खुले पट मन मंदिर के
कौन झाँक रहा उनमें से
कभी ख्याल आता कहीं
उसका मनमीत तो नहीं |
बड़ी राह देखी उसकी
रहा इन्तजार उसी का अब तक
राह देखना समाप्त हुआ अब
और समय सामान्य हुआ है |
है मनमौजी अलमस्त वह
फिक्र नहीं पालता किसी की
कब कहाँ जाने का मन बना लेता
कोई नहीं जानता चिंता में डूबा रहता |
जिन्दगी के वे क्षण लौट न पाए
द्वार खुले रहते थे उसकी बाट जोहने में
मन को क्लेश होता रहता था
उसके इन्तजार में |
जाने कब राह देखना आदत में बदला
यह तक याद नहीं अब तो
निगाहें द्वार पर लगी रहतीं हैं
एक टक राह देखने में |
आशा