26 अगस्त, 2021

हाइकु


 


कब कहना

कितना है कहना

सार्थक यहाँ

 

मनभावन

दृश्य देखते हुए

नेत्र न थके

 

कहाँ हो राम

कहीं नहीं विश्राम

इस जग में

 

तुम्हारे बिना

 सूनी लगी दुनिया

मैं क्या करती 

 

बंधन बांधा

है कच्चे धागों का

फिर भी पक्का

 

ना जाना वहां

जहां प्यार नहीं हो

ना हो अपना  

आशा

रचना बेसुरी


 


ना स्वर मिले न ताल  

 कैसा है  संगीत सोच हुआ बेहाल  

शब्द विन्यास भी खोखला

मन में पीड़ा का दंश चुभा |

यदि थोड़ी भी मिठास होती

जिन्दगी बड़ी खुश रंग होती

यह रचना है बेसुरी बेनूर  

 है इतनी बेरंग किसी से मेल न खाती |

जब भी  सुनी जाती

मन पर  बोझ  बढाती

 चाहत नहीं  उसे सुनने की 

ख्याल भी  नहीं आता कभी खुश होने का |

 बेकरार मन की पीड़ा  दर्शा कर 

 क्या लाभ दूसरों को दिल का नासूर दिखा   

  दिल की पीड़ा दर्शाने का

जब कोई हल न समक्ष आता |

यदि सही हल निकलता

संगीत मधुर हो जाता

 लय ताल  का बोध होता

प्यारी सी रचना जन्म लेती |

25 अगस्त, 2021

हो उदास क्यों


                                                दिखते हो उदास किस लिए 

राखी के शुभ अवसर पर

क्या राखी नहीं आई बहिन की

या ड्यूटी पर हो तैनात इस लिए |

घर परिवार सब कुछ छोड़ा

यदि माया मोह में फंसे रहे 

 कैसे न्याय कर पाओगे

 देश की सुरक्षा के प्रति   |

हो धीर वीर कर्तव्य निष्ठ

 हो सच्चे रखवाले  देश के

 गर्व से सर उन्नत हुआ है 

 तुम्हारा शौर्य देख |

रणभूमि में पाई सफलता

बहिन हुई निहाल

 प्रशंसा करते न थकती

शौर्य का पदक देख |

 है भाई बहादुर वीर

भयभीत नहीं किसी रण से

सीमा पर तैनात मुस्तैदी से

अगली पंक्ति में  मोर्चे पर|

सूर्य की प्रथम किरण के आते ही 

सैनिक का हो जाता जीवन व्यस्त    

रात्रि तक विश्राम नहीं    

नियमित जीवन जी रहा ईश्वर को नमन कर |

रक्षा बंधन  का क्या है

 राखी इस बार न बंधी  तो क्या

बाँध रक्षा सूत्र त्यौहार अगले वर्ष

 मना लेंगे सोचा बहिन ने |

 पहले कर्तव्य फिर कुछ और

 यही विचार आता है मन में  

फिर भी अंतस के किसी कौने में रहता

क्या आज भाई न आएगा |

आशा 

24 अगस्त, 2021

देखी समानता दौनों में


 जीवन है फूलों की डाली
मधुर सुगंध बिखेरती 

लहराती बल खाती      

मंद वायु  के झोंकों  संग|

 धूप  से फूल कुम्हलाते

झरने लगते  होते ही वय पूर्ण

जितने समय भी झूलते 

 आनन्द पूरा उठाते |  

उस डाली पर फूलों के  जीवन का 

उनके  योवन का

फलते फूलते प्रसन्न रहते

अपनी संतति देख कर |

 जीवन है भेट वही   

जो मिली मनुज को सृष्टि से 

हैं  संतुष्ट दोनो अपने जीवन से 

देखे सभी मौसम पूरी शिद्दत से

दौनों फूले फले जिन्दगी को न भूले 

 देखी समानता दौनों में  

 डाली पर फूल और मानव जीवन में |

आशा 
 

 

 

23 अगस्त, 2021

हाइकु


 

जल प्रपात

लगे मन मोहक

देख  दूर से

 

भीड़भाड़ में

सुकून खोजूं कैसे

मन न मिले

 

नहीं विराम

जीवन को  मिला है

अब  तक भी  

 

संध्या होगई

रात्री ने पंख फैला

किया आगाज  


सारा झमेला

 उलझा अबतक  

सुलझा  नहीं  

 

कितने पंथ

टकराए भीड़ में

अकारण ही


झगडा टंटा

है रास नहीं  आता 

शोभा न देता


 सारा  झमेला

                इतना फैला कैसे

                  मालूम नहीं `


नकारा नहीं 

बढ़ावा भी दिया है 

बड़े प्यार से 


               मन बढ़ा के 

                     उत्साहित किया है

                        सब ने उसे 

 

            बड़े प्यार से 

                  पूरे  अधिकार  से

                     समझाया है


                         आशा 

 

 

 

 


 

समय का मोल न समझी

 



काश उसे भी अवसर मिलता
खुद को सक्षम हूँ कहने का
पर वह कह न पाई
अपनी योग्यता दिखा न पाई |
यही बात उसके मन को विदीर्ण कर गई
खुद को असहाय देख मन छलनी कर गई
अपनी कमजोरी का एहसास हुआ जब
बहुत देर हो गई थी गलती सुधारने में |
यह सब जान कर न किया था
अनजाने में जो हुआ जैसा भी हुआ
मन को ठेस पहुंची दिल बिखरा
शीशे सा किरच किरच हो गया |
अब व्यर्थ सोचने से क्या लाभ
बीता कल लौट कर न आएगा
यदि उसी पर ध्यान दिया
अगला भी बिगड़ जाएगा |
आशा

22 अगस्त, 2021

यादें पुरानी


 ना आई तब याद करोगे 

मेरी राखी जब पहुंचेगी 

दुखी हो स्वीकार करोगे 

यही बातें तब याद आएंगी 

मन से न लगाना उन को  |

 सदा  समय एकसा नहीं रहता 

उससे समझोता करना होता

 अपने ही  परिवार में

 तुम  खोजना  मुझे |

बच्चों का उत्साह देख आज 

अपना बचपन याद आएगा  

वे घटनाएं जो अब तक है याद 

मन को खुशी से आबाद रखेगा |

   बातें अपने बचपन की 

राखी खरीदने जाने की

अपनी पसंद की राखी लाने की  

याद आती हैं  मुझे  |

जिद्द तुम्हारी दोनो हाथों में 

 राखी बंधवाने  की

 जब तक पूरी न होती 

रोना गाना चलता रहता |

सब से राखी उतरवा कर  

खुद ही बंधवाने  की इच्छा

कितनी बलवती रहती थी 

अभी तक भूली नहीं हूँ  | 

 है सूनी राखी तुम्हारे बिना 

अब  कभी नहीं  आओगे जानती हूँ में 

 आज  उदासी ने घेरा है

 यादे ही शेष रही अब तक  |

यही रीत दुनिया की है 

 बहुत  दूर चले गए हो  मुझ से 

कोई न लौट पाएगा अब 

हर राखी पर उदासी ही देगी साथ अब |

आशा