चाहा    

 प्राथमिकता  दी  निजी स्वार्थ को 

  चाहते केवल  अधिकार हैं 

कर्तव्य जब भी करना हो 

पीछे पाँव हट जाते 

 अधिकारों  की  पहले मांग 

है कैसा  न्याय   ?

दोनो जरूरी होते हैं 

कर्तव्य करो फिर अधिकार चाहो 

 आत्म मंथन जब कर  पाएंगे 

तभी जान पएंगे

 न्याय संगत   क्या है |

आशा