कितनी बार कहा तुमसे
बार बार समझाया भी
किसी से मीठा बोलने
में
है क्या कष्ट तुम्हें |
तुम ने तो कसम खाई है
कहना नहीं मानने की
अपने मन की करने की
फिर चाहे जो परिणाम हो |
तुम्हारी यही आदत
तुम्हें
ठीक से जीने नहीं
देती
जाने कितने शत्रु
पैदा हो जाते हैं
तुम्हारे सुख से
जलने लगते हैं |
यही विचार लिए यदि हो मन में
तब कैसे जीवन में
होगे सफल
हर व्यक्ति तुम्हें
ताने देगा
न खुद जियेगा ना
तुम्हें जीने देगा |
जब दिल में क्लेश पनपेगा
आसपास का वातावरण
दूषित करेगा
ना कभी हंस बोल पाओगे
ना ही सुख से रह पाओगे |
तब हो जाएगा जीना
दूभर
खो जाएगा सुकून मन
का
धरती पर
भार होकर
रहने से क्या लाभ होगा
|
कभी कहना मान कर देखो
अंतर समझ में आ
जाएगा
तुम चाहते हो क्या सब
से
यह भी स्पष्ट हो
जाएगा |
मधुर भाषण में है बहुत शक्ति
जिसने उसे अपनाया
सबको अपने करीब पाया
आपस में भाईचारा बढ़ते ही
मन का सुख भरपूर
पाया |
आशा