खोली खिड़की
झांक कर देखा था
आदित्य को ही
दूर से आई
आवाज किधर से
चहके पक्षी
पेड़ की डाली
हिलती है जोर से
वायु सी डोले
ठंडा मौसम
आगाज पक्षियों का
सरस लगा
धूप आ गई
रश्मियाँ पसरी हैं
पत्तियों पर
मन ने चाहा
धूप सेकूँ प्रातःकी
आँगन में हूँ
हों गर्म वस्त्र
ढांके तन को यदि
सर्दी बचाएं
ऋतु जाड़े की
गरमागर्म चाय
मजा और है
कभी सोचना
दुनिया चाँद पर
वर्तमान में
धुंद ही धुंद
फैली चारों ओर है
हाथ न सूझे
आशा