बहुत ही नाजुक टेडीवीअर सी
श्वेत फर की चादर ओढ़े दीखतीं |
आखों में गहराई झील सी
जिनका रंग नीला आसमान सा
मन प्रसन्न हो जाता
जी चाहता देखती रहूँ उन्हें |
उछल कर चलते दोड़ते
म्याऊं म्याऊँ करते पंजे मारते
हैं इतनी मीठी स्वर लहरी
मानो शिक्षा मिली है उन्हें जन्म से
धीरे बोलो अपने स्वर को पहले तोलो
रहती चहल पहल पूरे धर में
जैसे आई बहार हो फूलों की बगियाँ में
अगले कमरे में अपना अड्डा बना लिया है
सोफे पर आजाती हैं कूद कर
थकते ही पैर तान कर सो जाती हैं |
आशा