03 जुलाई, 2021

कहने सुनने में क्या रखा है


 

कहने सुनने में क्या रखा है

 अप्रिय वचन दिल को लगते शूल से

 कहने वाले की सोच होगी कम इतनी

 कभी सोचा नहीं था |

 प्यार से बोले जाते दो  बोल

मन को बढ़ावा देते 

 सुनने वालों के दिल जीत लेते

यूँ तो कोई बात अधिक समय 

मस्तिष्क में नहीं रहती

पर व्यर्थ की हुज्जत दिल को जला देती |

जब भी बोलें  मीठे बोल

 ही  मुंह से निकलें 

यही व्यवहार से अर्जित यश 

अपने साथ जाएगा

जब भी इस जग से विदा लेंगे

 याद किये जाएंगे

 कोई कहेगा तो सही

 बोल तुम्हारे  बहुत मीठे थे |

कब  भवसागर  से  मुक्ति मिलेगी

  कुछ कहा नहीं जा सकता

पर आशा कि जा सकती है |

जब भी स्वतंत्र आत्मा होगी

 बोझ तले दबी नहीं होगी

एक ही पुन्य साथ जाएगा 

किसी की बद्दुआ न लेगा कोई 

मुक्ति के बाद भी तुझे याद किया जाएगा |

मुक्ति  के बाद भी तुझे याद किया जाएगा  |

02 जुलाई, 2021

आगमन सावन का


 

सावन गीत में मधुर संगीत

ऊपर से ढोलक की थाप

खूबसूरत समा का एहसास कराती

 कजरी मन को भाती |

हरियाली चहु ओर धरा पर 

सावन आगमन  की उपस्थिती 

धरती की सौंधी महक से 

 वर्षा के मौसम में  वायु के झोंकों से |

यही सुगंध हमें खींच कर ले जाती

हरेभरे बागों के बीच 

रंग बिरंगे पुष्प सजे  डालियों पर 

कोई क्यारी भी रिक्त नहीं 

 है कमाल माली की मेहनत का |

उसका रिश्ता हैवृक्षों से 

 पिता और पुत्र जैसा

जब कोई वृक्षों से छेड़छाड़ करता

उससे सहा न जाता

 कटु शब्दों से  उसे बरजता |

पक्षी मोर पपीहा  गाते अपनी धुन में 

 चुहल करते एक डाल से दूसरी पर जाते

रंगबिरंगी तितलियाँ उड़तीं

 भ्रमर करते गुंजन  कभी  पुष्प में छिप जाते | 

 बालाओं ने डाले झूले नीम की डाली पर

ऊंची पैंग बढ़ातीं कजरी गातीं

धानी धानी वस्त्र पहन कर

व्योम को छूना चाहतीं |

आशा 


व्योम को छूना चाहतीं |

01 जुलाई, 2021

स्वप्न क्या कहे

स्वप्नों में श्रंगार किया किसी ने  

चारो  ओर प्रसन्नता  छाई

न जाने कौन से आयोजन का   

शुभारम्भ हुआ  है  आज के आलम में |

पर स्वप्न अधूरा ही  रह गया

जब नींद से चौंक कर जागी

यह तक  कल्पना न कर पाई

यह स्वप्न था या यथार्थ |

नींद कैसे खुली याद नहीं

 मदहोशी का आलम

सर चढ़ कर बोला

मैं गाती रही गुनगुनाती रही |

बड़ी  देर तक उसी स्वप्न में खोई रही

स्वप्न यदि पूरा होता

 उसका अंत क्या होता ?

 यही सोचती रही

जब किसी निष्कर्ष तक

पहुँचती सोचती

 क्या यही सही विकल्प होता |

यदि स्वप्न पूरा हो जाता

अटकलें न लगानी पड़तीं

कभी बचपने   जैसा लगता

कभी कोई संकेत

छिपा होता स्वप्न में |

है यह दिवा स्वप्न

 या सपना रात का

 या केवल कोरी कल्पना

बड़ी गंभीरता से विचार किया

पर निष्कर्ष न निकल पाया |

 अधूरे स्वप्न ने मुझे उलझाया

अनगिनत विचार मन में आए  

 यह कोई संकेत तो नहीं किसी

आने वाली भली बुरी घटना का |

आने वाली भली बुरी धटना का  |

29 जून, 2021

काली और चांदनी रात


 











