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नींद भरी अखियों से देखा
हरी भरी धरती को रंग बदलते
मोर नाचता देखा पंख फैला
झांकी सजती बहुरंगी पंखों से |
समा होता बहुत रंगीन
जब कलकल निनाद करता निर्झर
ऊपर से नीचे गिरता झरना
नन्हीं जल की बूंदे बिखेरता |
धरा झूमती फुहारों से होती तरबतर
सध्यस्नाना युवती की तरह
काकुल चूमती जिसका मुखमंडल
स्याह बादल घिर घिर आते
आँखों का काजल बन जाते |
डाली पर बैठे पक्षी करते किलोल
व्योम में उड़ते पक्षी हो स्वतंत्र
चुहल बाजी करते उड़ते ऊपर नीचे
स्वस्थ स्पर्धा है उनका शगल |
बागों में रंगबिरंगे पुष्प भी पीछे न हटते
मंद हवा के झोंको के संग झूमते
तितली भ्रमर भी साथ देते उनका
भ्रमर गीत गाते मधुर स्वर में |
सूर्य किरणे अपनी बाहें फैलाए आतीं
धरती को लेना चाहतीं अपने आगोश में
उनकी कुनकुनी धूप जब पड़ती वृक्षों पर
ओस की बूंदे ले लेती विदा फूलों से |
आशा