स्वप्नों में श्रंगार किया किसी ने
चारो ओर प्रसन्नता छाई
न जाने कौन से आयोजन का
शुभारम्भ हुआ है आज के आलम में |
पर स्वप्न अधूरा ही रह गया
जब नींद से चौंक कर जागी
यह तक कल्पना न कर पाई
यह स्वप्न था या यथार्थ |
नींद कैसे खुली याद नहीं
मदहोशी का आलम
सर चढ़ कर बोला
मैं गाती रही गुनगुनाती रही |
बड़ी देर तक उसी स्वप्न में खोई रही
स्वप्न यदि पूरा होता
उसका अंत क्या होता ?
यही सोचती रही
जब किसी निष्कर्ष तक
पहुँचती सोचती
क्या यही सही विकल्प होता |
यदि स्वप्न पूरा हो जाता
अटकलें न लगानी पड़तीं
कभी बचपने जैसा लगता
कभी कोई संकेत
छिपा होता स्वप्न में |
है यह दिवा स्वप्न
या सपना रात का
या केवल कोरी कल्पना
बड़ी गंभीरता से विचार किया
पर निष्कर्ष न निकल पाया |
अधूरे स्वप्न ने मुझे उलझाया
अनगिनत विचार मन में आए
यह कोई संकेत तो नहीं किसी
आने वाली भली बुरी घटना का |
आने वाली भली बुरी धटना का |