है तू रात की  चटक चांदनी

मैं   अंधेरी काली रात

सारा अम्बर  खुला है

 मेरे लिए तुम्हारे लिए |

एक बात अवश्य  अनुभव की  मैंने

तुमने याद किया हो कि नहीं

है चाँद की रौशनी

केवल  तुम्हारे लिए  न कि मेरे लिए |

कभी ईर्षा भी होती है तुमसे

 सब को है  इतना लगाव तुमसे  कैसे

तुमने कभी सोचा हो  या नहीं  

पर मुझे भय बना  रहता है |

तुम हो विशेष सब के लिए

पर मुझसे सब रहते  भयभीत  

काली रात में बाहर निकलना न चाहते

 अंधेरी  रात में बाहर की हवाखोरी से कतराते |

मुझे  ऐसा लगता है

जितना सुकून मिलता है

 प्रेमी युगलों को मेरी बांहों में आकर

वे उतनी ही दूरी तुमसे बना कर चलते |

बालवृन्द तो मुझसे ही भय खाते

चटक चांदनी में आकर झूम झूम जाते

पर क्यूँ करूं मैं तुम से तुलना 

दौनों का महत्व हैं समान दूसरों के लिए |

हम आपस में क्यूँ उलझें

ना तो मुझमें ना हीं तुझ में

जिसको हो जैसी आवश्यकता

वे वहीं दौड़ कर आते |

आशा 






आशा

28 जून, 2021

एक समाज सेवी ऐसा भी


 

कितने कागज़ काले करोगे

किसी पर कोई प्रभाव न होगा

उन्हें पढ़ कर जब तक

उसे कोई प्रलोभन न हो  |

हर शब्द बोलेगा तुम्हारे लेखों का

जब तक  कोई लालच  रहेगा

उसका वही लालच छिपा रहता 

 किसी कार्य को पूर्ण करने करवाने  में |

उसे कोई शर्म लिहाज नहीं है 

पीछे से कुछ लेनदेन में मेज के नीचे से

अब सारे  आदर्श हवा हो गए

समय के साथ उसका भी सोच बदला है |

वह हुआ एक ऐसा  उदाहरण

 कार्य कैसे किये  जाते हैं

मुठ्ठी गर्म होते ही फाइल आगे बढ़ती है

कार्य की गति द्रुत हो जाती है |

न जाने कितने लोग

 फंसे हैं इस दलदल में

कार्य संपन्न होते  ही सारा यश

खुद ही हड़प लेते हैं |

उन्हें कोई शर्म नहीं आती

ऊपर की कमाई में

उलटे  समाज में कद बढा लेते हैं

समाज सेवी कहला कर |

आशा 




धनवान समाजसेवी कहला कर |

27 जून, 2021

रौद्र सागर का हादसा


 

सागर में आईं उत्तंग लहरें

तांडव मचा रखा है सब ने

भयावह तवाही हुई है 

 सारा सामान बहा है | 

 घर द्वार सब ध्वस्त हुआ  

 उस हादसे में 

सर छुपाने  को  जगह नहीं 

 अब क्या करूँ |

सारी सुख सुविधा बहा ले गईं

रौद्र समुद्र की  लहरें 

 एक ही झटके में

अब चिंता है 

कैसे  इस का सामना करूं  |

फिर वैसी ही दशा होगी

 पहले जैसी 

जिसकी भी पहचान रही

 रसूकदार  हस्तियों से

वे उस पर महरवान हुए

 जल्दी मदद मिली उस को |

निचले तपके का आदमी 

रह गया  खाली हाथ  

बड़े प्रयत्न किये तब भी

कोई सहायता  न मिली उसको |

अब सोच रहा है  खड़ा खड़ा

आधी उम्र तो खर्च  हो गई

 पहले की  स्थिति तक पहुँचने में

 और कितनी परिक्षा लोगे  ईश्वर |

आशा

26 जून, 2021

मैं हारी तुम संग नेह लगा ?


                                                                   दिन रात तुम्हारा

  गुणगान किया 

सिर्फ तुम्हारा ही 

एकाग्र चित्त  हो 

ध्यान किया है  |

फिर भी न आए 

 क्या कमीं रहा गई 

तुम्हें मनाने में 

 बिगड़ी बनाने में |

गरमी बीत गई 

सावन आया 

तुम भूले मुझे 

मैं  न बिसरा पाई |

|तुम्हारी यह बेरुखी 

मुझे रास न आई

इतना तो इंगित करते 

कमीं कहाँ रही मेरी अरदास में |

दिन रात की   भक्ति 

अपना सारा बैभव  छोड़ा 

अब तो हार गई हूँ 

क्या कमी रही है 

मुझसे तुम्हारे  नेह में |

किस लिए ठानी है 

रार तुमने मुझसे 

मैं तो हारी

 मनुहार तुम्हारी करके |

अब तक जान न पाई 

क्या गुनाह किया मैंने 

तुम संग नेह लगा 

हूँ तुम्हारी अनुरागी |

आशा