28 नवंबर, 2021
कलम तो कलम है
खुद कुछ कर न पाओगे
सागर सी गहराई तुम में
डूबेतो निकल न पाओगे
हर बार हिचकोले खाओगे
घबराओगे बेचैन रहोगे |
भवर में गोल गोल घूमोंगे
डुबकी लगाओगे
फिर भी बाहर न आ पाओगे |
खुद तो अशांत होगे
दूसरों को भी उलझाओगे
बाहर आकर शान बताओगे
मन की शान्ति का दिखावा करोगे |
यह दुहेरी जिन्दगी जीने का
क्या लाभ ना तो मन को शान्ति मिलेगी
न पार उतर पाओगे |
भवसागर में यूंही
भटकते रह जाओगे
कितनों के आश्रित रहोगे
खुद कुछ न कर पाओगे |
आशा
24 नवंबर, 2021
जोडियाँ ऊपर से बनकर आतीं
हम दो प्राणी हैं जुदा जुदा
कुछ भी समान नहीं हम में
एक जाता उत्तर को
दूसरा विपरीत दिशा को चल देता |
यह कैसी जोडी बनाई प्रभु तुमने
कुछ तो समानता दी होती
कभी तो हाथ मिलाते प्यार से
कैसे जीवन गुजरेगा हमारा |
एक साथ रहने के लिए
विचारों की एकता होती
या एक सी पसंद हो जाती
हर समय खीचतान न मची रहती |
कभी एकमत हो न पाते
यदि मन से कभी इच्छा होती
विरोध कैसे न करते
बहस हो नहीं पाती
यदि सामान विचार धारा होती
फिर दोष किस पर मढ़ते |
आशा
नानुकुर किस लिए
किसी भी बात पर
ना नुकुर
शोभा न देती कभी
समय देखो
दीखते उलझते
विचारों में ही
तुम हो मेरे
हम कदम नहीं
किससे कहूं
गैर तो नहीं अब
फिर भी दूरी
मुझे अपने लगे
प्यारे लगते
कुछ तो हो जरूर
मेरे न हुए
कब तक बचोगे
हुआ इससे
क्या और किसलिए
हमदम हो
सपनों में आकर
कभी देखना
कौन हमसे ज्यादा
मन को प्यारा होता
क्या है उसमें
लाडला किस लिए
ख्याल तुम्हारे
सबसे अलग हैं
प्रिय हैं मुझे
तब यह दूरी क्यों
किसके लिए |
आशा
23 नवंबर, 2021
कठिन मार्ग दौनों का
हो गुलाब का फूल
या हो पुष्प कमल का
उन तक जाने में
पहुँच मार्ग में
बड़े व्यवधान आते हैं |
दौनों तक पहुँच पाने में
हम उलझ ही जाते हैं
हैं बहुत महत्व के दौनों
उस तक पहुँचना
कष्टकर होता |
दलदल में खिलते
पुष्प कमल के
फिर भी अलग रखते
खुद को कीचड़ से |
फूल गुलाब का
भी कम नहीं किसी से
अपने को बचा कर रखता
घिरा रहता कंटकों से |
वे बचा कर रखते गुलाब को
रक्षक बन कर उसके
अनचाही कोशिश किसी ने यदि की
देते दंश बड़ा चुभन से |
जब माला या गुलदस्ता
गुलाब का ही बनाना होता
बहुत कष्ट होता
उनको चुनने में |
पर महत्व जान कर
दौनों पुष्पों का
भूल जाते उन
कठिनाइयों को |
कितनी भी दिक्कत आए
उन तक पहुँच पाने में
पूरे प्रयत्न करते
उन तक पहुँच ही जाते |
आशा
22 नवंबर, 2021
कोयल चतुर (हाइकु )
करो विनती मेरी
वो भूल गया
सुबह हुई
धूप चढ़ आई है
तुम न उठे
कोयल बोले
कर्ण सुनते धुन
मन मोहक
कागा है काला
कोयल है चतुर
कोयल काली
सुर उसका
मीठा है मधुर है
कागा का नहीं
कोयल काली
अपने अंडे देती
कौए के घर
है वह चंट
चालाक बहुत है
उड़ जाती है
आशा
21 नवंबर, 2021
इतना न झुकना
किसी के सामने न झुकना
कि तुम्हारी गर्दन में बल आजाए
यह तो शारीरिक व्यथा है
पर मन के कष्ट का क्या ?
कभी सोचा हो या नहीं तुमने
मुझे क्या तुम्हारी जो इच्छा हो
किसी पर झुको या न झुको
या उसमें ही खो जाओ
स्वाभिमान ही भूल जाओ |
पर जब समय बीत जाएगा
कोसना न मन को अपने
कहना नहीं किसी ने बताया नहीं
किसी के सामने इतना न झुकना
कि तुम्हारी गर्दन में बल आजाए |
यह तो शारीरिक व्यथा है
पर मन के कष्ट का क्या ?
कभी सोचा या नहीं |
मुझे क्या तुम्हारी जो इच्छा हो
किसी पर झुको या न झुको
या उसमें ही खो जाओ
स्वाभिमान ही भूल जाओ |
पर जब समय बीत जाएगा
कोसना न मन को अपने
कहना नहीं किसी ने बताया नहीं
कोई क्या समझाए कितना समझाए |
घूमना न हर बार की तरह मुंह लटकाए
ना ही दोष देना अपने आप को
कभी कोई बात भी गंभीर हो सुन लेना मेरी
मैं दुश्मन तो नहीं जो गलत बात करूंगी |
हूँ मित्र तुम्हारी जानों य न जानों
मैं जिस्म हूँ और जान तुम्हारी
तुम मानो या न मानो पर मुझे एहसास है
तुम से दूर नहीं हूँ तुम्हें समझती हूँ |
किसी के सामने नत मस्तक न होना
अडिग अपनी बातों पर रहना
यही शोभा देता है तुम्हें
तुम जैसा मेरे लिए कोई नहीं है |
आशा